भारत में 4 में 3 लोगों को नहीं मिल पाता पौष्टिक भोजन: यूएन की रिपोर्ट

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नई दिल्ली। यूनाइटेड नेशंस की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में तक़रीबन एक अरब लोगों को पौष्टिक भोजन नहीं मिलता है। यूएन की इस रिपोर्ट के बाद भारत सरकार के केवल 81 करोड़ लोगों को भोजन मुहैया कराने की जरूरत के दावे पर सवाल खड़ा हो जाता है।

इस सप्ताह यूएन एजेंसियों द्वारा खाद्य सुरक्षा और पोषण पर 2023 की जारी रिपोर्ट कहती है कि 74.1 फीसदी भारतीय, या फिर 1.043 अरब लोग 2021 में पोषण युक्त भोजन हासिल कर पाने में अक्षम थे। इसके साथ ही रिपोर्ट में भारत के कुपोषण की शिकार आबादी की भी संख्या दी गयी है जिसके मुताबिक 2020-2022 के दौरान यह 16.6 फीसदी थी।

रिपोर्ट के मुताबिक तुलनात्मक लिहाज से 66 फीसदी लोग बांग्लादेश में, 82 फीसदी पाकिस्तान में, 30 फीसदी ईरान में, 11 फीसदी चीन में, 2.6 फीसदी रूस में, 1.2 फीसदी अमेरिका में और 0.4 फीसदी लोग इंग्लैंड में वर्ष 2021 में पोषण युक्त भोजन हासिल नहीं कर पाए। 

यूएन की विशिष्ट एजेंसी फूड एंड एग्रिकल्चरल ऑर्गेनाइजेशन समेत दूसरी एजेंसियों की रिपोर्ट ऐसे समय सामने आयी हैं। जिसे कुछ दूसरे खाद्य सुरक्षा समर्थक और पोषण विशेषज्ञ आबादी के बड़े हिस्से को भोजन की कमी और खराब पोषण को नकारने के भारत सरकार के प्रयासों के तौर पर देखते हैं।

केंद्र ने एफएओ की उस रिपोर्ट को चुनौती दी है जिसमें उसने देश में 16.6 फीसदी हिस्से को कुपोषण का शिकार बताया है। सरकार का कहना है कि आंकड़े उस सर्वे पर आधारित थे जिसमें कुल आठ सवाल थे और उसका जवाब देने वालों की संख्या महज 3000 थी।

केंद्र ने कहा कि भारत जैसे एक देश के आकार के लिए एक छोटे से सैंपल से जो डाटा कुपोषित आबादी को गिनने के लिए किया गया है वह न केवल गलत और अनैतिक है बल्कि इसमें एक प्रत्यक्ष पक्षपात भी दिखता है।

अक्तूबर में भी केंद्र ने एक बयान में वैश्विक भूख सूचकांक में भारत की निचली रैंकिंग- 125 देशों में 111- की आलोचना की थी। 

लेकिन कुछ स्वतंत्र विशेषज्ञ सरकार के एफएओ अनुमान को खारिज करने में अंतरविरोध देखते हैं जिसके तहत 16.6 फीसदी- यहां तक कि 2011 की जनगणना के मुताबिक 200 मिलियन लोग- कुपोषण के शिकार थे और सरकार के अपने अनुमान के मुताबिक तकरीबन 81 करोड़ 30 लाख लोगों को खाद्य सहायता की ज़रूरत है।

अपनी खाद्य सहायता योजनाओं में सरकार ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना का उदाहरण दिया है जिसके तहत प्रति परिवार प्रति माह 5 किग्रा मुफ्त अनाज- चावल या गेहूं- मुहैया कराया जाता है। इसमें 81 करोड़ 30 लाख लोग कवर होते हैं। पिछले महीने केंद्रीय कैबिनेट ने अगले पांच सालों के लिए इस योजना पर मुहर लगायी है।

हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एसवी सुब्रमण्यन जिन्होंने भारत में भोजन की कमी पर अध्ययन किया है, ने टेलिग्राफ को बताया कि भारत में भूख और खाद्य की कमी के अनुमानों पर केंद्र की जायज चिंताओं के प्रकाश में 81 करोड़ 30 लाख लोगों को खाद्य सहायता की जरूरत है, आश्चर्य तरीके से यह बहुत ऊंचा है और इसकी और व्याख्या की जरूरत है।

केंद्र ने कहा है कि 81 करोड़ 30 लाख लोगों तक कवरेज के क्रम में राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों ने पीएमजीकेएवाई के तहत खाद्य वितरण के लिए 804.8 मिलियन परिवारों को चिन्हित किया है।

लेकिन राइट टू फूड अभियान संचालित करने वाले एक एनजीओ ने कहा है कि एफएओ का यह अनुमान कि एक अरब से ज्यादा लोगों को पौष्टिक भोजन नहीं हासिल है, यह उनके अपने अनुमान से मेल खाता है जिसमें उसका कहना है कि एक अरब लोगों को खाद्य सहायता की जरूरत है।

आरएफसी के साथ काम करने वाले राष्ट्रीय समन्वयक राज शेखर का कहना है कि 81 करोड़ 30 लाख का अनुमान 2011 की जनगणना पर आधारित है। जबकि अगली जनगणना दो साल देर से चल रही है।

नयी जनगणना के बगैर बहुत सारे जरूरतमंद गरीब लोगों के पास राशन कार्ड नहीं होगा जिसे पीएमजीकेएवाई लाभ के लिए बुनियादी शर्त मानी जाती है।

शेखर ने कहा कि आरएफसी कई बार लिख चुका है कि खाद्य सहायता की बास्केट को बढ़ाये जाने की जरूरत है और उसमें दाल, खाद्य तेल और सब्जियों को भी शामिल करने की जरूरत है। जो पौष्टिक भोजन के लिए बहुत जरूरी है।

उन्होंने कहा कि कुछ राज्यों ने इस तरह की सामग्रियों को जोड़ा है लेकिन केंद्र की तरफ से इस पर हमें कोई जवाब नहीं मिला है।

केंद्र के खुद के अपने देशव्यापी फैमिली हेल्थ सर्वे ने भी इसका खुलासा किया है जिसे विशेषज्ञ भोजन की कमी के तौर पर चिन्हित करते हैं। और उसे लोगों तक बुनियादी चीजों या फिर पौष्टिक भोजन की पहुंच में कमी के तौर पर चिन्हित करते हैं।

एक अध्ययन जो नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2021 पर आधारित है, में पाया गया कि 20 फीसदी सामाजिक-आर्थिक तौर पर सबसे गरीब परिवारों के बीच 40 फीसदी से ज्यादा महिलाएं यहां तक कि गर्भवती महिलाएं रोजाना दूध और उससे जुड़ी चीजों का सेवन नहीं कर पातीं। यह भी पाया गया है कि देश में 50 फीसदी महिलाएं और 40 फीसदी पुरुष विटामिन ए युक्त समृद्ध फल नहीं खा पाते हैं।

अध्ययन का नेतृत्व करने वाले सुब्रमण्यन ने कहा कि हम लोगों ने विशेष रूप से उन कारकों का अध्ययन नहीं किया जिसके चलते डेयरी और विटामिन ए युक्त समृद्ध फलों के खाद्य समूह से लोग दूर रहते हैं।

(ज्यादातर इनपुट टेलिग्राफ से लिए गए हैं।)    

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