फ्रांस के वामपंथियों ने फिलहाल फ्रांस की सत्ता पर कब्जे के धुर दक्षिणपंथियों की तय सी लगती उम्मीद को नाकाम बना दिया। वामपंथी पार्टियों के गठजोड़ ‘लेफ्टविंग न्यू पॉपुलर फ्रंट’ ने (leftwing New Popular Front) कुल 577 सीटों में 182 पर जीत हासिल कर सबसे बड़े ग्रुप के तौर पर उभरी। लेफ्टविंग न्यू पॉपुलर फ्रंट को कुल पड़े मतों का 26.9 प्रतिशत मिला है। राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की पार्टी रेनेंसा (सेंटरिस्ट centrist) और उनकी सहयोगी पार्टियों के गठजोड़ को 163 सीटें और 22.3 प्रतिशत वोट मिला है। मरीन ले पेन की पार्टी-नेशनल रैली को 143 सीटें मिली हैं, लेकिन उनकी पार्टी को 37.3 प्रतिशत वोट मिला है।
वोट प्रतिशत के संदर्भ में देखें तो धुर दक्षिणपंथी पार्टी को वामपंथी पार्टियों के गठजोड़ से करीब 10 प्रतिशत वोट अधिक मिला है। राष्ट्रपति मैक्रों की सेंटरिस्ट पार्टी और उनके सहयोगियों से 15 प्रतिशत वोट अधिक मिला है। भले धुर दक्षिणपंथी पार्टी को 37.3 प्रतिशत फ्रेंच मतदाताओं ने वोट दिया, लेकिन 60 प्रतिशत मतदाताओं ने धुर दक्षिणपंथ को खारिज किया है। यह परिणाम फ्रांस, यूरोप और दुनिया के लिए फिलहाल एक राहत भरी खबर लेकर आया है।
इस चुनाव में फ्रांस के वामपंथी ग्रुपों ने दुनिया भर के वामपंथी ग्रुपों के लिए एक रास्ता खोला है। फ्रांस के वामपंथी ग्रुपों की इस रणनीति और कार्यनीति से दुनिया भर के वामपंथी समूह अपने लिए कुछ सबक सीख सकते हैं। पहला सबक यह है कि जिन्हें सेंटरिस्ट या लिबरल पार्टियां कहा जाता है (जैसे भारत में कांग्रेस)। उनके सामने वैचारिक और राजनीतिक तौर पर समर्पण किए बिना भी, उनका पिछलग्गू हुए बिना भी कैसे धुर दक्षिणपंथी पार्टी को हराया जा सकता है या सत्ता पर कब्जा करने से रोका जा सकता है। कैसे अपने एजेंडों को छोड़े बिना और उन पर मजबूती से कायम रहकर ही तात्कालिक और दीर्घकालिक तौर पर धुर दक्षिण पंथ को सत्ता पर कब्जा करने से रोका जा सकता है।
फ्रांस के वामपंथी ग्रुपों के गठजोड़ लेफ्टविंग न्यू पॉपुलर फ्रंट ने धुर दक्षिण पंथी पार्टी को सत्ता पर कब्जा करने या सत्ता से बेदखल करने की रणनीति और कार्यनीति क्या होनी चाहिए यह सिखाया है। यह सच है कि हर देश की अपनी विशिष्ट परिस्थिति होती है, उसके लिए कुछ विशिष्ट रणनीति और कार्यनीति होगी। लेकिन फ्रांस के वामपंथियों ने दुनिया भर के वामपंथ के लिए एक धुर दक्षिण पंथ से खिलाफ संघर्ष के तरीके का एक नया रास्ता खोला है और धुर दक्षिण पंथ के विरोधी जनता के सामने एक विकल्प मुहैया कराता है।
मरीन ले पेन की पार्टी-नेशनल रैली (धुर दक्षिणपंथी पार्टी) को सत्ता पर कब्जा करने से रोकने के लिए फ्रांस के वामपंथी गठजोड़ लेफ्टविंग न्यू पॉपुलर फ्रंट ने क्या रणनीति और कार्यनीति अख्तियार किया। 6 से 9 जून के बीच 27 सदस्यीय यूरोपियन यूनियन के संसद का चुनाव हुआ। इस यूनियन का एक सदस्य फ्रांस भी है। यूरोपियन यूनियन की संसद के लिए कुल 720 सदस्य चुने जाते हैं। इसमें 81 सदस्य फ्रांस से चुने जाते हैं।
फ्रांस के चुने गए इन 81 सदस्यों में 30 सदस्य इस बार मरीन ले पेन की पार्टी के चुने गए। इस चुनाव परिणाम के बाद फ्रांस के राष्ट्रपति ने संसद भंग कर संसदीय चुनावों की घोषणा कर दी। चुनाव पूर्व अनुमान इस बात की पूरी संभावना प्रकट कर रहे थे कि इस बार के संसदीय चुनावों में मरीन ले पेन की पार्टी- नेशनल रैली बहुमत हासिल कर सकती है। कुल 577 सीटों में बहुमत के लिए जरूरी 289 सीटें प्राप्त कर सकती है।
