हिंदी में सैकड़ों की संख्या में साहित्यिक पत्रिकाएं निकलती हैं। संभव है हजार से भी ऊपर हों। प्रिंट और वेब…
आलोचना पत्रिका के बहानेः बाजार और जंगल के नियम में कोई फर्क नहीं होता!
पांच दिन पहले ‘आलोचना’ पत्रिका का 62वां (अक्तूबर-दिसंबर 2019) अंक मिला। कोई विशेषांक नहीं, एक सामान्य अंक। आज के काल…
पंकज बिष्ट के योगदान का मूल्यांकन
पंकज बिष्ट पर यह विशेषांक क्यों?… इस सवाल का जवाब देने से पहले संक्षेप में ‘बया’ के पंद्रहवें वर्ष में…