वाराणसी। उत्तर प्रदेश के बनारस का मुड़ैला गांव-जहां रुद्राक्ष के हर मोती में सिर्फ़ श्रद्धा ही नहीं, बल्कि सैकड़ों परिवारों की मेहनत, संघर्ष और उम्मीदें भी पिरोई जाती हैं। यह गांव सदियों से शिवभक्तों के लिए पवित्र रुद्राक्ष की मालाएं तैयार करता आ रहा है, लेकिन बदलते समय के साथ यह परंपरा अब चुनौतियों से जूझ रही है।
बढ़ती मशीनों का दखल, कच्चे माल की कमी और बाजार में बढ़ती प्रतिस्पर्धा ने इन कारीगरों के भविष्य पर सवाल खड़ा कर दिया है। फिर भी, काशी की इस प्राचीन परंपरा को बचाने के लिए यहां के लोग पूरी जिद और समर्पण के साथ डटे हुए हैं। मुड़ैला का हर घर, हर आंगन और हर हाथ रुद्राक्ष के धागे में अपने अस्तित्व को पिरोता आ रहा है, कभी भक्ति के लिए, तो कभी जीविका के लिए।

मुड़ैला कभी एक शांत, आत्मसंतोषी गांव था, लेकिन शहरीकरण की लहर में यह धीरे-धीरे शहर का हिस्सा बन गया। आधुनिकता की चकाचौंध के बीच भी इसकी गलियों में परंपरा की सांसें अब भी बहती हैं। यहां की सबसे पुरानी और महत्वपूर्ण आजीविका है-रुद्राक्ष की माला बनाना।
दुनिया भर के शिवभक्त जो रुद्राक्ष की मालाएं गले में पहनकर खुद को आध्यात्मिक ऊर्जा से जोड़ते हैं, वे शायद ही जानते होंगे कि इन पवित्र मालाओं के पीछे कितनी मेहनत, कितना दर्द और कितना शोषण छिपा है।
गांव की संकरी गलियों में कई घरों के बाहर बैठी महिलाएं और बच्चे दिनभर रुद्राक्ष की माला गूथते दिख जाएंगे। रेनू, जो इस काम में बीस साल से लगी हैं, कहती हैं, “हमारी ज़िंदगी माला गूथने और सिलने में ही बीत गई। पहले सोचा था कि बच्चों को इस काम से दूर रखेंगे, लेकिन गरीबी ने हमें यह करने नहीं दिया।”

यहां की महिलाएं सुबह सूरज उगने से पहले ही काम शुरू कर देती हैं। रुद्राक्ष छांटना, उसमें बारीक छेद करना और फिर एक-एक मोती को धागे में पिरोना-इस पूरी प्रक्रिया में घंटों लगते हैं। पर इसके बदले जो मेहनताना मिलता है, उसे सुनकर किसी का भी दिल बैठ जाए, एक माला के बदले सिर्फ़ एक से डेढ़ रुपये!
रुद्राक्ष की माला बनाना जितना आसान दिखता है, उतना ही पीड़ादायक है। घंटों झुककर धागे में मोती पिरोने से महिलाओं की कमर दर्द से अकड़ जाती है, आंखों की रोशनी धुंधली होने लगती है। 45 वर्षीय आशा देवी कहती हैं, “रुद्राक्ष में छेद करने के लिए इतनी बारीकी से देखना पड़ता है कि हमारी आंखें खराब हो गई हैं। चश्मा तो लगा सकते हैं, लेकिन उसकी भी कीमत चुकाने के लिए पैसे कहां हैं?”
55 वर्षीय मीरा देवी, जो ज़िंदगी भर इस काम में लगी रहीं, अपने झुर्रियों भरे हाथ दिखाते हुए कहती हैं, “देखिए, हमारे हाथ छिल गए हैं, उंगलियों में गांठें पड़ गई हैं। दिनभर धागा खींचते-खींचते उंगलियां सुन्न पड़ जाती हैं। लेकिन हमें कोई देखता तक नहीं।” मीरा देवी की आवाज़ में गूंजता दर्द एक सवाल बनकर खड़ा हो जाता है, “आख़िर कब तक हमारी मेहनत का हक़ हमें नहीं मिलेगा? कब तक हम शिव के नाम पर मेहनत करते रहेंगे और हमारे ही घरों में अंधेरा रहेगा?”
महिलाओं की मेहनत, सेहत पर भारी
सुबह की हल्की धूप में मुड़ैला के विसुन अपने घर के बाहर बैठकर स्फटिक, मोती और रुद्राक्ष की माला गूथने लगते हैं। उनके हाथों की उंगलियां तेज़ी से रुद्राक्ष के दानों को पिरोती हैं, लेकिन उनकी आंखों में ठहरी थकान और मन में बसी मायूसी किसी से छुपी नहीं। उम्र के साथ-साथ उनकी दृष्टि भी धुंधली हो चली है, लेकिन काम करना उनकी मजबूरी है।
वह कहते हैं, “हमारी जिंदगी ठहरी हुई है। रुद्राक्ष से कुछ बड़े कारोबारी मालामाल हो रहे हैं, वहीं हमारी स्थिति सालों से जहां की तहां है। हम चाहकर भी अपनी माली हालत नहीं सुधार सकते।”

