नई दिल्ली। केंद्र सरकार द्वारा जाति गणना कराने के फैसले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संबोधित एक पत्र में बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने न्यायपालिका और निजी क्षेत्र में आरक्षण की मांग की है।
राजद नेता ने “मंडल आयोग की लंबित सिफारिशों को पूर्ण रूप से लागू करने” के साथ-साथ “निजी क्षेत्र में आरक्षण, संविदा में आरक्षण, न्यायपालिका में आरक्षण और जाति जनगणना के आंकड़ों के आधार पर आनुपातिक आरक्षण” की भी मांग की है।
तेजस्वी यादव ने कहा कि भले ही मंडल आयोग की सिफारिशों ने 1990 के दशक की शुरुआत में व्यवस्था में बड़े बदलाव लाए थे, लेकिन इसकी कई सिफारिशें अब भी लागू नहीं की गई हैं।
उन्होंने तर्क दिया, “निजी क्षेत्र, जो सार्वजनिक संसाधनों का एक प्रमुख लाभार्थी रहा है, सामाजिक न्याय की अनिवार्यताओं से अछूता नहीं रह सकता।”
तेजस्वी यादव ने उन विभिन्न सरकारी लाभों की ओर इशारा किया जो कॉरपोरेट भारत को मिलते हैं—जैसे भूमि, सब्सिडी, कर में छूट—और सुझाव दिया कि यह केवल न्यायसंगत होगा कि देश की विविधता को उनकी नियुक्तियों और पदोन्नतियों में प्रतिबिंबित किया जाए।
तेजस्वी ने यह भी बताया कि संविधान ऐसे कदमों के लिए नैतिक और कानूनी आधार प्रदान करता है। उन्होंने कहा, “हमारा संविधान अपने नीति निर्देशक सिद्धांतों के माध्यम से राज्य को आर्थिक असमानताओं को कम करने और संसाधनों के समान वितरण को सुनिश्चित करने का आदेश देता है। जब हमें यह स्पष्ट रूप से पता हो कि हमारे कितने नागरिक वंचित समूहों से आते हैं और उनकी आर्थिक स्थिति क्या है, तब लक्षित हस्तक्षेपों को अधिक सटीकता से डिज़ाइन किया जाना चाहिए।”
बिहार के इस नेता ने आगामी परिसीमन प्रक्रिया को लेकर भी चिंता जताई और “ओबीसी और ईबीसी की पर्याप्त राजनीतिक प्रतिनिधित्व” की मांग की, जिन्हें निर्णय-निर्माण मंचों से योजनाबद्ध तरीके से बाहर रखा गया है।
उनकी सलाह थी कि राज्य विधानसभाओं और भारतीय संसद में इन वर्गों की उपस्थिति को आनुपातिक प्रतिनिधित्व के ज़रिए बढ़ाया जाए।
राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता तेजस्वी यादव ने मोदी सरकार की उस पूर्ववर्ती स्थिति की भी आलोचना की, जिसमें उसने जाति जनगणना की मांग को खारिज कर दिया था।
उन्होंने लिखा, “वर्षों से आपकी सरकार और एनडीए गठबंधन ने जाति जनगणना की मांग को विभाजनकारी और अनावश्यक बताकर खारिज किया है। जब बिहार ने स्वयं जातीय सर्वेक्षण कराने की पहल की, तब केंद्र सरकार के शीर्ष विधिक अधिकारियों और आपकी पार्टी ने हर कदम पर बाधाएँ उत्पन्न कीं। आपकी पार्टी के सहयोगियों ने इस तरह की डेटा एकत्रीकरण की आवश्यकता पर ही सवाल उठा दिए। आपकी यह देर से आई हुई स्वीकृति, उन नागरिकों की वर्षों पुरानी मांगों को मान्यता देने जैसा है, जिन्हें लंबे समय से हमारे समाज के हाशिये पर डाल दिया गया है।”
बिहार जाति सर्वेक्षण में यह सामने आया कि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) मिलकर राज्य की आबादी का लगभग 63 प्रतिशत हिस्सा हैं- यह आँकड़ा लंबे समय से चली आ रही मान्यताओं को उलट देता है। यादव ने टिप्पणी की, “बिहार का जातीय सर्वेक्षण….उन अनेक मिथकों को तोड़ता है जिन्हें यथास्थिति बनाए रखने के लिए गढ़ा गया था। इसी तरह के पैटर्न राष्ट्रीय स्तर पर भी सामने आ सकते हैं।”
हाल के वर्षों में जाति आधारित जनगणना की मांग को ज़ोर मिला है, विशेषकर भारत की जनसंख्या की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में पारदर्शिता की बढ़ती मांग के चलते।
जनगणना के समर्थकों की तत्काल चिंता यह है कि क्या सरकार इस सर्वेक्षण के निष्कर्षों पर कोई कार्रवाई करेगी। यादव ने लिखा, “जाति जनगणना कराना सामाजिक न्याय की लंबी यात्रा का केवल पहला कदम है। इस जनगणना से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर सामाजिक सुरक्षा और आरक्षण नीतियों की व्यापक समीक्षा होनी चाहिए। आरक्षण पर लगाया गया मनमाना सीमा बंधन भी पुनर्विचारित किया जाना चाहिए।”
(ज्यादातर इनपुट टेलीग्राफ से लिए गए हैं।)
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