नई दिल्ली। दिल्ली के अंबेडकर विश्वविद्यालय में दो शिक्षकों प्रोफेसर सलिल मिश्रा और प्रोफेसर काबरा की बर्खास्तगी का मुद्दा बेहद गंभीर रूप धारण करता जा रहा है। इस पर न केवल शिक्षक और उनके संगठन बल्कि छात्रों का भी एक बड़ा समुदाय विरोध में उतर आया है। शिक्षकों पर कार्रवाई का अलग-अलग तरीके से विरोध हो रहा है। 17 नवंबर को दिल्ली के प्रेस क्लब में डेमोक्रेटिक टीचर्स इनिशिएटिव और आइसा ने मिलकर एक प्रेस कांफ्रेंस किया और कांफ्रेस में मौजूद सभी लोगों ने एक सुर में दोनों शिक्षकों की बर्खास्तगी को तत्काल वापस लेने की मांग की। ऐसा नहीं होने पर शिक्षकों और विद्यार्थियों ने विश्वविद्यालय प्रशासन को बड़ा आंदोलन छेड़ने की चेतावनी दी।
प्रेस कॉन्फ्रेंस की शुरुआत डेमोक्रेटिक टीचर्स’ इनिशिएटिव (DTI) की संयोजक उमा गुप्ता के वक्तव्य से हुई। उन्होंने कहा कि “हम अपने उन सहयोगियों, सलिल और अस्मिता, के साथ एकजुटता में खड़े हुए हैं, जो ईमानदारी और सिद्धांतों के प्रतीक हैं और जिन्हें एक समान सार्वजनिक शिक्षा के पक्ष में बोलने की हिम्मत करने के लिए दंडित किया गया है।”
ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (AISA) की अंबेडकर विश्वविद्यालय शाखा की अध्यक्ष प्रेरणा ने कहा कि “दिल्ली भर के सैकड़ों छात्र आज यह कहने के लिए एकत्र हुए हैं कि हमारे शिक्षकों पर हमला, हम सभी पर हमला है।”

जेएनयू के प्रोफेसर अतुल सूद ने जोर देकर कहा कि यह एकजुटता सभी विश्वविद्यालयों के शिक्षकों के बीच है क्योंकि हमला हम सभी पर है। उन्होंने कहा कि “यह हमला इस बात को सुनिश्चित करने के लिए है कि सभी शिक्षक मनमाने निर्णयों के खिलाफ कानूनी लड़ाई में उलझे रहें और उच्च शिक्षा और राष्ट्र की अवधारणा पर सार्वजनिक संवाद की कोई गुंजाइश न बचे।”
जामिया मिलिया इस्लामिया के प्रोफेसर रवींद्रन गोपीनाथ ने कहा कि “सार्वजनिक शिक्षा का सर्वांगीण विनाश इस सरकार के तहत चरम पर पहुंच गया है। छात्रों, शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों पर लागू की जा रही कटौतियों की तबाही का सामना केवल एकजुटता से किया जा सकता है।”
दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर विजेंद्र चौहान ने कहा कि “यह सरकार विश्वविद्यालयों को डर के माहौल से संचालित करना चाहती है, लेकिन हमने बार-बार दिखाया है कि हम इस डर को तोड़ेंगे और लोकतांत्रिक कार्रवाई के स्थानों को पुनः प्राप्त करेंगे।”
इस प्रेस कॉन्फ्रेंस ने शिक्षकों, छात्रों और कर्मचारियों के बीच एकजुटता का एक मजबूत संदेश दिया और सार्वजनिक शिक्षा के अधिकार और लोकतांत्रिक स्थानों को बचाने की दिशा में निर्णायक कदमों की आवश्यकता पर जोर दिया।
AUDFA (डॉ. बी. आर. अंबेडकर विश्वविद्यालय शिक्षक संघ) के उपाध्यक्ष गोपालजी प्रधान ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि “प्रो. सलील की सेवानिवृत्ति में केवल आठ महीने शेष थे। प्रो. अस्मिता ने अपना इस्तीफा दे दिया था, जिसे विश्वविद्यालय ने स्वीकार नहीं किया। इसलिए यह बर्खास्तगी एक प्रशासनिक निर्णय नहीं, बल्कि एक रणनीति है—एक ऐसा उदाहरण और भय उत्पन्न करने की कोशिश, जो विश्वविद्यालय में भारत के हाशिये पर मौजूद लोगों के लिए आवाज उठाने वालों को दबाने के लिए किया गया है।”
दिल्ली साइंस फोरम के डी. रघुनंदन ने भी बैठक में चल रहे संघर्ष के प्रति अपनी एकजुटता व्यक्त की। कई वक्ताओं ने दिल्ली सरकार की इस मुद्दे पर चुप्पी पर सवाल उठाए, विशेष रूप से यह देखते हुए कि AUD दिल्ली राज्य का विश्वविद्यालय है। “दिल्ली सरकार ने इस उभरते हुए विश्वविद्यालय को व्यवस्थित तरीके से नष्ट करने पर क्यों चुप्पी साध रखी है?”