30 जून और 7 जुलाई को दो चरणों में नेशनल असेंबली सांसदों के चुनाव के लिए मतदान हुआ। फ्रांस में सांसदों का चुनाव जिले के आधार पर होता है। एक संसदीय उम्मीदवार को जीत के लिए 50% से अधिक मतों की जरूरत होती है। ऐसा न होने पर, शीर्ष दो दावेदारों के साथ-साथ 12.5% से अधिक पंजीकृत मतदाताओं का समर्थन हासिल करने वाले किसी भी अन्य उम्मीदवार को दूसरे चरण में प्रवेश मिलता है। कुछ मामलों में तीन या चार लोग दूसरे दौर में पहुंच जाते हैं। हालांकि, कुछ लोग दूसरे दावेदार की संभावनाओं को बेहतर बनाने के लिए पीछे हट सकते हैं।
राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की पार्टी रेनेंसा ने दक्षिण पंथ आने वाला है, दक्षिणपंथ सत्ता पर कब्जा करने वाला है, इसका भय दिखाकर मरीन ले पेन की धुर दक्षिणपंथ का विरोध करने वाली सभी पार्टियों को अपने साथ आने आह्वान किया। उन्हें उम्मीद थी कि धुर दक्षिणपंथ को हराने के लिए सभी पार्टियां उनके पीछे रैली-राउंड हो जाएंगी। लेकिन फ्रांस की वामपंथी पार्टियों ने ऐसा नहीं किया। इन पार्टियों ने मैक्रों का पिछलग्गू बनने की जगह या उनके साथ गठजोड़ कायम करने की जगह अलग तरह की रणनीति और कार्यनीति अख्तियार की।
अलग-अलग काम करने सभी वामपंथी ग्रुपों ने आपस में गठजोड़ कायम किया। इस गठजोड़ में चरम वामपंथी कही जाने वाली पार्टियों से लेकर सोशल-डेमोक्रेट कही जाने वाली पार्टियां भी शामिल हुईं। जिसको उन्होंने लेफ्टविंग न्यू पॉपुलर फ्रंट कहा। उनके साथ ग्रीन पार्टी भी जुड़ी। लेफ्ट विंग ने ले पेन की धुर दक्षिपंथी सामाजिक-सांस्कृतिक विचारों और प्रस्तावित नीतियों पर तीखा प्रहार किया। खासकर आव्रजन (immigration) और धार्मिक अल्पसंख्यक (विशेषकर मुसलमानों) संबंधी विचारों और नीतियों पर।
जब फ्रांस की संसद में पिछले दिनों इमीग्रेशन संबंधी विधेयक पारित हुआ, तो राष्ट्रपति मैक्रों की पार्टी और मरीन ले पे की पार्टी एक साथ खड़े थे। सिर्फ वामपंथियों ने इसका विरोध किया। लेफ्टविंग मैक्रों रनेंसा पार्टी की दक्षिणपंथी नीतियों पर भी तीखा हमला बोला। दोनों की एक तरह की नीतियों पर समान रूप से हमला किया।
वामपंथी पार्टियां फ्रांस के बहु-सांस्कृतिक स्वरूप को बनाए रखने की अपने घोषणा-पत्र में पुरजोर वकालत की। कैसे इसको ले पेन की पार्टी और मैक्रों की पार्टी चोट पहुंचा रहे हैं, इसकी विस्तृत चर्चा की। लेफ्टविंग ने किसी तरह मैक्रों की दक्षिणपंथी नीतियों को बख्शा नहीं, न ही उसपर कोई पर्दा डालने की कोशिश की। उन्होंने फ्रांस के मतदाताओं के सामने लेफ्टविंग न्यू पॉपुलर फ्रंट को ली पेन की धुर दक्षिणपंथी पार्टी और मैक्रों की कमोबेश दक्षिणपंथी पार्टी (अपने को लिबरल कहने वाली) के विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया।
यहीं पर यह रेखांकित कर लेना जरूरी है कि ली पेन की पार्टी के साथ मैक्रों की पार्टी भी फ्रांस के वामपंथी समूहों को खतरनाक मानती है। खासकर उन वामपंथी समूहों को जो उनकी नजर में चरम वामपंथी (मेरी नजर में रेडिकल) हैं। मेहनतकश की सत्ता और क्रांति की बातें करते हैं। ऐसे समूह वर्तमान लेफ्टविंग में सिर्फ शामिल नहीं है, बल्कि उसके प्रभावी हिस्से हैं। मैक्रों और उनकी पार्टी रेनेंसा लेफ्टविंग के प्रभावशाली लोकप्रिय नेता जीन-ल्यूक मेलेनचॉन ( Jean-Luc Melenchon) की तरह का प्रधानमंत्री नहीं देखना चाहती है, जैसे धुर दक्षिपंथी पार्टी के नेता को नहीं देखना चाहती हैं, जबकि वे एक सोशल-डेमोक्रेट टाइप के वामपंथी ही हैं।
