तहज़ीब की ताबानी पर साया-ए-सियाही- औरंगज़ेब से बहादुर शाह ज़फ़र तक तारीख़ की तौहीन का दर्दनाक फ़साना
तहज़ीब की रूह कभी-कभी चीख़ती नहीं, सिसकती है। वो शोर नहीं मचाती, बस ख़ामोश होकर हमारी पेशानी से अपना नूर वापस ले लेती है। और [more…]
तहज़ीब की रूह कभी-कभी चीख़ती नहीं, सिसकती है। वो शोर नहीं मचाती, बस ख़ामोश होकर हमारी पेशानी से अपना नूर वापस ले लेती है। और [more…]
इंडियन एक्सप्रेस में कल फोटो के साथ एक खबर छपी थी कि एक 80 वर्षीय कुली ‘मुजीबुल्लाह’ चारबाग-लखनऊ रेलवे स्टेशन पर बिना पैसे लिए प्रवासी [more…]