मुड़ैला गांव की तंग गलियों में घुसते ही दर्जनों ऐसे ही विसुन मिलते हैं, जिनकी जिंदगी रुद्राक्ष के धागों में उलझी हुई है। भरत भी उन्हीं में से एक हैं। वह दिन-रात रुद्राक्ष की माला गूथने का काम करते हैं और बताते हैं, “अच्छी सेहत और धार्मिक आस्था की वजह से लोग रुद्राक्ष की मालाएं पहनते हैं, लेकिन हमें अपनी सेहत का भी ख्याल रखने का वक्त नहीं मिलता। माला गूथते-गूथते हमारी नजर कमजोर हो गई है। आमतौर पर हर फनकार की आंखें खराब हो जाती हैं, लेकिन इतनी कम कमाई में इलाज कराना आसान नहीं है। बस घिसटकर चल रही है जिंदगी।”

मुड़ैला गांव की तारा देवी ने अपनी आधी जिंदगी रुद्राक्ष की मालाएं बनाने में बिता दी। वह कहती हैं, “हमारा पूरा गांव पिछले सौ सालों से यही काम कर रहा है, लेकिन किसी की हालत नहीं सुधरी। पैसा तो बिचौलिए बना रहे हैं। बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी कर रहे हैं, गाड़ियों में घूम रहे हैं, लेकिन हमारे पास दो वक्त की रोटी तक के लिए संघर्ष है।
हम रोज़ाना मुश्किल से 15-20 रुपये ही कमा पाते हैं। नौ छोटी माला बनाकर हमें बमुश्किल 175-185 रुपये मिलते हैं। इसमें माला गूथने के अलावा, रुद्राक्ष के दानों में छेद करने की मेहनत भी शामिल होती है।”

