अमेरिका के अगले राष्ट्रपति चुनाव के पीछे का सत्य और असत्य

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ब्रिटिश हुकमरानी की दासता से करीब 200 वर्ष पहले आजाद हुए अमेरिका में जटिल पूंजीवाद और लोकतंत्र की जड़ें गहरी हैं और दोनों के बीच अक्सर टकराव भी होते हैं। पर अमेरिका की राजनीतिक व्यवस्था में राष्ट्रपति रिपब्लिकन पार्टी का हो या फिर डेमोक्रेटिक पार्टी का अमेरिकी आर्थिक, सैन्य और विदेश नीतियां नहीं बदलती। इसी कारण पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को 2025 के राष्ट्रपति चुनाव में भी रिपब्लिकन पार्टी का उम्मीदवार बनने की अपनी सार्वजनिक घोषणा के बावजूद अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के दबाब में कुछ पीछे हट जाना पड़ता है।

राष्ट्रपति के 2020 के चुनाव में ट्रम्प को डेमोक्रेटिक पार्टी की प्रत्याशी और पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की पत्नी हिलेरी क्लिंटन से करीब 30 लाख वोट ज्यादा मिले थे। खबरों के अनुसार अमेरिका के मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडन 2025 के चुनाव में डेमोक्रेटिक पार्टी का उम्मीदवार फिर बनना चाहते हैं। बाइडन ने अमेरिका के दुनिया की अगुवाई करने के अपने नारे के लिए समर्थन जुटाने रूस के आजीवन राष्ट्रपति चुने जा चुके व्लादिमीर पुतिन और फ्रांस के राष्ट्रपति एमानुएल मैकरों समेत कई देशों के शासकों से भेंट की है। पुतिन की रूसी सेना, यूनियन ऑफ सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक में शामिल रहे यूक्रेन से युद्धरत है। पुतिन से बाइडन की पहली खास भेंट बेल्जियम की राजधानी ब्रूसेल्स में नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन यानि नाटो के सदस्य देशों के शासकों के सम्मेलन में हुई। दोनों 16 जून 2021 को स्विट्जरलैंड के जेनेवा में जी-7 देशों के शासकों के शिखर सम्मेलन में भी मिले। बाइडन भारत के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मिल चुके है।

मेरे अध्ययन के अनुसार अमेरिका के 2020 के पिछले राष्ट्रपति चुनाव में 67 फीसद वोटरों ने वोट दिए थे। यह पिछले एक सदी में सबसे ज्यादा था। डेमोक्रेटिक पार्टी के समर्थक वोटर बढ़े हैं इसलिए उस बार ट्रम्प को 2016 के राष्ट्रपति चुनाव की तुलना में करीब 30 लाख वोट ज्यादा मिले। ट्रम्प अभी वाशिंगटन डीसी में अमेरिकी राष्ट्रपति ह्वाइट हाउस से बाहर हैं। पर उनके स्कैंडल के खुलासे होते रहते है। अब पता चला है कि ट्रम्प के राष्ट्रपति रहने के दौरान अमेरिकी कांग्रेस के हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स में डेमोक्रेटिक पार्टी के उन कई बड़े नेताओ के ईमेल डेटा चुरा लिए गए जो ट्रम्प पर राजसत्ता का दुरुपयोग करने के लगे आरोपों की जांच कर रहे थे।

अमेरिका के चिंतक और भाषाविद नोम चोमस्की ने पिछले राष्ट्रपति चुनाव में ट्रम्प को जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ़ हिटलर की तरह का सोशियोपैथ कहा था। चोमस्की के अनुसार ट्रम्प को सिर्फ अपनी फिक्र है और इसलिए वह विश्व क्या अमेरिका का नेतृत्व करने के लिए भी फिट नहीं है। उनके अनुसार ट्रम्प ने दावा किया था कि दुनिया में कोरोना की नई महामारी फैलने के लिए चीन जिम्मेवार है क्योंकि यह वायरस चीन के ही वुहान नगर में वायरोलॉजी लैब से लीक हुआ। ट्रम्प ने अमेरिका के मित्र राष्ट्रों को उसका नेतृत्व स्वीकार करने को कहा। फ्रांस के सिवा अमेरिका के लगभग सभी मित्र देशों ने ट्रम्प की उन बातों का भी समर्थन किया जिसके पीछे वैज्ञानिक तर्क नहीं थे।

