झारखंड के सरकारी विद्यालयों की स्थिति चिंताजनक: अनुसूचित जाति और जनजाति क्षेत्रों में विशेष चुनौतियाँ

झारखंड की सरकारी शिक्षा व्यवस्था की गंभीर स्थिति और लातेहार जिले के मनिका प्रखंड के एकल-शिक्षक प्राथमिक विद्यालयों की दशा को उजागर करने के लिए 27 जून 2025 को मनिका प्रखंड कार्यालय में एक जनसुनवाई आयोजित की गई। यह सुनवाई प्रखंड के 40 एकल-शिक्षक विद्यालयों पर किए गए सर्वेक्षण के आधार पर थी।

जनसुनवाई में स्पष्ट हुआ कि सरकारी विद्यालयों की स्थिति अत्यंत चिंताजनक है, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) समुदायों के बच्चे पढ़ते हैं। इस कार्यक्रम में बच्चों के माता-पिता और ग्रामवासी बड़ी संख्या में उपस्थित हुए और उन्होंने अपनी समस्याएँ साझा कीं, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि राज्य की शिक्षा व्यवस्था बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही है।

अभिभावकों की शिकायतें

विभिन्न गाँवों से आए अभिभावकों ने अपनी पीड़ा व्यक्त की:

  • अमबाटिकर गाँव की सलमानी देवी ने बताया कि मध्याह्न भोजन के बाद स्कूल बंद कर दिया जाता है। अधिकारियों से सवाल करने पर उन्हें जवाब मिलता है, “गाँव के बच्चे क्या पढ़ेंगे?”

  • जमुना गाँव की चिंता देवी ने कहा कि उनके स्कूल में केवल दो शिक्षक हैं-एक हमेशा अनुपस्थित रहता है और दूसरा केवल कार्यालयी कामों में व्यस्त रहता है।

  • चतरा की फुलिया देवी ने बताया कि ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ जैसी योजनाओं का उनके गाँव में कोई प्रभाव नहीं दिखता।

  • करमाही गाँव की कविता देवी ने चिंता जताई, “मुझे अपने बच्चों के भविष्य की चिंता है। मैं नहीं चाहती कि वे मेरी तरह दिहाड़ी मजदूरी करें।”

  • इसी गाँव की मयावती देवी ने कहा कि शिक्षकों से पढ़ाई की गुणवत्ता पर सवाल करने पर वे सारी जिम्मेदारी सरकार पर डाल देते हैं।

  • चतरा की गीता देवी ने महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया, “हर कोई पूछता है कि स्कूल में क्या खाना मिला, लेकिन कोई नहीं पूछता कि बच्चों को क्या पढ़ाया गया।” उन्होंने यह भी कहा कि सभी लोग निजी ट्यूशन या स्कूलों का खर्च नहीं उठा सकते, इसलिए सरकारी स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा आवश्यक है।

भ्रष्टाचार और अव्यवस्था के आरोप

जनसुनवाई में भ्रष्टाचार और अव्यवस्था के गंभीर आरोप सामने आए। करमाही की स्कूल प्रबंधन समिति (SMC) की सदस्य कुंती देवी ने बताया कि स्कूल में नियमित बैठकें नहीं होतीं, मध्याह्न भोजन की गुणवत्ता खराब है, और प्रधानाध्यापक ने यूनिफॉर्म के लिए प्रत्येक छात्र से 150 रुपये की मांग की। पैसे न दे पाने के कारण उनके बच्चे को यूनिफॉर्म नहीं मिला।

अधिकारियों और विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया

जब एकल-शिक्षक स्कूलों की समस्या को प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी (BEEO) श्रीमती राजश्री पुरी के समक्ष रखा गया, तो उन्होंने सुझाव दिया कि “गाँव का कोई इंटरमीडिएट पास व्यक्ति बच्चों को पढ़ा सकता है, भले ही उसे वेतन न मिले।” इस पर IIT दिल्ली की प्रोफेसर रीतिका खेड़ा ने सवाल किया, “क्या वे स्वयं अपने बच्चों को ऐसे व्यक्ति से पढ़ाना चाहेंगी?” इस पर अधिकारी ने ‘नहीं’ में उत्तर दिया।