रुद्राक्ष की इन मालाओं की कीमत बाज़ार में हज़ारों रुपये होती है, लेकिन इसे बनाने वालों का जीवन बदहाल है। तारा देवी कहती हैं, “कभी-कभी तो भूखे पेट भी सोना पड़ता है, लेकिन हम कर भी क्या सकते हैं? सरकार से कोई मदद नहीं मिलती और कारोबारी हमें हमारा हक़ देने को तैयार नहीं।”
शोषण, बेबसी और टूटते सपने
गांव की 40 वर्षीय इंदू भी बरसों से रुद्राक्ष की मालाएं बना रही हैं। वह बताती हैं, “पहले जब हम माला गूथते थे, तो कारोबारियों की नीयत ठीक थी। वे हमें सही मजूरी देते थे, हमारी जरूरतों का भी ध्यान रखते थे। लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। हमें सिर्फ़ आर्डर पूरा करने से मतलब रह गया है। हमारी तकलीफों से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता।”
इंदू आगे बताती हैं, “पहले छाते की तीली से रुद्राक्ष में छेद किया जाता था, अब यह काम मशीनों से होता है। इससे हमारी लागत बढ़ गई है। बिजली का बिल देना पड़ता है, लेकिन हमारी कमाई वही की वही रह गई है। हमारी आंखें कमजोर हो गई हैं, डॉक्टर को दिखाने के पैसे तक नहीं होते। हम जानते हैं कि आंखें हमारी जिंदगी हैं, लेकिन माला बनाना भी हमारी मजबूरी है। अगर यह काम न करें, तो खाएंगे क्या?”
रुद्राक्ष की मालाएं गूथने वालों के लिए सबसे बड़ी समस्या बिचौलियों का शोषण है। इंदू बताती हैं, “हमें भीगा हुआ रुद्राक्ष दिया जाता है, जिससे उसका वज़न बढ़ा रहता है। जब मालाएं बना लेते हैं, तो कारोबारी उसी वजन की मांग करते हैं, जिससे हमें नुकसान होता है। अगर गलती से कोई रुद्राक्ष टूट जाए, तो हमें उसकी भरपाई करनी पड़ती है। कई बार हम पर चोरी का इल्ज़ाम भी लगा दिया जाता है। लेकिन करें भी तो क्या? पेट की आग सबकुछ सहने पर मजबूर कर देती है।”

महाकुंभ जैसे बड़े धार्मिक आयोजनों के दौरान रुद्राक्ष की मांग बढ़ गई है। बनारस और हरिद्वार के बाजारों में इन्हीं महिलाओं की गूथी हुई मालाएं हजारों में बिकती हैं। लेकिन जिन हाथों ने इन्हें बनाया, उनके पास खुद पहनने के लिए ढंग के कपड़े भी नहीं हैं।
दरअसल, बिचौलियों और कारोबारियों ने इस पूरे धंधे पर कब्जा कर रखा है। मुड़ैला की महिलाएं जो माला एक रुपये में बनाती हैं, वही बाजार में 500 से 1000 रुपये तक बिकती है। लेकिन न सरकार को उनकी सुध है, न कोई और उनकी तकलीफ सुनना चाहता है।

मुड़ैला के हर घर में कोई न कोई रुद्राक्ष की माला बनाने का काम कर रहा है। यह गांव सालों से इस कला को जिंदा रखे हुए है, लेकिन यहां के लोगों की हालत जस की तस बनी हुई है। एक तरफ़ रुद्राक्ष के दानों से करोड़ों का कारोबार हो रहा है, वहीं दूसरी तरफ़ उन्हें गूथने वालों के हाथों में चंद सिक्के ही आते हैं।
थकते हाथ और सूनी आंखें
65 वर्षीया मुन्नी देवी के दो बच्चे हैं, जिन्हें रुद्राक्ष की माला बनाकर पाला-पोसा। अब इनकी सेहत ने जवाब दे दिया है। वह चाहकर भी मालाएं नहीं गूथ पाती हैं। कहती हैं, “जब तक शरीर में जान थी, हमने मालाएं बनाई। अब हिम्मत जवाब दे चुकी है। पहले हमारे पति रुद्राक्ष में छेद करते थे और हम मालाएं गूथते थे। उनके निधन के बाद सब कुछ पीछे छूट गया।”
कई सालों से रुद्राक्ष की माला गूथने वाली मंजू का दर्द भी कम नहीं है। वह कहती हैं, “महाकुंभ के चलते बनारस में तीर्थयात्रियों का रेला उमड़ रहा है। रुद्राक्ष की मालाओं की डिमांड बन गई है। माला के विक्रेता मनमाने दाम पर मालाएं बेच रहे हैं, लेकिन हमारी मजूरी में एक पैसे का इजाफा नहीं हुआ है। अलबत्ता हमारे ऊपर अधिक मालाएं गूथने का प्रेशर बढ़ा दिया गया है।
दिन-रात मेहनत कर रहे हैं, फिर भी जहां के तहां हैं। हमारी रोजाना की कमाई 15-20 रुपये से ज्यादा नहीं होती है। ऐसे में समझा जा सकता है कि हमारी जिंदगी कैसी चल रही होगी।

