नई दिल्ली। दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार लगातार दावा करती आ रही है कि वो दिल्ली के सभी स्कूलों में दोनों जून खाना उपलब्ध करवाकर 20 लाख दिल्ली वासियों का पेट भर रही है। लेकिन हकीकत दावे के उलट नज़र आ रही है। सरकार द्वारा उपलब्ध करवाया जा रहा कथित खाना ज़रूरतमंदों तक पहुँच ही नहीं रहा। इसके दो कारण हैं। पहला ये कि सरकार की कोशिश रिहायशी इलाके में स्थित स्कूलों के इर्द-गिर्द तक ही सिमट कर रह जा रही है। ऐसे में कूड़ा बीनने वाले वर्ग जो बेहद इंटीरियर इलाकों में रहता है जहाँ स्कूल नहीं वहां तक खाना नहीं पहुंच पाता है। इसी तरह सरकार द्वारा उपलब्ध करवाया जा रहा खाना मंडी हाउस जैसे गैर रिहाइशी इलाकों से भी दूर है।
बता दें कि निर्माण क्षेत्र में काम करने वाले करीब 20 मजदूर (स्त्रियां, बच्चों समेत) मंडी हाउस में भूखे प्यासे फंसे हुए हैं। स्त्रियों के गोद में बैठी छोटी-छोटी बच्चियों के भूख से परपराए होठों और निराश आँखों में झाँकने के बाद कलेजा मुँह को आ जाता है।
ये लोग मधेपुरा (बिहार) क्षेत्र से जदयू के लोकसभा सांसद दिनेश चंद्र यादव की कोठी के पिछले हिस्से में रहते हैं। ये मजदूर दरअसल सांसदों की कोठियों का मेंटिनेंस करने वाले ठेका मजदूर हैं। सांसदों की कोठियों की मरम्मत करने का काम CPWD के अंतर्गत आता है। उनका ठेकेदार रूबी इंडिया गेट के आस-पास कहीं रहता है। लॉक डाउन के बाद वो एक दो बार मंडी हाउस क्षेत्र में दिखा लेकिन वह इन मजदूरों की ओर देखे बगैर ही वापस लौट जाता है।

इन मजदूरों में कुछ बिहार के बांका, वैशाली, सहरसा , पूर्णिया जिले से और कुछ मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले से हैं। ये लोग तीन महीने पहले ही दिल्ली आए हैं। इनका ठेकादार रूबी इंडिया गेट के आस पास कहीं रहता है। बीच में दो तीन बार आया था देखकर चला गया दूर से ही।
पीड़ित मजदूर सुनीता कहती हैं- “12-13 दिन से कुछ नहीं खाया। वो कहती हैं हम लोगों को तो कुछ मिल नहीं रहा तो उनको कहां से खिलाएंगे। लॉक डाउन के बाद से हम भूखे पड़े हैं।”
एक मजदूर भूपेंदर बताते हैं कि कोरोना लॉक डाउन के चलते हम बाहर नहीं निकल रहे हैं। कोरोना बाहर निकलने पर पकड़ने की संभावना ज़्यादा होती है इसलिए हम बाहर नहीं निकल रहे हैं और भूखे प्यासे यहीं पड़े हैं।
पीड़ितों में बबलू. चंदन सिंह, नरेंदर, पूजा, लक्ष्मी, सकुनबाई, सुनीता, खुशबू, अर्चना, अनुराग, महेंदर, भूपेंदर आदि ने हमसे अपनी व्यथा सुनाई।
महेंदर कहते हैं – बाहर बंगाली मार्केट वगैरह सब सील कर दिए गए हैं। चूंकि ये रिहायशी इलाका नहीं है तो इस वजह से भी लॉक डाउन के बाद से ही यहां के बाजार बंद हो गए थे। आस-पास कोई छोटी मोटी दुकान खुली ही नहीं है। बाहर दिन-रात पुलिस तैनात रहती है। बाहर निकलना बेमौत मरना है। बाहर निकले तो कोरोना से पहले पुलिस ही मार देगी।
बबलू कहते हैं- लॉक डाउन के बाद हम यहाँ फंस गए हैं। हमारे समझ में नहीं आ रहा कि हम कहाँ जाएं, क्या करें।
(दिल्ली से अवधू आज़ाद की रिपोर्ट।)
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