तन्मय के तीर

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(किसान आंदोलन के दमन के लिए सरकार अजीब-अजीब रास्ते अपना रही है। पहले उसने किसानों के दिल्ली पहुंचने के रास्ते में बैरिकेड्स लगायी और सड़क काट कर खाइयां खोदी। और अब दिल्ली में घुसने से रोकने के लिए उसने कंक्रीट की दीवारें और सड़कों पर कीलें ठोक दी हैं। साथ ही प्रदर्शन स्थलों की कंटीले तारों से घेरेबंदी कर दी गयी है। मानो दिल्ली से सटे सूबों का बॉर्डर न हुआ भारत-पाकिस्तान या फिर अमेरिका-मैक्सिको के बीच की अंतरराष्ट्रीय सीमाएं हो गयीं। देखने में ये कीलें भले ही जमीन पर गड़ी हों लेकिन दरअसल ये लोकतंत्र के सीने में गाड़ी गयी हैं। कंटीले तारों से संविधान की पीठ छलनी कर दी गयी है। इस तरह से लाखों-लाख कुर्बानियों से मिली आजादी को ही खतरे में डाल दिया गया है। यह एक तरह से इस देश के भीतर नागरिकों के स्वतंत्र रूप से प्रदर्शन करने या फिर अपनी बात कहने के मौलिक अधिकार के खात्मे का ऐलान है। यह बताता है कि देश अब संविधान से नहीं किसी तानाशाह के इशारे से चल रहा है। लिहाजा न तो जनता नागरिक रह गयी है और न ही शासक चुना हुआ प्रतिनिधि। इनके जरिये एक ऐसा बॉर्डर खड़ा किया जा रहा है जिसके एक तरफ किसान हैं तो दूसरी तरफ उनके सामने पुलिस और सुरक्षा बलों के जवान। और इस तरह से मौजूदा हुकूमत ने बापों और बेटों को ही आमने-सामने खड़ा कर दिया है। जिसमें बेटे अपने बाप के सीने पर बंदूक ताने हुए हैं। इसी मसले पर कार्टूनिस्ट तन्मय त्यागी ने अपनी कूंची चलायी है। पेश है उनका कार्टून।-संपादक)

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