नई दिल्ली। कोरोना महामारी के साथ ही देश की अर्थव्यवस्था संकट में है। महंगाई, बेरोजगारी बढ़ने के साथ ही देश की जीडीपी में गिरावट देखी जा रही है। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि मोदी सरकार अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर ठोस उपाय करने की बजाय़ राजनीतिक शिगूफेबाजी करने और विपक्ष पर आरोप लगाने में व्यस्त है।
2020-21 के लिए वार्षिक राष्ट्रीय आय के प्रोविज़नल अनुमानों पर राष्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय ने एक नोट जारी किया है। 10 पन्नों के प्रेस नोट में अनुमान के अनुसार, स्थिर मूल्यों पर जीडीपी ने माईनस (-) 7.3 प्रतिशत की नकारात्मक वृद्धि दर्ज की, 1979-80 के बाद ऐसा पहली बार हुआ है, जब भारत ने नकारात्मक वार्षिक वृद्धि दर्ज की है।
कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने आज एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि राष्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय का अनुमान कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है। मोदी शासन में अर्थव्यवस्था खस्ताहाल है। स्थिर मूल्यों पर तीन साल के जीडीपी के आंकड़े अर्थव्यवस्था की संकटपूर्ण स्थिति पर रोशनी डालते हैः
2018-19: 140,03,316 करोड़ रु.
2019-20: 145,69,268 करोड़ रु.
2020-21: 135,12,740 करोड़ रु.
2019-20 में 4.0 प्रतिशत की मामूली वृद्धि हुई, लेकिन 2020-21 में माईनस (-) 7.3 प्रतिशत की गंभीर गिरावट देखने को मिली। परिणाम यह है कि 2020-21 में जीडीपी दो साल पहले (2018-19) की जीडीपी से कम है।
2020-21 ने चार दशकों में अर्थव्यवस्था का सबसे निराशाजनक समय देखा है। 2020-21 की चार तिमाहियों का प्रदर्शन पूरी कहानी बयां करता है। पहली दो तिमाहियों में मंदी (माईनस 24.4 प्रतिशत और माईनस 7.4 प्रतिशत) छाई रही। तीसरी और चौथी तिमाहियों के प्रदर्शन में भी सुधार नहीं हुआ। 0.5 प्रतिशत एवं 1.6 प्रतिशत की अनुमानित दरें पिछले साल की समान तिमाहियों में लिए गए 3.3 प्रतिशत और 3.0 प्रतिशत के बहुत निचले बेस की वजह से थीं। इसके अलावा, इन दरों के साथ अनेक चेतावनियां भी थीं।
जब पिछले साल महामारी की पहली लहर कम होती हुई प्रतीत हुई, तो वित्त मंत्री और उनके मुख्य आर्थिक सलाहकार ने रिकवरी की कहानी सुनानी शुरू कर दी। उन्हें ‘उज्जवल किरण’ दिखाई देने लगी, जो किसी और को दिखाई नहीं दे रही थी। उन्होंने वी-आकार की रिकवरी की भविष्यवाणी कर डाली। यह झूठी कहानी थी एवं हमने इसका कड़ा विरोध किया था और बताया था कि सुधार के कोई संकेत दिखाई नहीं दे रहे हैं। हमने उस समय बताया था कि अर्थव्यवस्था को मजबूत प्रोत्साहन की जरूरत थी, जिसमें सरकारी खर्च बढ़ाया जाना, गरीबों के खातों में पैसे पहुंचाया जाना और उन्हें मुफ्त राशन का वितरण शामिल था। हमारी दलीलों से उनके कान पर जूँ तक नहीं रेंगी, जिसका परिणाम माईनस (-) 7.3 प्रतिशत की नकारात्मक वृद्धि है।
सबसे ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि प्रति व्यक्ति जीडीपी 1 लाख रु. से कम होकर 99,694 तक पहुंच गई है। प्रतिशत के मामले में इसमें पिछले साल के मुकाबले माईनस (-) 8.2 प्रतिशत की गिरावट हुई है। यह 2018-19 में हासिल किए गए स्तर (और शायद 2017-18) के मुकाबले कम है। सबसे गहरा चिंताजनक निष्कर्ष यह है कि ज्यादातर भारतीय दो साल पहले के मुकाबले आज और ज्यादा गरीब हो गए हैं।
एनएसओ के प्रेस नोट से खुलासा होता है कि अधिकांश आर्थिक संकेतक दो साल पहले के मुकाबले आज ज्यादा खराब स्तर पर आ गए हैं।
अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति महामारी के प्रभाव के चलते है, लेकिन केंद्र की भाजपा सरकार के आर्थिक कुप्रबंधन एवं अक्षमता से स्थिति को और ज्यादा गंभीर बना दिया है। योग्य अर्थशास्त्रियों एवं प्रतिष्ठित संस्थानों की अच्छी सलाह को खारिज कर दिया गया है। विश्व-व्यापी अनुभव को नजरंदाज कर दिया गया है। राजकोष के विस्तार एवं कैश ट्रांसफर के सुझावों की उपेक्षा कर दी गई है। आत्मनिर्भर जैसी खोखली योजनाएं विफल हो गई हैं।
हमें खुशी है कि व्यवसाय एवं उद्योग के दो प्रमुख चैंबर-सीआईआई एवं फिक्की ने पिछले कुछ दिनों में हमारे सुझावों को दोहराया और गरीबों को कैश ट्रांसफर सहित राजकोष के विस्तार का अनुरोध किया। आरबीआई की मासिक समीक्षा ने ‘मांग शॉक’ एवं इसके परिणामों को चिन्हित किया। नौकरियों के नुकसान एवं बढ़ती बेरोजगारी पर सीएमआई की रिपोर्ट बहुत चौंकानेवाली है। अजीज प्रेमजी यूनिवर्सिटी की शोध एवं सर्वे रिपोर्ट ने निष्कर्ष दिया कि 23 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे एवं कर्ज के बोझ तले धकेल दिए गए। ध्यान देने वाली बात है कि नोबल विजेता, डॉक्टर अभिजीत बनर्जी ने पैसा छापने और खर्च बढ़ाने का आह्वान किया है। उसके बावजूद, कल सुबह, वित्त मंत्री ने कुछ समाचार पत्रों को एक लंबा इंटरव्यू देकर अपनी भ्रमित एवं विनाशकारी नीतियों का बचाव किया।
हमारे ऊपर महामारी की दूसरी लहर का संकट छाया है। अब तक, यह पहली लहर के समान पद्धति में बढ़ रही है, सिवाय इसके कि इस बार संक्रमण एवं मौतों की संख्या में मामले में नुकसान ज्यादा है। 2021-22 का साल उसी तरह से नहीं निकलना चाहिए, जैसा 2020-21 का साल निकला। सरकार को इस बार जागना चाहिए, अपनी चूक एवं गलतियों को स्वीकार करना चाहिए, अपनी नीतियों को पलटना चाहिए और अर्थशास्त्रियों एवं विपक्ष के सुझावों को स्वीकार करना चाहिए।
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