अर्थशास्त्री और सामाजिक कार्यकर्ता ज्यां द्रेज ने कहा, “यदि सरकार उच्च न्यायालय के आदेशानुसार 26,000 शिक्षकों की नियुक्ति कर दे, तो एकल-शिक्षक स्कूलों की समस्या काफी हद तक हल हो सकती है। फिर भी, RTE अधिनियम के अनुसार और शिक्षकों की आवश्यकता है।”

इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन डेवलपमेंट के प्रोफेसर कुमार राणा ने कहा, “पूरे स्कूल को एक शिक्षक द्वारा चलाना न केवल चौंकाने वाला, बल्कि गैरकानूनी भी है। यह जनता के साथ धोखा है।”

कांग्रेस प्रवक्ता सुनीत शर्मा ने जनसुनवाई की सराहना की और सुझाव दिया कि ऐसी सुनवाइयों का नियमित आयोजन हो ताकि अधिक लोग भाग लें और मुद्दों को बेहतर ढंग से उठाया जा सके।

सर्वेक्षण और नई रिपोर्ट: “एकल शिक्षक स्कूलों का संकट”

जनसुनवाई में एक नई रिपोर्ट, “एकल शिक्षक स्कूलों का संकट”, जारी की गई। यह रिपोर्ट मनिका प्रखंड के 55 एकल-शिक्षक स्कूलों (ज्यादातर प्राथमिक) के सर्वेक्षण पर आधारित है, जिसमें से 40 स्कूलों को शामिल किया गया।

सर्वेक्षण की प्रमुख बातें

2025 की शुरुआत में नरेगा सहायता केंद्र, मनिका द्वारा किए गए सर्वेक्षण की मुख्य बातें इस प्रकार हैं:

  • छात्र-शिक्षक अनुपात: मनिका के एकल-शिक्षक स्कूलों में औसतन 59 छात्र हैं, कुछ स्कूलों में यह संख्या 100 से अधिक है (उदाहरण: बिचलीदाग गाँव में 144 छात्र)।

  • छात्रों की पृष्ठभूमि: 84% छात्र SC/ST समुदायों से हैं।

  • शिक्षकों की स्थिति: अधिकांश शिक्षक अनुबंध पर हैं, 78% की उम्र 40 वर्ष से अधिक है, और केवल 15% महिलाएँ हैं।

  • उपस्थिति: सर्वेक्षण के दिन केवल एक-तिहाई बच्चे स्कूल में उपस्थित थे।

  • शिक्षण गतिविधियाँ: 87.5% स्कूलों में सर्वेक्षण के समय कोई पढ़ाई नहीं हो रही थी। शिक्षक अक्सर रिकॉर्ड संभालने और गैर-शैक्षणिक कार्यों (जैसे APAAR नंबर बनाना) में व्यस्त रहते हैं।

  • बुनियादी सुविधाएँ: केवल 17.5% स्कूलों में काम करने योग्य शौचालय हैं। मध्याह्न भोजन की गुणवत्ता खराब है, जैसे अंडे नियमित रूप से नहीं दिए जाते।

रिपोर्ट के निष्कर्ष

रिपोर्ट दर्शाती है कि एकल-शिक्षक स्कूलों में प्राथमिक शिक्षा लगभग पूरी तरह चरमरा चुकी है, जिसका सबसे अधिक नुकसान वंचित समुदायों के बच्चों को हो रहा है। हाल ही में झारखंड उच्च न्यायालय ने इस स्थिति पर ध्यान दिया और राज्य सरकार को तत्काल शिक्षक नियुक्तियों का आदेश दिया। सरकार ने सितंबर 2025 तक 26,000 शिक्षकों की नियुक्ति का वादा किया है, लेकिन केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के अनुसार, 2020-21 में झारखंड में 95,897 शिक्षक पद खाली थे, और यह कमी अब और बढ़ चुकी हो सकती है।

निष्कर्ष

यह जनसुनवाई और सर्वेक्षण स्पष्ट करते हैं कि झारखंड के सरकारी स्कूलों, विशेषकर SC/ST क्षेत्रों में, शिक्षा व्यवस्था को तत्काल सुधार की आवश्यकता है। अभिभावकों, शिक्षकों, और अधिकारियों को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि प्रत्येक बच्चे को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिले, जो उनका अधिकार है।

(झारखंड से विशद कुमार की रिपोर्ट)

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