मुड़ैला गांव में महिलाएं भी बड़ी संख्या में इस कार्य से जुड़ी हुई हैं। यहां की महिलाएं रुद्राक्ष में छेद करने और उसे माला में पिरोने का कार्य करती हैं। शोभा देवी, जो वर्षों से इस कार्य में संलग्न हैं, बताती हैं कि यह गांव के सैकड़ों परिवारों के लिए आजीविका का मुख्य साधन बन चुका है।
मुड़ैला गांव की महिलाएं चाहती हैं कि उन्हें उनकी मेहनत का सही मूल्य मिले। वे चाहती हैं कि सरकार इस ओर ध्यान दे और उनके लिए कोई योजना बनाए। वे संगठित होना चाहती हैं, लेकिन संसाधनों और जानकारी की कमी उन्हें रोक देती है।
मुड़ैला गांव की यह कहानी सिर्फ़ एक गांव की नहीं, बल्कि उन हजारों मेहनतकश महिलाओं की है, जो पारंपरिक कामों में लगी हैं, लेकिन उनके हक़ की लड़ाई अब भी बाकी है। बड़ा सवाल यह है कि शिव की भक्ति से भरी इन मालाओं में छिपे दर्द को आखिर कब तक नजरअंदाज किया जाता रहेगा?
रुद्राक्ष का विश्व स्तरीय केंद्र
वाराणसी का एक छोटा सा गांव है मुड़ैला, जो विश्वभर में रुद्राक्ष की मालाओं और आभूषणों के निर्माण के लिए प्रसिद्ध हो चुका है। यह गांव वर्षों से शिवभक्तों और साधकों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान बना हुआ है, क्योंकि यहां के कुशल कारीगर रुद्राक्ष से बनी माला, मुकुट, ब्रेसलेट, बाजूबंद, जैकेट और टोपी तैयार करते हैं।
मुड़ैला गांव में रुद्राक्ष से जुड़ा कार्य सैकड़ों वर्षों से पारंपरिक रूप से चला आ रहा है। यहां के एक बड़े कारोबारी छोटेलाल पटेल बताते हैं कि इस व्यवसाय की शुरुआत करीब 100 साल पहले हुई थी, जब नेपाल और इंडोनेशिया से आयात किए गए रुद्राक्षों को स्थानीय कारीगरों ने विशेष प्रकार की मालाओं और आभूषणों में तब्दील करना शुरू किया। इस गांव के प्रमुख कारीगर बाबूलाल बताते हैं कि यह काम उनके परिवार में चार पीढ़ियों से चला आ रहा है।

आज, मुड़ैला भारत में रुद्राक्ष व्यापार का प्रमुख केंद्र बन चुका है। यहां हर साल लगभग 70 टन रुद्राक्ष का व्यापार होता है। यह रुद्राक्ष काशी के विश्वनाथ मंदिर से लेकर हरिद्वार, मथुरा, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत तक पहुंचता है। विदेशी पर्यटक भी यहां के रुद्राक्ष के बड़े प्रशंसक हैं।
रुद्राक्ष की माला बनाने की प्रक्रिया अत्यंत रोचक और श्रमसाध्य होती है। कारीगर राजकुमार बताते हैं कि लाखों-करोड़ों छोटे-छोटे रुद्राक्ष दानों की गिनती करने के लिए एक विशेष तकनीक का उपयोग किया जाता है। पहले इन दानों को छलनी से अलग-अलग आकार में बांटा जाता है। इसके बाद, एक विशेष ट्रे का उपयोग कर इन्हें गिना जाता है। इस ट्रे में 500 छेद होते हैं, जिसमें डालने पर दाने स्वतः गिन लिए जाते हैं। इससे न केवल गिनती में सुविधा होती है, बल्कि समान आकार के रुद्राक्ष भी अलग हो जाते हैं।
इसके बाद, इन रुद्राक्षों को सुई से छेदा जाता है, और धागे या सोने-चांदी की तारों में पिरोया जाता है। कारीगर विशेष मंत्रों के उच्चारण के साथ इन मालाओं को तैयार करते हैं, जिससे इनकी आध्यात्मिक ऊर्जा बनी रहे।
मुड़ैला गांव की ख्याति अब राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फैल रही है। यहां के कारीगरों की मेहनत और निपुणता ने इस छोटे से गांव को विश्व पटल पर स्थापित कर दिया है। यही कारण है कि वाराणसी आने वाले हर शिवभक्त की पहली पसंद मुड़ैला की बनी रुद्राक्ष मालाएं होती हैं। विदेशों में भी मुड़ैला के रुद्राक्ष की भारी मांग है। नेपाल, श्रीलंका, थाईलैंड, इंडोनेशिया, जापान, अमेरिका और यूरोप के कई देशों से व्यापारी यहां के रुद्राक्ष को खरीदने आते हैं।