JNU छात्र संघ के अध्यक्ष धनंजय ने बैठक को अपना समर्थन देते हुए कहा कि “हम बर्खास्त शिक्षकों और उनके संघर्षरत छात्रों और सहकर्मियों के साथ अपनी एकजुटता व्यक्त करते हैं। AUD में चल रहा संघर्ष केवल AUD तक सीमित नहीं है, बल्कि यह फासीवादी मोदी सरकार के तहत स्थिति का प्रतिबिंब है।”
प्रेस कॉन्फ्रेंस को बर्खास्त शिक्षकों के छात्रों, उनके सहकर्मियों और दिल्ली के कई शिक्षकों और छात्रों ने संबोधित किया। इनमें प्रोफेसर साध्या नंबियार और प्रोफेसर बजरंग बिहारी तिवारी समेत कई अन्य प्रमुख व्यक्ति शामिल थे।
अगर पूरे घटनाक्रम पर नजर दौड़ा जाए तो 5 नवंबर 2024 को अंबेडकर विश्वविद्यालय के प्रबंधन बोर्ड (BoM) ने प्रो. मिश्रा और प्रो. काबरा की सेवा तत्काल प्रभाव से समाप्त करने का निर्णय लिया। यह निर्णय उनके द्वारा ‘वन टाइम एब्जॉर्प्शन पॉलिसी’ के तहत 38 गैर-शिक्षण कर्मचारियों के नियमितीकरण में निभाई गई भूमिका के लिए लिया गया, जिनकी विश्वविद्यालय के शुरुआती वर्षों में इसके निर्माण कार्य में भागीदारी और भूमिका थी। आपको बता दें कि उन कर्मचारियों के नियमितीकरण की मांग बहुत लंबे समय से चली आ रही थी।
डॉ. जी. एस. पटनायक समिति ने भी स्पष्ट रूप से नियमितीकरण नीति के निर्णय और क्रियान्वयन में शामिल सभी प्रशासकों को आरोप मुक्त किया। लेकिन इसके बावजूद, दिसंबर 2022 में, BoM ने पटनायक समिति की रिपोर्ट की पूरी तरह से अनदेखी करते हुए कुलपति को एक नई जांच समिति गठित करने का अधिकार दे दिया। यह समिति भी किसी दुर्भावना या व्यक्तिगत लाभ का कोई सबूत पेश नहीं कर सकी, लेकिन फिर भी दोनों शिक्षकों को ‘लोक सेवक के लिए अनुचित आचरण’ का दोषी ठहराकर विश्वविद्यालय से बर्खास्त कर दिया।

मामले के विस्तृत विश्लेषण से जो बात सामने आयी है उसके मुताबिक विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा गठित तीनों जांच समितियों को दोनों प्रोफेसरों के खिलाफ किसी भी वित्तीय गड़बड़ी का प्रमाण नहीं मिला। यहां तक कि हालिया आरोपपत्र में केवल प्रक्रियात्मक त्रुटियों का उल्लेख किया गया है। भ्रष्टाचार या वित्तीय अनियमितताओं के किसी भी आरोप के अभाव के बावजूद, प्रशासन ने अपनी प्रेस विज्ञप्ति में ‘विजिलेंस इनपुट’ का उल्लेख किया, जिससे इन दो प्रोफेसरों की प्रतिष्ठा को कलंकित करने और उनकी छवि धूमिल करने का प्रयास स्पष्ट रूप से नजर आता है।
मामले के जानकार लोगों का कहना है कि यह कार्रवाई न केवल प्रतिशोधपूर्ण और दुर्भावनापूर्ण है, बल्कि यह विश्वविद्यालय के शिक्षण और सीखने के वातावरण को नुकसान पहुंचाने का एक प्रयास भी है।
बाबासाहेब अंबेडकर के नाम पर स्थापित और समानता एवं सामाजिक न्याय के सिद्धांतों पर आधारित विश्वविद्यालय में, इसकी स्थापना के समय से ही यह सही चिंता व्यक्त की जा रही थी कि ऐसे कर्मचारियों को गरिमापूर्ण और गैर-शोषणकारी कार्य परिस्थितियां सुनिश्चित की जाएं, जिनके योगदान के बिना विश्वविद्यालय की कल्पना असंभव है। ये परिस्थितियां केवल स्थायी और सुरक्षित रोजगार से ही सुनिश्चित की जा सकती हैं।
विश्वविद्यालय नेतृत्व ने इस मांग का उत्तर दिया और कानूनी और नैतिक दिशानिर्देशों के तहत विशेषज्ञों, विशेषकर कानूनी क्षेत्र से, कई दौर की बातचीत के बाद, “वन टाइम एब्जॉर्प्शन” की नीति बनाई। यह नीति 2018 में तैयार हुई और विश्वविद्यालय की सभी प्रासंगिक संस्थाओं, जिनमें विश्वविद्यालय का सर्वोच्च सांविधिक निकाय विश्वविद्यालय प्रबंधन भी शामिल है (जिसमें सरकारी नामांकित सदस्य भी होते हैं), के समक्ष चर्चा के लिए रखी गई। यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि उच्च शिक्षा निदेशालय को इस प्रक्रिया की पूरी जानकारी थी।
