Wednesday, April 17, 2024

Mughal

जब मोदी सरकार ने बांधे मुगल बादशाह अकबर के तारीफों के पुल

बीजेपी और उसकी मौजूदा सरकार अंतरविरोधों का पिटारा है। उसका कोई एक चेहरा नहीं है बल्कि उसने हजार मुखौटे ओढ़ रखे हैं। और हर मुखौटे की उसकी तस्वीर भी अलग-अलग है। संघ के साथ मिलने के बाद उसका यह...

मुग़ल साम्राज्य से शर्म कैसी?

देश के वर्तमान शासकों के लिए आजकल इतिहास बदलने की जैसे हड़बोंग सी मची हुई है। साम्प्रदायिक आधार पर इतिहास को नकारने और नए सिरे से लिखे जाने के शोर में सच जैसे कहीं दब सा गया है। तकरीबन दो...

स्थाई भाव बन गई है संघियों की वर्चस्ववादी पेशवाई ग्रंथि

शाहजी राजे भोंसले (1594-1664) 17वीं शताब्दी के एक सेनानायक और बीजापुर तथा गोलकुंडा के मध्य स्थित जागीर कोल्हापुर के जागीरदार थे। वे कभी एक सल्तनत का आधिपत्य मानते तो कभी दूसरे का। अंतत: 23 जनवरी, 1664 को शिकार खेलते...

सावरकर के बचाव में आ रहे अनर्गल तर्कों और झूठ का पर्दाफाश करना बेहद जरूरी

एबीपी न्यूज पर एक डिबेट के दौरान एंकर रुबिका लियाकत ने यह सवाल पूछा कि, कांग्रेस के कितने नेताओं को कालापानी की सज़ा मिली थी ? इसके उत्तर में कांग्रेस के प्रवक्ता ने गांधी, नेहरू की जेल यात्राओं के...

आखिर कौन हैं निहंग और क्या है उनका इतिहास?

गुरु ग्रंथ साहब की बेअदबी के नाम पर एक नशेड़ी, गरीब, दलित सिख लखबीर सिंह को जिस बेरहमी से निहंगों ने मारा, हाथ काटे और उसकी लाश को बैरिकेड पर लटका दिया गया उससे तमाम संवेदनशील व्यक्ति सदमे में...

जन्मदिन पर विशेष: ज़ौक़ की शायरी और शख़्सियत के अलग रंग

शेख मोहम्मद इब्राहिम ‘ज़ौक़’ (1788-1854) ज़ौक़ का नाम आते ही क्या विचार आता है? अंतिम मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फर, के उस्ताद। ज़्यादातर उनके बारे में इससे ज्यादा कोई याद नहीं रखता। ज़ौक़ के जीवन, उनकी शायरी, और उनकी शख़्सियत...

गुरू तेग बहादुर, सिख पंथ और मुगल

इस साल (2021) 01मई को नौवें सिख गुरू तेग बहादुर की 400वीं जयंती मनाई गई। सिख पंथ को सशक्त बनाने में गुरूजी का महत्वपूर्ण योगदान था। उन्होंने अपने सिद्धांतों की खातिर अपने प्राण तक न्यौछावर कर दिए थे। गुरू नानक...

ये जरनैली सड़क है साहेब!

ये जरनैली सड़क है साहेब, तारीखी अज्म से मुलविस, इसके इकबाल और जलाल की मीनारें गवाह हैं शहँशाहों, हुकमरानों के नापाक मंसूबों की! ये आवाम की शहादतों में मगनून आज भी ज़िन्दा है! भारत में अलग-अलग दौर में बहुत से संघर्षों की दास्तानें...

मुगलकाल में भी होता था दिवाली पर सबरंग माहौल

सदियों से हमारे देश का किरदार कुछ ऐसा रहा है कि जिस शासक ने भी सामंजस्यपूर्ण सहअस्तित्व की भावना से सत्ता चलाई, उसे देशवासियों का भरपूर प्यार मिला। देशवासियों के प्यार के ही बदौलत उन्होंने भारत पर वर्षों राज...

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लोकतंत्र में चुनाव लघुता का पर्व और गर्व होता है, प्रभुता का पर्व और प्रसाद नहीं‎

लोकतंत्र में चुनाव सबसे बड़ा पर्व होता है, लोकतंत्र का पर्व। लोकतंत्र का पर्व असल में किस का पर्व...