इस बार का हरियाणा विधानसभा चुनाव 37 साल पहले यानी 1987 के चुनाव की याद दिला रहा है। तब और अब में फर्क यह है कि उस समय लोगों में कांग्रेस के खिलाफ जबरदस्त गुस्सा था और इस चुनाव में लोगों का वैसा ही गुस्सा भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ है।
उस चुनाव के नतीजे से ही केंद्र में 1989 के सत्ता परिवर्तन का माहौल बना था। उस समय के बेहद मजबूत प्रधानमंत्री राजीव गांधी और उनकी कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई थी। उस चुनाव में लोकदल के नेता चौधरी देवीलाल महानायक बन कर उभरे थे और चुनाव संचालक थे शरद यादव।
लोकदल 70 सीटों पर लड़ा था और 20 सीटें उसने अपनी सहयोगी भाजपा के लिए छोड़ी थीं। चुनाव नतीजे पूरी तरह एकतरफा रहे थे। लोकदल ने 60 सीटों पर जीत हासिल की थी और 16 सीटें भाजपा ने जीती थी। सत्ताधारी कांग्रेस महज 5 सीटों पर सिमट गई थी।
मुख्यमंत्री भजनलाल के अलावा उनके सारे मंत्रियों को करारी हार का सामना करना पड़ा था। सीपीएम और सीपीआई को एक-एक सीट मिली थी, जबकि 7 सीटों पर निर्दलीय जीते थे। कांग्रेस की इस दुर्गत की वजह लोगों का वह गुस्सा जो पांच साल से उनके भीतर खदबदा रहा था।
पांच साल पहले भजनलाल के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार ठीक उसी तरह बनी थी, जैसे पिछले दस साल में मोदी-शाह ने कई राज्यों में बनाई हैं।
वह समय ‘नवभारत’ (इंदौर) में मेरी पत्रकारिता का शुरुआती दौर था। मैं चुनाव की रिपोर्टिंग के लिए हरियाणा जाना चाहता था लेकिन मेरे संपादक कमल दीक्षित ने मुझे भेजने से इनकार कर दिया, शायद यह सोच कर कि यह कल का छोरा क्या रिपोर्टिंग करेगा।
लेकिन मैंने तो जाने की ठान रखी थी, सो उनके मना करने के दो दिन बाद ‘निजी काम’ से छुट्टी लेकर दिल्ली पहुंच गया और वहां से वरिष्ठ और आत्मीय मित्र एपी जैदी (अब दिवंगत) के साथ हरियाणा पहुंच गया। जैदी भाई दिल्ली में शरद यादव के साथ ही रहते थे और उस चुनाव में देवीलाल के लिए मीडिया प्रबंधन का जिम्मा संभाले हुए थे।
छह दिन तक हरियाणा में रहा और दो दिन देवीलाल के साथ उनके न्याय रथ में भी घूमा। मतदान से चार दिन पहले इंदौर लौटा। दफ्तर पहुंच कर संपादक जी को सच-सच बता दिया कि हरियाणा गया था और आप कहें तो एक विस्तृत रिपोर्ट लिख दूं।
संपादक जी ने इनकार कर दिया और कुछ देर तक भुनभुनाते रहे। मैं अपने नियमित काम में जुट गया। लेकिन संपादक जी रात को घर जाते वक्त मेरी टेबल पर आकर कह गए कि हरियाणा पर कल रिपोर्ट लिख कर ले आना।
मैंने अखबार का अपना नियमित काम खत्म करने के बाद सुबह होने तक दफ्तर में ही बैठ कर एक विस्तृत रिपोर्ट लिखी और देवीलाल के साथ दो दिन रहते हुए टुकड़ों-टुकड़ों में जो बातचीत हुई थी वह भी लिख कर संपादक जी की टेबल पर रख दी। वह रिपोर्ट और इंटरव्यू नवभारत के सभी संस्करणों में छपा।
उस समय इस तरह की रिपोर्ट नवभारत जैसे अखबार में छपना बड़ी बात थी, क्योंकि अखबार के मालिक रामगोपाल माहेश्वरी स्वाधीनता सेनानी और गांधीवादी होने के साथ ही कांग्रेस के प्रति अटूट निष्ठावान थे।
वे उस समय की कांग्रेस को भी गांधीवादी मानते थे (हालांकि यह उनका अंधविश्वास था), इसलिए उनके अखबार में कांग्रेस की आलोचना भी कभी-कभार अगर-मगर के साथ दबे स्वरों में छपती थी।
बहरहाल, मेरी रिपोर्ट का शीर्षक था, ”धूल भरे मैदान में एक तूफान है देवीलाल’’ और देवीलाल के इंटरव्यू का शीर्षक था, ”यकीन मानिए, कांग्रेस का सफाया हो जाएगा’’। मैंने अपनी रिपोर्ट में लोकदल-भाजपा गठबंधन को 60 से अधिक सीटें मिलने का अनुमान जताया था, और इंटरव्यू में देवीलाल ने 70 से ज्यादा सीटें जीतने का दावा किया था।
चुनाव नतीजों में लोकदल-भाजपा गठबंधन को मेरे अनुमान और चौधरी देवीलाल के दावे से भी ज्यादा सीटें मिली थीं। बाद में संपादक जी ने खुश होकर संस्थान की ओर से मुझे हरियाणा जाने-आने का खर्च भी दिलवाया था, मेरी छुट्टियों के दिनों का वेतन भी नहीं कटा।
बहरहाल इस चुनाव में भाजपा का वैसा सफाया तो नहीं होने जा रहा है, जैसा उस समय कांग्रेस का हुआ था, लेकिन वहां से सूचनाएं यही मिल रही हैं कि भाजपा बुरी तरह हार रही है। उसका सफाया नहीं हो रहा है तो इसकी वजह चुनाव का पांच कोणीय होना है। इसके अलावा कांग्रेसियों की आपसी सिरफुटौवल भी एक बड़ी वजह है।
(अनिल जैन वरिष्ठ पत्रकार हैं)