रुद्राक्ष और आधुनिक तकनीक का मेल
हालांकि, बढ़ती मांग को देखते हुए कारीगर अब आधुनिक उपकरणों और तकनीकों को अपनाने पर भी विचार कर रहे हैं। रुद्राक्ष की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए अब ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का भी सहारा लिया जा रहा है। ई-कॉमर्स वेबसाइटों पर अब मुड़ैला के हस्तनिर्मित रुद्राक्ष उत्पाद उपलब्ध हैं। इसके अलावा, रुद्राक्ष की शुद्धता की जांच के लिए एक्स-रे, सीटी स्कैन और माइक्रोस्कोपिक टेस्टिंग जैसी नई तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है। इससे नकली रुद्राक्ष की पहचान करना आसान हो गया है।
हालांकि, इतने बड़े स्तर पर व्यापार होने के बावजूद, मुड़ैला के कारीगरों को सरकार की ओर से अधिक सहयोग की आवश्यकता है। गांव के कारीगर चाहते हैं कि सरकार उनके व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए प्रशिक्षण केंद्र, आधुनिक मशीनें और वैश्विक विपणन की सुविधा उपलब्ध कराए।
इससे मुड़ैला को एक औद्योगिक हब के रूप में विकसित किया जा सकता है। बनारस के डोमरी गांव में भी महिलाएं रुद्राक्ष की मालाएं बनाती हैं। इस गांव को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गोद लिया था। यहां की श्रमिक महिलाएं भी उपेक्षा की शिकार हैं।
काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत राजेंद्र तिवारी कहते हैं, “मुड़ैला गांव का रुद्राक्ष उद्योग केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि एक विरासत है। यह गांव हजारों परिवारों की रोज़ी-रोटी का साधन है और इसे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने की जरूरत है। कारीगरों की हुनरमंद कला और मेहनत ने इस छोटे से गांव को रुद्राक्ष उद्योग का केंद्र बना दिया है।
यदि सरकार और स्थानीय प्रशासन इस पर ध्यान दें, तो मुड़ैला को एक वैश्विक हस्तशिल्प हब के रूप में विकसित किया जा सकता है। काशी में बाबा विश्वनाथ के दर्शन के बाद हर शिवभक्त की यात्रा तब तक अधूरी मानी जाती है, जब तक वह मुड़ैला के पवित्र रुद्राक्ष की माला अपने साथ लेकर न जाए।”
मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए अमृत
साल 2005 में मुंबई यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अपनी रिसर्च में बताया कि रुद्राक्ष हृदय रोगियों और डायबिटीज से पीड़ित लोगों के लिए फायदेमंद होता है। इसे गले में पहनना सबसे प्रभावी माना जाता है। 108 मनकों वाली रुद्राक्ष माला इस तरह पहनी जाती है कि यह हृदय क्षेत्र को बार-बार स्पर्श करे, जिससे हृदय गति संतुलित बनी रहती है।
बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (BHU) में एस्ट्रोलॉजी के लेक्चरर डॉ. इंद्र बली मिश्रा बताते हैं कि, “रुद्राक्ष की माला पहनने से तनाव और अवसाद (डिप्रेशन) दूर रहता है। यह मानसिक बीमारियों में लाभकारी माना जाता है। कुछ लोग इसे सिर पर भी पहनते हैं, खासकर वे जो गंभीर मानसिक बीमारियों से जूझ रहे होते हैं। ऐसे लोग चार, पांच और छह मुखी वाले 550 मनकों को धागे में पिरोकर पहनते हैं।”
डॉ. इंद्र बली मिश्रा के अनुसार, “रुद्राक्ष के मनकों को रातभर पानी में भिगोकर सुबह खाली पेट पीने से सेहत को लाभ होता है। इससे ब्लड प्रेशर (रक्तचाप) नियंत्रित रहता है और हार्टबीट (हृदयगति) सामान्य बनी रहती है। वह कहते हैं, “इसे रुद्राक्ष का मुकुट भी कहा जाता है, जिसे पहनने से मानसिक विकारों में सुधार आने की मान्यता है। ध्यान (मेडिटेशन) के लिए भी कई लोग सिर पर रुद्राक्ष की लड़ियां पहनते हैं। आयुर्वेद के अनुसार, रुद्राक्ष के मनके ध्यान, एकाग्रता और मानसिक शक्ति को बढ़ाने में मदद करते हैं।”

