महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा), 2005 में शुरू किया गया एक सामाजिक सुरक्षा और आजीविका आश्वासन कार्यक्रम है, जो ग्रामीण परिवारों (विशेषकर अकुशल मजदूरों) को प्रति वर्ष 100 दिनों के वेतन रोजगार की गारंटी देता है। इसकी प्रमुख विशेषताओं में मांग आधारित कार्य का कानूनी अधिकार, समयबद्ध मजदूरी भुगतान (15 दिनों के भीतर), और देरी के लिए मुआवजा शामिल है।
हालांकि, मनरेगा मजदूरों को समय पर भुगतान नहीं हो पा रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र सरकार द्वारा मनरेगा मजदूरों के 71% भुगतानों में देरी हुई है, जिसका मुख्य कारण धन की कमी बताया जा रहा है। केंद्र सरकार ने 86,000 करोड़ रुपये आवंटित किए, लेकिन यह राशि बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए अपर्याप्त है।

भुगतान में विफलता का एक प्रमुख कारण आधार-आधारित भुगतान प्रणाली से संबंधित तकनीकी समस्याएँ हैं, जिसके चलते 4 करोड़ रुपये से अधिक मूल्य के भुगतान असफल रहे। इसके अलावा, भुगतान में देरी होने पर भी श्रमिकों को शायद ही कभी मुआवजा मिलता है। एक रिपोर्ट के अनुसार, केवल 3.76% बकाया राशि का मुआवजा भुगतान किया गया।
दूसरी ओर, काम की मांग के लिए पंजीकरण तो बढ़ा है, लेकिन रोजगार के अवसर घटे हैं। झारखण्ड में 73 लाख पंजीकृत परिवारों में से केवल 20 लाख परिवारों ने ही काम किया।
पंजीकरण बढ़ा, लेकिन रोजगार घटा
एक रिपोर्ट के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2024-25 में परिवारों के पंजीकरण में 5.2% की वृद्धि हुई, लेकिन कार्य करने वाले पंजीकृत परिवारों और मजदूरों की भागीदारी में क्रमशः 7.4% और 9.7% की गिरावट दर्ज की गई।

झारखण्ड में कुल 73.3 लाख पंजीकृत परिवारों में से केवल 20.2 लाख परिवारों ने काम किया। पूरे भारत में कार्य करने वाले परिवारों की संख्या में 3.5% की कमी आई, जो झारखण्ड की स्थिति को और भी चिंताजनक बनाती है।
मानव-दिवस (Person-Days) सृजन में भारी गिरावट
झारखण्ड में मनरेगा के तहत पंजीकरण बढ़ने के बावजूद मानव-दिवसों में 8% की कमी दर्ज की गई, जो राष्ट्रीय स्तर पर 6.9% की गिरावट से अधिक है। यह स्पष्ट संकेत देता है कि पंजीकरण बढ़ने के बावजूद लोगों को रोजगार नहीं मिल पा रहा है।
100 दिन काम पाने वालों की संख्या में कमी
झारखण्ड में 100 दिन का रोजगार पूरा करने वाले परिवारों की संख्या में 18% की कमी आई, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह गिरावट 9.3% रही। वर्ष 2024-25 में लगभग 82,000 परिवारों ने 100 दिन का रोजगार पूरा किया, जो 2023-24 के 1 लाख परिवारों की तुलना में काफी कम है।
झारखण्ड के जिलों में असमानता
राज्य के 24 में से 20 जिलों में मानव-दिवसों में कमी दर्ज की गई। सबसे अधिक गिरावट साहेबगंज (27%), जामताड़ा (22.9%), रामगढ़ (18.6%), और लोहरदगा (18.5%) में देखी गई। केवल चार जिलों में मानव-दिवसों में वृद्धि हुई, जिनमें गढ़वा में सर्वाधिक 2.7% की वृद्धि दर्ज की गई।

