यह सर्वविदित है कि संघ परिवार तथा उसका राजनीतिक संगठन भाजपा अपने उदय काल से ही न केवल अल्पसंख्यक विरोधी रहे हैं,बल्कि वे दलित,पिछड़ों और जनजाति समाज से भी घृणा करते हैं, क्योंकि उनके हिन्दूराष्ट्र की अवधारणा मूलतः मनुस्मृति पर आधारित एक ब्राह्मण राष्ट्र है, जिसमें दलित-पिछड़ों और अल्पसंख्यकों की कोई जगह नहीं है। संविधान द्वारा दलित-पिछड़ों और अल्पसंख्यक जाति के पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई, जिससे वे भी राष्ट्र की मुख्यधारा में सम्मिलित हो सकें।
संघ परिवार को यह आरक्षण की व्यवस्था हमेशा खटकती रही, इसलिए वे समय-समय पर इसको हटाने की कवायद करते रहते हैं तथा लगातार इस आरक्षण को कमज़ोर करने की कोशिश करते रहते हैं। भाजपा द्वारा उच्चवर्गों के ग़रीबों (ईडब्ल्यूएस) को दिया जाने वाला आरक्षण इसका प्रमाण है। संघ सर संचालक मोहन भागवत से लेकर भाजपा के वरिष्ठ नेता तक कभी सीधे कभी घुमा-फिराकर इस आरक्षण के ख़िलाफ़ बयान देते रहते हैं। अजय सिंह बिष्ट उर्फ़ योगी आदित्यनाथ; जो गोरखनाथ मठ के महंत होने के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी हैं, उनकी अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ नफ़रत सर्वविदित है।
उनकी आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर देखें, वहां उनके लिखे अनेक लेख हैं। ज़्यादातर लेख हिन्दुत्व की राजनीति पर हैं, परन्तु उसमें एक लेख दलित-पिछड़ों को वर्तमान समय पर दिए जा रहे आरक्षण व्यवस्था पर भी है। यह लेख न केवल योगी आदित्यनाथ की बल्कि सम्पूर्ण भाजपा की आरक्षण के प्रति उनकी अवस्थिति को बतलाता है।
‘आरक्षण की आग में सुलगता देश’ नामक लेख के पहले ही अनुच्छेद में वे लिखते हैं, कि “किसी भी समाज अथवा जाति को अगर अकर्मण्य अथवा निकम्मा बनाना है, तो उसे बिना कर्म किए सुविधा प्रदान करते जाइए, निश्चित ही एक समय बाद अकर्मण्यता और निकम्मापन उस जाति अथवा समाज में सर्वत्र दिखाई देगा। भारत की विभाजनकारी राजनीति ने आज़ादी के बाद इस देश और समाज को स्वावलंबी के बजाय अधिकाधिक संकीर्ण और अकर्मण्य अवश्य बनाया है।”
अगर हम इस लेख के पहले ही भाग का विश्लेषण करें, तो इसमें योगी आदित्यनाथ की दलित-पिछड़ों के ख़िलाफ़ कूट-कूटकर भरी नफ़रत सामने आती हैं। आज़ादी के बाद संविधान में दलित-पिछड़ों तथा जनजाति समाज के लिए इसलिए आरक्षण की व्यवस्था की गई थी, क्योंकि हज़ारों साल से उनके ख़िलाफ़ भेदभाव किया गया और उन्हें शिक्षा से वंचित रखा गया। मनुस्मृति के अनुसार जाति विभाजन में केवल ब्राह्मण तथा उच्चजातियों के लिए शिक्षा की व्यवस्था थी, इसलिए आरक्षण की व्यवस्था की गई, परन्तु योगी आदित्यनाथ आरक्षण को अकर्मण्य और संकीर्ण समाज बनाने वाला बता रहे हैं।
वे आगे एक जगह लिखते हैं- “जाति व्यवस्था का दुष्परिणाम इस देश को कितना नुकसान पहुंचाएगा, इस बात को कहना कठिन है, लेकिन इसके कारण जो सामाजिक असमानता फैली है, उसे समाप्त करने के लिए स्वतंत्र भारत ने जो तैयारी और तरकीबें निकाली हैं, उसने यह खाई और बढ़ाई है।” योगी आदित्यनाथ यहां पर दलित-पिछड़ी जातियों के साथ जो असमानता और भेदभाव हो रहा है, उसे दूर करने का तो कोई उपाय नहीं बताते हैं, बल्कि आरक्षण ख़त्म करने के लिए ही नये-नये तर्क गढ़ते दिखाई देते हैं।