BHU के वैज्ञानिक डॉ. सुबास रॉय की रिसर्च के अनुसार, रुद्राक्ष में इलेक्ट्रोमैग्नेटिक गुण (Electromagnetic Properties) होते हैं, जिससे हल्की इलेक्ट्रिक इम्पल्सेज निकलती हैं। जब रुद्राक्ष को शरीर पर पहना जाता है, तो यह मस्तिष्क (ब्रेन) पर सकारात्मक प्रभाव डालता है। यह डोपामाइन और सेरोटोनिन हार्मोन के स्तर को नियंत्रित कर मानसिक शांति प्रदान करता है।
‘रुद्राक्ष: सीड्स ऑफ कम्पैशन’ पुस्तक में डॉ. निबोधी हास लिखते हैं कि, “गले, सिर या भुजा पर रुद्राक्ष पहनने से मिर्गी के रोगियों को लाभ मिलता है। 11 मुखी रुद्राक्ष को सिर पर धारण करने से सिर दर्द और माइग्रेन में आराम मिलता है और मेमोरी (याददाश्त) मजबूत होती है। रुद्राक्ष मोबाइल फोन से निकलने वाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन के दुष्प्रभाव को भी कम करता है। इसमें एंटी-एजिंग (Anti-Aging) गुण भी होते हैं, जो त्वचा को जवान बनाए रखने में सहायक हैं।”
डॉ. निबोधी के मुताबिक, “रुद्राक्ष का पानी घाव को जल्दी भरने में मदद करता है। त्वचा पर लगाने से संक्रमण दूर करता है। सर्दी-खांसी ठीक करने में भी यह उपयोगी है। इस पानी से आंखें धोने पर आंखों की समस्याओं में आराम मिलता है। त्वचा जलने पर रुद्राक्ष पाउडर को चंदन पाउडर या नारियल तेल में मिलाकर लगाने से राहत मिलती है। रुद्राक्ष की पहचान के लिए इसे दो भागों में काटकर देखा जा सकता है। इसके अंदर की संरचना बाहर के मुखों से मेल खाती है या नहीं, इसका परीक्षण एक्स-रे या सीटी स्कैन द्वारा किया जा सकता है।”
सौंदर्य और आयुर्वेद में रुद्राक्ष
रुद्राक्ष मिले पानी से स्नान करने पर त्वचा में निखार आता है। रुद्राक्ष पाउडर को मंजिष्ठा पाउडर, शहद और घी के साथ मिलाकर चेहरे पर लगाने से त्वचा स्वस्थ रहती है। रुद्राक्ष इनसोम्निया (अनिद्रा), बवासीर (पाइल्स), लिवर, पीलिया (जॉन्डिस) और पेट की बीमारियों में भी लाभकारी होता है।
‘द पॉवर ऑफ रुद्राक्ष’ पुस्तक के लेखक कमल नारायण सीठा बताते हैं, “गले में रुद्राक्ष पहनने से टॉन्सिल, थायरॉइड जैसी बीमारियों में राहत मिलती है। रुद्राक्ष का फल पहले हरा, फिर नीला और अंत में गहरे भूरे रंग का हो जाता है। धार्मिक महत्व के कारण इसे धारण किया जाता है, लेकिन इसके स्वास्थ्य लाभ भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं।”
“भारत में अधिकतर पंचमुखी (5 मुखी) रुद्राक्ष पाए जाते हैं, जो करीब 99 फीसदी तक की उपलब्धता रखते हैं। हालांकि, नेपाल और श्रीलंका में 15 मुखी या उससे अधिक मुख वाले दुर्लभ रुद्राक्ष मिलते हैं। रुद्राक्ष केवल एक धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं है, बल्कि स्वास्थ्य और मनोवैज्ञानिक लाभ के लिए भी महत्वपूर्ण है।”