चार आदिवासी बहुल जिलों-खूँटी, सिमडेगा, गुमला, और पश्चिम सिंहभूम-में भी नकारात्मक रुझान दिखा, जहाँ मानव-दिवसों में क्रमशः 8.8%, 11.6%, 10.7%, और 5.8% की कमी आई।
वित्तीय वर्ष 2024-25 में रोजगार में उतार-चढ़ाव
वित्तीय वर्ष की शुरुआत सकारात्मक रही, जहाँ अप्रैल 2024 में पिछले वर्ष की तुलना में 6.2% अधिक मानव-दिवस उत्पन्न हुए। लेकिन मई से सितंबर के बीच मानव-दिवसों में तेज गिरावट देखी गई, जिसका संभावित कारण मानसून में समय पर और अधिक बारिश हो सकता है। हालांकि, अक्टूबर से जनवरी के बीच वित्तीय वर्ष 2024-25 में मजबूत सुधार देखा गया।
घोषित मजदूरी दर बढ़ने के बावजूद प्राप्ति कम
झारखण्ड में मजदूरों को घोषित मजदूरी से औसतन 10% कम भुगतान मिला। वर्ष 2024-25 में घोषित मजदूरी 272 रुपये थी, लेकिन मजदूरों को औसतन 245 रुपये ही प्राप्त हुए। घोषित मजदूरी में वृद्धि के बावजूद, अकुशल मजदूरी पर खर्च 2023-24 की तुलना में 95.2 करोड़ रुपये कम हुआ।
सुझाव और माँगें
लिबटेक इंडिया ने इन समस्याओं से निपटने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए हैं:
- बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए मनरेगा बजट को 1.5-2 लाख करोड़ रुपये तक बढ़ाया जाए।
- आधार-आधारित भुगतान प्रणाली की बजाय सरल बैंक हस्तांतरण प्रणाली लागू की जाए।
- भुगतान में देरी होने पर श्रमिकों को स्वचालित मुआवजा प्रदान किया जाए।
- भुगतान की स्थिति की जाँच और समस्याओं के त्वरित समाधान के लिए वास्तविक समय ट्रैकिंग सिस्टम लागू किया जाए।
प्रेस वार्ता और रिपोर्ट
5 जुलाई 2025 को लिबटेक इंडिया, झारखण्ड नरेगा वॉच, और भोजन का अधिकार अभियान द्वारा झारखण्ड में मनरेगा की स्थिति पर एक प्रेस वार्ता आयोजित की गई। इस दौरान लिबटेक इंडिया ने वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए मनरेगा पर नवीनतम रिपोर्ट जारी की। यह रिपोर्ट 8 मई 2025 तक के सरकारी आँकड़ों पर आधारित है और झारखण्ड की तुलना पिछले वर्ष (2023-24) तथा राष्ट्रीय और पड़ोसी राज्यों के आँकड़ों से करती है।

प्रेस वार्ता में सामाजिक कार्यकर्ता बलराम ने मानव-दिवसों में गिरावट पर चिंता जताते हुए कहा कि जून से अगस्त के बीच भुगतान में देरी इस गिरावट का प्रमुख कारण है। उन्होंने गढ़वा और गिरिडीह जैसे जिलों में मानव-दिवसों में वृद्धि को असामान्य बताया और वहाँ मनरेगा योजनाओं में भ्रष्टाचार और अनियमितताओं की ओर इशारा किया।
झारखण्ड नरेगा वॉच के राज्य समन्वयक जेम्स हेरेंज ने कहा कि मनरेगा योजनाएँ कागजों तक सीमित हैं और जमीनी स्तर पर कार्यान्वयन में कमी है। गाँवों में मजदूरों को काम नहीं मिल रहा, और अधिकांश कार्य ठेकेदारों व मशीनों के माध्यम से हो रहे हैं। केंद्र सरकार द्वारा बजट में कटौती, तकनीकी जटिलताएँ, और भ्रष्टाचार के कारण मजदूरों का मनरेगा पर भरोसा कम हो रहा है।
झारखण्ड नरेगा वॉच से जुड़ी तारामणि साहू ने सामाजिक अंकेक्षण की प्रक्रिया पर सवाल उठाए और कहा कि इसके बावजूद मजदूर अपने अधिकारों से वंचित हैं और पलायन करने को मजबूर हैं।
(झारखंड से विशद कुमार की रिपोर्ट)