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संस्कृति-समाज

सीमा कपूर की आत्मकथा ‘यूं गुजरी है अब तलक’ का मुम्बई में हुआ लोकार्पण

मुम्बई। हिन्दी सिनेमा की सुपरिचित निर्माता, निर्देशक और लेखक सीमा कपूर की आत्मकथा ‘यूं गुज़री है अब तलक’ का लोकार्पण बुधवार को मुम्बई में हुआ। [more…]

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संस्कृति-समाज

हिंदी में बाजार का नया ‘जलसाघर’

(विश्व पुस्तक मेला 9 फरवरी को समाप्त हो गया। एक फरवरी से शुरू हुए इस मेले में अनुमान है कि करीब बीस लाख लोगों ने [more…]

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संस्कृति-समाज

विश्व पुस्तक मेला: हिन्दी में बढ़ी गंभीर वैचारिक किताबों की मांग

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नई दिल्ली। नौ दिनों तक चले नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला-2025 का रविवार को समापन हुआ। इस वर्ष मेले में पुस्तक प्रेमियों की जबरदस्त भागीदारी [more…]

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संस्कृति-समाज

गीतकार शैलेन्द्र के लिखे गीतों की गहराइयों से परिचय कराती किताब-‘उम्मीदों के गीतकार शैलेन्द्र’

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नई दिल्ली। गीतकार-कवि शैलेन्द्र के गीतों पर केन्द्रित किताब ‘उम्मीदों के गीतकार शैलेन्द्र’ की प्री-बुकिंग शुरू हो गई है। किताब का आवरण साहित्य आजतक के [more…]

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संस्कृति-समाज

हिन्दी आलोचना की जीवन्त बहसों के केन्द्र थे रामविलास शर्मा

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नई दिल्ली। रामविलास शर्मा ने जातीयता के प्रश्न पर किसी राजनीतिज्ञ से भी अधिक गहराई से चिन्तन और लेखन किया। हिन्दी आलोचना के मौजूदा ढांचे [more…]

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संस्कृति-समाज

‘सवाल’ आज का सबसे जरूरी शब्द है : गोपालकृष्ण गांधी

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नई दिल्ली। हम आजकल इतनी जल्दी में है कि तुरन्त सबकुछ हासिल कर लेना चाहते हैं। इस जल्दबाजी में हम अपने मूल्यों और नैतिकता को [more…]

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संस्कृति-समाज

आपातकाल की स्थितियों को समझने के लिए इतिहास को जानना जरूरी : ज्ञान प्रकाश

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नई दिल्ली। सत्तर के दशक में आपातकाल लगाने के पीछे इंदिरा गांधी की सत्ता में बने रहने की चाह एक बड़ा और तात्कालिक कारण था [more…]

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संस्कृति-समाज

लोकतंत्रः जाति के लिए, जाति के द्वारा और जाति का

अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने उन्नीसवीं सदी में लोकतंत्र को परिभाषित करते हुए कहा था, “लोकतंत्र का मतलब जनता के लिए, जनता के द्वारा और [more…]

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संस्कृति-समाज

ग्रामीण अर्थतंत्र के बीच किसानों की जिजीविषा को बड़े परिदृश्य पर रखता हरियश राय का उपन्‍यास माटी-राग

वाणी प्रकाशन समूह द्वारा प्रकाशित हरियश राय के नये उपन्‍यास माटी- राग का लोकार्पण विश्व पुस्‍तक मेले में किया गया। कार्यक्रम का संचालन करते हुए [more…]

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संस्कृति-समाज

विश्व पुस्तक मेला: एक धीमे बदलाव वाली संस्कृति

नई दिल्ली। किताबों की दुनिया हर दो-तीन साल में थोड़ी सी परिवर्तित जाती है लेकिन उस फ़र्क को बहुत साफ-साफ नहीं पहचाना जा सकता। यह [more…]