अमेरिका के विश्व नेतृत्व के लिए उसके 45 वें राष्ट्रपति बाइडन की मुहिम की सफलता यूरोप से ज्यादा रूस और चीन पर निर्भर है। उन्होंने दुनिया में कोविड 19 वायरस की फैली नई महामारी के बाद वैश्विक वित्तीय, व्यापारिक व्यवस्था में अमेरिका का प्रभुत्व कायम करने के लिए नाटो के बेल्जियम के ब्रूसेल्स नगर में बने नए मुख्यालय जाकर 35 देशों के शासकों से भेंट की। उनके अनुसार दूसरे विश्व युद्ध के बाद दुनिया के आर्थिक और वित्तीय पुनर्निर्माण की अगुवाई अमेरिका ने की थी। बाइडन ने अमेरिकी दवा कंपनी फाइजर को दुनिया में वितरित करने के लिए 500 मिलियन कोविड 19 वैक्सीन टीके दान दिए। बाइडन राष्ट्रपति बनने के 5 माह बाद अपनी पत्नी जिल बाइडन के साथ पहली समुद्रपारीय यात्रा में ब्रिटेन भी गए।

अमेरिकी लेखक हावर्ड फास्ट ने 1933 में एक उपन्यास लिखा जिसके छपने पर उनको अमेरिकी संसद ने कम्युनिस्टों का साथ देने के संदेह में 3 माह कैद की सजा दी। कैद में हावर्ड फास्ट ने 1951 में स्पार्टाकस उपन्यास लिखा जो दक्षिण अफ्रीका में गुलाम बनाकर रखे गए अश्वेत लोगों के जीवन के बारे में है। अमृत राय ने स्पार्टाकस का आदिविद्रोही नाम से अनुवाद किया है।

हावर्ड फास्ट के लिखे उपन्यास द अमेरिकस को पढ़ कर निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में वहां के नागरिकों की खास भूमिका नहीं होती और इन चुनावों के वोटरों के डाले वोट का चुनाव परिणाम में खास अर्थ नहीं होता। इस उपन्यास की सराहना फारस की खाड़ी के देश ईरान की धर्मतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था में सुन्नी मुस्लिम धार्मिक नेता रहे आयतुल्लाह खुमैनी ने भी की थी। उन्होंने 1999 में ईरान के स्कूली बच्चों की एक पत्रिका के संपादकों के साथ बातचीत में कहा था कि यह उपन्यास अमेरिका की राजनीतिक व्यवस्था का कटु सच दर्शाता है।

अमेरिकी कानूनों के अनुसार अमेरिका में पैदा होने वाले किसी को भी उसकी नागरिकता स्वत: मिलने का प्रावधान है। हावर्ड फास्ट के माता-पिता अमेरिकन नहीं थे पर फास्ट को अमेरिका में पैदा होने से अमेरिकी नागरिकता मिल गई। उन्होंने द अमेरिकस में एक व्यक्ति के जन्म से आगे के विकास, लॉ स्कूल जाकर वहां की न्यायिक व्यवस्था में प्रशिक्षण के बाद वकील बनने और चुनावों के अभियान में भाग लेने के बारे में लिखा है।

हावर्ड फास्ट ने इस उपन्यास की भूमिका में लिखा कि यह अमेरिका के एक राज्य के लोकप्रिय गवर्नर की सच्ची कहानी पर आधारित है। बाद में पता चला कि वह इलिनॉइस के गवर्नर जॉन पीटर एतजेल्ड थे जिन्होंने लोभ और भ्रष्टाचार के खिलाफ और लोकतंत्र की रक्षा के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया था। उनको अमेरिका में बाद का अब्राहम लिंकन माना गया जो इस देश के पहले अश्वेत राष्ट्रपति थे। इतिहासकार लाल बहादुर वर्मा ने हावर्ड फास्ट के लिखे उपन्यास द अमेरिकस का हिन्दी में अनुवाद किया था जो हरियाणा साहित्य अकादमी से छपी थी। हरियाणा में भाजपा सरकार बनने के बाद वह उस किताब की बिक्री बंद कर दी गई।

मुझे मिली ताजी खबरों के मुताबिक अमेरिका में ‘नवफासीवाद’ बढ़ने के खतरे है। फिलवक्त सच ये है कि व्लादीमीर पुतिन ही नहीं दुनिया के सभी तानाशाह चाहते हैं कि इस बार के भी चुनाव में ट्रम्प ही जीतें। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद मोदी पिछली बार अमेरिका जाकर वहां ट्रम्प की उपस्थिति में सार्वजानिक आयोजन में खुल कर ट्रम्प की चुनावी जीत के अभियान के लिए अपना समर्थन घोषित कर चुके थे। अमेरिका के राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव हर चार बरस पर होते हैं।

(चंद्र प्रकाश झा वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल बिहार में रह रहे हैं)

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