जब पूरी दुनिया में धुर दक्षिणपंथी का तेजी से उभार हो रहा है, उस स्थिति में वामपंथी समूहों के सामने दो विकल्प हैं। पहला यह कि वह खुद अपने देश के लिबरल-सेंटरिस्ट (भारत में कांग्रेस नुमा) पार्टियों का पिछलग्गू बना लें। मोटी-मोटा उनके विचारों, एजेंडों, रणनीति और कार्यनीति अपना लें और धीरे-धीरे अपना वजूद खो दें। इस प्रक्रिया में देश विशेष की जनता के सामने सिर्फ दो विकल्प रह जाते हैं। एक धुर दक्षिणपंथी पार्टी और दूसरा अपने को लिबरल-सेंटरिस्ट कहने वाली, लेकिन बुनियादी तौर पर नरम दक्षिणपंथी टाइप की पार्टी। जैसे हमारे देश में कांग्रेस या भाजपा।
वामपंथी समूहों के सामने दूसरा विकल्प यह है कि वे धुर दक्षिणपंथी पार्टी और अपने को लिबरल कहने वाली (कमोबेश दक्षिणपंथी) पार्टी, दोनों के विकल्प के रूप में खुद प्रस्तुत करें। हर स्तर पर विकल्प के रूप में। विचार, राजनीति, एजेंडा आदि सभी मामलों में। खुद को व्यापक मेहनतकश जनता के आशा-आकांक्षाओं के प्रतिनिधि के रूप में प्रस्तुत करें। हां यह जरूर है कि जरूरत पड़ने धुर दक्षिणपंथी पार्टी को सत्ता से दूर रखने के लिए लिबरल-सेंटरिस्ट से कार्यनीति एकता कायम कर सकते है। जैसे फ्रांस के लेफ्टविंग ने किया।
फ्रांस का लेफ्टविंग मैक्रों की पार्टी और उनके गठजोड़ का पिछलग्गू नहीं बना। उन्हें हर स्तर पर चुनौती दी। उनसे बेहतर विकल्प के रूप में खुद को प्रस्तुत किया। लेकिन दूसरे चरण के चुनाव में धुर दक्षिणपंथी पार्टी को सत्ता से दूर रखने के लिए मैक्रों की पार्टी से कार्यनीति एकता कायम की। लेफ्टविंग गठबंधन और मैक्रों के नेतृत्व वाले गठबंधन ने करीब 200 उम्मीदवारों को चुनाव मैदान से बाहर कर लिया। कुछ लेफ्टविंग के थे, कुछ मैक्रों के पार्टी के।
ऐसी कार्यनीति बनाई जिससे लेफ्टविंग के वोट मैक्रों की पार्टी को ट्रांसफर हुए और मैक्रों की पार्टी के वोट लेफ्टविंग को ट्रांसफर हो गए। इस कार्यनीति से ले पेन की पार्टी को तीसरे नंबर की पार्टी बना दिया। सत्ता से बहुत दूर कर दिया। जबकि उनकी पार्टी की जीत तय सी मानी जा रही थी। इसके बावजूद की उनकी पार्टी को एकमुश्त तौर पर 37.3 प्रतिशत वोट मिले।
चुनावी राजनीति में हिस्सेदारी करने वाली फ्रांस की वामपंथी पार्टियों ने दुनिया भर की इस तरह की पार्टियों को धुर दक्षिणपंथी पार्टियों के खिलाफ वामपंथी पार्टियां क्या रूख अख्तियार करें। उसकी एक राह खोली है। हर देश की अपनी विशिष्ट परिस्थिति होती है, इससे कोई इंकार नहीं कर सकता है। लेकिन उन्होंने जो रास्ता खोला है, उसमें सबके लिए सीखने-समझने और अपने लिए रास्ता अख्तियार करने की रोशनी मौजूद है।
(इस लेख में मैंने जानबूझकर धुर दक्षिणपंथी पार्टी संज्ञा का इस्तेमाल किया है। पहली धुर दक्षिणपंथी पार्टियां वे पार्टियां हैं, जिनके भीतर मजबूत फासीवादी रूझान है, लेकिन उन्हें फिलहाल हिटलर-मुसोलिनी की पार्टी की तरह फासीवादी नहीं कहा जा सकता है। दूसरा कमोबेश दक्षिणपंथी हो चुकीं, लिबरल पार्टियों से उन्हें अलगाने के लिए। दुनिया की अधिकांश तथाकथित लिबरल पार्टियां (सेंटरिस्ट) आर्थिक मामलों से लेकर राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक मामलों में दक्षिणपंथी अवस्थिति ले चुकी हैं या लेती जा रही हैं। खासकर जब वे सत्ता में होती हैं। मनमोहन-चिदंबरम की सरकार को भारत के मेहनतकशों के संदर्भ में लिबरल पार्टी कहना तथ्यहीन बात होगी। वह कमोबेश दक्षिणपंथी पार्टी की तरह काम करती रही है, खासकर दूसरे कार्यकाल में।)
(डॉ. सिद्धार्थ लेखक एवं स्वतंत्र पत्रकार हैं)
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