सीठा यह भी बताते हैं, “रुद्राक्ष तनाव, चिंता और मानसिक अवसाद से राहत देता है, हृदय और तंत्रिका तंत्र को मजबूत करता है, और शरीर में ऊर्जा प्रवाह को संतुलित रखता है। यही कारण है कि सदियों से साधु-संत, योगी और आम लोग रुद्राक्ष को एक दिव्य रत्न की तरह धारण करते आ रहे हैं। रुद्राक्ष खरीदते समय इसकी सही पहचान अवश्य करें, क्योंकि बाजार में नकली रुद्राक्ष भी बड़ी संख्या में मिलते हैं। असली रुद्राक्ष पानी में डालने पर डूब जाता है, जबकि नकली रुद्राक्ष तैरता रहता है। इसलिए खरीदने से पहले इसकी जांच कर लेना जरूरी है।”
“पुराने समय में रुद्राक्ष को चींटियों और खराब होने से बचाने के लिए इसे केसर, हल्दी, पीली सरसों, कुमकुम और अश्वगंधा के साथ रखा जाता था। मनकों को सुरक्षित रखने और उनका रंग गहरा करने के लिए सरसों या चंदन के तेल में डुबोकर रखा जाता था। आज भी इन्हीं पारंपरिक तरीकों से रुद्राक्ष को संरक्षित किया जाता है। जब नई रुद्राक्ष माला ली जाती है, तो उसे पहले एक सप्ताह तक सरसों के तेल में डुबोकर रखना चाहिए, जिससे उसकी गुणवत्ता बनी रहे।”

विभिन्न मुखी रुद्राक्ष और उनके स्वास्थ्य लाभ
1 मुखी रुद्राक्ष – अस्थमा, हृदय रोग, एंग्जायटी, लकवा (पैरालिसिस) और स्ट्रोक में लाभकारी।
2 मुखी रुद्राक्ष – नकारात्मक विचारों को दूर करने में मददगार।
3 मुखी रुद्राक्ष – डिप्रेशन से राहत दिलाने में सहायक।
4 मुखी रुद्राक्ष – रक्त संचार (ब्लड सर्कुलेशन) में सुधार करता है।
5 मुखी रुद्राक्ष – हृदय रोगों के उपचार में सहायक।
6 मुखी रुद्राक्ष – न्यूरोलॉजिकल विकारों (मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र की बीमारियों) में मदद करता है।
7 मुखी रुद्राक्ष – श्वसन तंत्र (Respiratory System) को मजबूत करता है।
8 मुखी रुद्राक्ष – एंग्जायटी और त्वचा रोगों (Skin Diseases) में प्रभावी।
10 मुखी रुद्राक्ष – शरीर में हार्मोन्स का संतुलन बनाए रखता है।
11, 12 और 13 मुखी रुद्राक्ष – इनके भी अलग-अलग विशेष गुण होते हैं।
(विजय विनीत वरिष्ठ पत्रकार हैं। बनारस के मुड़ैला गांव से उनकी ग्राउंड रिपोर्ट)
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