फरवरी 2021 में, नए नेतृत्व के तहत विश्वविद्यालय प्रबंधन ने इस निर्णय को पलट दिया और डॉ. जी. एस. पटनायक के नेतृत्व में एक सदस्यीय समिति गठित की ताकि नीति में किसी भी अनियमितता की जांच की जा सके। समिति ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट किया कि इस निर्णय के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ किसी अनुशासनात्मक कार्रवाई की गुंजाइश नहीं है। पटनायक समिति ने सभी प्रशासकों को स्पष्ट रूप से आरोप मुक्त कर दिया।

दिसंबर 2022 में, विश्वविद्यालय प्रबंधन ने पटनायक समिति की रिपोर्ट की पूरी तरह से अनदेखी करते हुए, कुलपति को एक और समिति गठित करने का अधिकार दिया ताकि फिर से जांच की जा सके। इस नई समिति ने दो शिक्षकों की ओर से किसी भी दुर्भावना या अनुचित लाभ का कोई प्रमाण स्थापित नहीं किया, लेकिन उन्हें CCS (आचरण) नियमों के नियम 3(1) (iii), (viii), (ix), (xviii) और (xxi) के तहत ‘लोक सेवक के लिए अनुचित आचरण’ का दोषी ठहराया।
यह चौंकाने वाला है कि एक विश्वविद्यालय का नेतृत्व, जिसने हाल ही में जाति और लिंग आधारित भेदभाव की गंभीर शिकायतों का उचित और संवेदनशील तरीके से जवाब देने में विफलता दिखाई है और जो अन्य विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के सामूहिक पलायन पर चुप्पी साधे हुए है, वही नेतृत्व बार-बार समितियां गठित कर उन शिक्षकों को दंडित करने में समय और प्रेरणा पाता है, जिन्होंने सरकारी विश्वविद्यालयों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता, अकादमिक अनुशासन और गरिमापूर्ण माहौल के सिद्धांतों का पालन किया है।
इसके अलावा, इतनी कठोर सजा को रातों रात लागू करने की जल्दी और संबंधित शिक्षकों की ईमेल पहुंच को तुरंत समाप्त कर देना, जबकि विश्वविद्यालय में सेमेस्टर परीक्षाएं केवल कुछ सप्ताह दूर थीं, यह दिखाता है कि वर्तमान प्रशासन छात्रों के सीखने और उनके कल्याण की कितनी कम परवाह करता है।
दिल्ली सरकार का अंबेडकर विश्वविद्यालय में पिछले कुछ वर्षों से हो रही घटनाओं पर मौन बहुत कुछ कहता है!! एक ऐसी सरकार जो खुद को सार्वजनिक शिक्षा का रक्षक बताती है, उसका शिक्षकों द्वारा बार-बार अपनी चिंताओं को व्यक्त करने के बावजूद पूरी तरह से अनदेखी करना गंभीर सवाल खड़े करता है।
बहुत सारे लोग इसे दूसरे शिक्षकों के लिए खतरे की घंटी के तौर पर देख रहे हैं। उनका कहना है कि आने वाले दिनों में इस तरह की और कार्रवाइयां होंगी। और कई दूसरे शिक्षक उसके शिकार बनेंगे। यह सभी कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के शिक्षकों के लिए चेतावनी के रूप में देखा जाना चाहिए। यह एक खतरनाक उदाहरण बन सकता है, जहां CCS नियमों का मनमाने और अनुचित तरीके से उन शिक्षकों को दंडित करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है जिनके विचार और विश्वास सत्ता में बैठे लोगों से अलग या विरोधाभासी हैं।
अंबेडकर विश्वविद्यालय की घटनाओं को अलग-थलग नहीं देखा जा सकता। इन्हें JNU, SAU, DU और अन्य संस्थानों में शिक्षाविदों पर हो रहे हमलों के संदर्भ में देखा जाना चाहिए। यह व्यापक स्तर पर शैक्षणिक स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए एक गंभीर खतरा पेश करता है।
इसी कड़ी में डेमोक्रेटिक टीचर्स’ इनिशिएटिव ने शिक्षण समुदाय से अपील करते हुए कहा है कि वे आक्रोश और एकजुटता के साथ उठ खड़े हों और हमारे शैक्षणिक स्थानों को बचाने के लिए एक मजबूत आंदोलन खड़ा करें।
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