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ज़रूरी ख़बर

जनपक्षधर पत्रकारिता और डिजिटल सेंसरशिप

पत्रकारिता को दिन-ब-दिन मुश्किल बनाया जा रहा है। अख़बारों और टीवी चैनलों की धूर्तता अब किसी से छिपी नहीं है, लेकिन AI टूल्स, गूगल, फेसबुक, [more…]

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ज़रूरी ख़बर

‘मिलकर बात करने का वायदा अधूरा रह गया मुकेश चंद्राकर’

दिल्ली। मुकेश चंद्राकर बस्तर की पत्रकारिता का वह नाम जिसे देश-विदेश से आने वाले सभी पत्रकार मिलने की इच्छा रखते थे। एक युवा पत्रकार जिसे [more…]

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बीच बहस

राष्ट्रीय मीडिया से वंचितों का भरोसा उठ रहा है

स्वतंत्र भारत में यदि दिल्ली की उर्दू पत्रकारिता की बात होगी, तो महफूज़ुर रहमान का नाम अवश्य लिया जाएगा। आप न केवल उर्दू में, बल्कि [more…]

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संस्कृति-समाज

कुलदीप नैयर पत्रकारिता सम्मान: जहां सवर्ण प्रगतिशीलों की अनुपस्थिति खल रही थी

नई दिल्ली। पांचवां कुलदीप नैयर पत्रकारिता सम्मान समारोह 15 नवम्बर को दिल्ली स्थित गांधी शांति प्रतिष्ठान में हुआ जिसकी अध्यक्षता सुप्रसिद्ध समाजशास्त्री और मनोवैज्ञानिक प्रो. [more…]

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बीच बहस

पत्रकारों और पत्रकारिता की हिमायत में गुजारिश: सारे धान पसेरी के भाव मत तौलिये !

3 मई को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस था। पर कुछ गुणी और सुधी मित्रों की ऐसी टिप्पणियां दिखीं जिनमे इन दिनों की पत्रकारिता का मखौल उड़ाते-उड़ाते [more…]

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ज़रूरी ख़बर

भड़ास के संपादक यशवंत के साथ दिल्ली पुलिस के एक इंस्पेक्टर ने किया अपराधियों जैसा व्यवहार

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नई दिल्ली। भड़ास फॉर मीडिया के संपादक यशवंत सिंह को हाल ही में एक मनगढ़ंत एफआईआर में झूठा आरोप लगाया गया और 2 अक्टूबर की [more…]

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राज्य

वाराणसी: सच लिखने पर संपादक पर मुकदमा, यूपी के परिवहन मंत्री दयाशंकर पर दबाव बनाने का आरोप

वाराणसी। लोकतंत्र में पत्रकारिता को चौथा स्तम्भ माना जाता है, यहां तक कि जब कहीं सुनवाई नहीं होती है तो लोग चाहते हैं कि उनकी समस्या [more…]

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संस्कृति-समाज

कुलदीप नैयर: मानवाधिकार तथा लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए आजीवन संघर्षरत रहे

नई दिल्ली। यह अस्सी के दशक की बात है। मैं गांधीवादियों, समाजवादियों और आंबेडकरवादियों के विभिन्न आंदोलनकारी समूहों को साथ लाने की कोशिश का हिस्सा [more…]

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संस्कृति-समाज

पत्रकारिता की मूंछ और सत्ता की पूंछ

करीब पच्चीस-तीस साल की पत्रकारिता से गुजरने के बाद मैंने पाया कि सन् 2014 यानी भाजपा नीत राजग के सत्तारोहण के बाद सब कुछ विध्वंसात्मक [more…]

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राजनीति

सत्ता और संपत्ति के भार से डगमग पत्रकारिता

हिन्दुस्तानियों के हित हेतु तथा उन्हें परावलंबन से मुक्ति दिलाकर स्वतंत्र दृष्टि प्रदान करने के निमित्त 30 मई 1826 को कलकत्ते के कोलू टोला नामक [more…]