एक रूह जो फना हो गयी गंगा-जमुनी तहजीब का बीज बो कर

सालों पहले की बात है। हमारी दोस्त अर्चना हजरत निजामुद्दीन की दरगाह जाना चाहती थीं। सो, एक दोपहर हम वहां…

तथाकथित सभ्यता की दरारों में संवेदनहीन समाज की पालकी ढोती बेनाम, बेआवाज़ और अदृश्य ज़िंदगियों की ‘स्वर्ग से विदाई’

मेहनतकश लोगों के बारे में हमारी व्यवस्था किस हद तक असंवेदनशील है, इसे अचानक लागू किए गए लॉकडाउन के निर्णय…