इसी लेख में वे एक जगह लिखते हैं,कि “अछूत कहे जाने वाले जिस तबके को सामाजिक और आर्थिक रूप से समोन्नत बनाने के लिए जो व्यवस्था की गई, उसकी ईमानदारी से कभी समीक्षा नहीं हुई। ईमानदारी से समीक्षा होती, तो आरक्षण का यह भयावह दृश्य सामने नहीं आता।” यहां पर योगी आदित्यनाथ यह नहीं बताते हैं, कि आज़ादी के बाद दलितों को दिए गए आरक्षण तथा मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू होने पर पिछड़ों को 27% आरक्षण देने की व्यवस्था के बावज़ूद अभी भी राज्य और केन्द्र सरकार के विभागों, सरकारी सहायता प्राप्त विश्वविद्यालयों और शिक्षण संस्थाओं में इन वर्गों के लाखों पद अभी भी खाली पड़े हैं, जिन्हें योग्य प्रत्याशी न मिलने का बहाना बनाकर उच्चवर्ग के ग़रीबों (ईडब्ल्यूएस) को दिए जा रहे आरक्षण से भरा जा रहा है, इसलिए अगर सचमुच आरक्षण की समीक्षा कर ली जाए, तो यह सच्चाई सामने आ जाएगी। यही कारण है कि भाजपा सरकार तक आरक्षण की समीक्षा नहीं करना चाहती, क्योंकि इससे इसकी वास्तविकता सामने आ जाएगी।
एक जगह वे लिखते हैं, कि “अब आरक्षण के साथ राजनीति जुड़ गई और जब भी किसी अच्छे उद्देश्य के साथ राजनीति जुड़ेगी, तो उसका बंटाधार होना तय है।” वास्तव में उनका यह बयान ख़ुद ही एक राजनीतिक बयान है। दलितों-पिछड़ों को आरक्षण देने से राजनीति में उनकी भागीदारी बढ़ी; विशेष रूप से मंडल कमीशन की रिपोर्ट आने के बाद। पिछड़ों का एक वर्ग भी राजनीति में भागीदारी की बात करने लगा। सामाजिक न्याय की इन ताक़तों ने हिन्दुत्व की राजनीति को जबरदस्त चुनौती दी, योगी आदित्यनाथ का असली क्रोध इसी कारण से है।
अपने इस लेख में सच्चर कमीशन की रिपोर्ट की भी चर्चा करते हैं। इस कमीशन की स्थापना कांग्रेस सरकार ने मुसलमानों की आर्थिक-सामाजिक स्थिति का विश्लेषण करने के लिए बनाया था, इस रिपोर्ट से पता लगा कि इस देश में मुसलमानों की आर्थिक-सामाजिक स्थिति दलित-पिछड़ों से भी ज़्यादा ख़राब है। योगी आदित्यनाथ अपने लेख में इसके बारे में लिखते हैं, कि “अब इस रिपोर्ट को आधार बनाकर मज़हबी आधार पर भी आरक्षण की मांग होने लगेगी जो ख़तरनाक है।” लेकिन वे यह नहीं बताते हैं कि मुसलमानों को अगर आरक्षण नहीं मिलता है, तो उनकी आर्थिक,सामाजिक और शैक्षिक स्थिति को बेहतर बनाने के लिए सरकार का क्या एजेंडा है?
परन्तु उनका मुख्य एजेंडा तो मुसलमानों के ख़िलाफ़ केवल नफ़रत भी फैलाना है। लेख के अंत में वे लिखते हैं, कि “अगर इस राष्ट्र को स्वावलंबी और शक्तिशाली बनाना है तो उसका उपचार आरक्षण नहीं, अपितु राष्ट्र के प्रत्येक नागरिक को प्रतिभा के अनुसार सम्मान देना ही हो सकता है।” वास्तव में प्रतिभा का यह तर्क बहुत से लोग आरक्षण को समाप्त करने के तर्क के रूप में देते हैं। एक सामान्य सी बात है कि हज़ारों वर्ष से दबी-कुचली और पिछड़ी जातियां अभी भी लम्बे समय तक बिना आरक्षण के उच्चजातियों से मुक़ाबला नहीं कर सकती हैं।
दुर्भाग्यवश आज बहुसंख्यक दलित-पिछड़े वर्ग हिन्दुत्व की राजनीति के सारथी बने हुए हैं, उनकी आंख अब ज़रूर खुलनी चाहिए, क्योंकि हिन्दूराष्ट्र में अल्पसंख्यकों के साथ-साथ बहुजन समाज; जिसमें दलित-पिछड़े और जनजाति समाज के लोगों का भी कोई स्थान है।
(स्वदेश कुमार सिन्हा स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
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