मजरूह सुल्तानपुरी की पुण्यतिथि: मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर…
’‘मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर/ लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया’’ उर्दू अदब में ऐसे बहुत कम शेर हैं, जो शायर [more…]
’‘मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर/ लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया’’ उर्दू अदब में ऐसे बहुत कम शेर हैं, जो शायर [more…]