''मैं केवल देह नहीं
मैं जंगल का पुश्तैनी दावेदार हूँ
पुश्तें और उनके दावे मरते नहीं
मैं भी मर नहीं सकता
मुझे कोई भी जंगलों से बेदखल नहीं कर सकता
उलगुलान!
उलगुलान!!
उलगुलान!!!''
'बिरसा मुंडा की याद में' शीर्षक से यह कविता आदिवासी साहित्यकार हरीराम मीणा ने...
You must be logged in to post a comment.