अपनी नाकामी को छुपाने के लिए एक बार फिर सिंधु, झेलम और चिनाब के पानी पर रोक का सरकारी फरमान

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यह कोई नई धमकी नहीं है। इससे पहले भी नरेंद्र मोदी सरकार ने उरी आतंकी हमले के बाद घोषणा की थी कि “खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते”। हालांकि, वास्तविकता यह है कि खून का बहाव रोका जा सकता है, लेकिन पानी के बहाव को रोकना लगभग असंभव है। जम्मू-कश्मीर की भौगोलिक स्थिति के कारण सिंधु, चिनाब और झेलम के पानी के प्रवाह को रोक पाना व्यावहारिक रूप से असंभव है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज बिहार में एक जनसभा को अंग्रेजी में संबोधित करते हुए पाकिस्तान को चेतावनी दी कि पहलगाम की आतंकी घटना पर पूरी दुनिया हमारे साथ खड़ी है, और किसी भी आतंकी को हम नहीं बख्शेंगे। बिहार में अंग्रेजी और अमेरिका, यूरोप में हिंदी में भाषण की महिमा तो मोदी ही जानें, लेकिन सात लाख सशस्त्र बलों की मौजूदगी के बावजूद कश्मीर के मिनी स्विट्जरलैंड कहे जाने वाले पर्यटन स्थल पर एक भी सुरक्षाकर्मी की तैनाती क्यों नहीं थी, इसका जवाब सरकार के पास नहीं है।

असल में, यह सवाल पूछने वाले पत्रकारों की पिटाई हो रही है, या यदि ग्राउंड जीरो से किसी पत्रकार ने नोएडा स्टूडियो के सामने यह सवाल उठा दिया, तो उसकी बाइट काट दी जा रही है। न्यूज 18 के ‘आरपार’ कार्यक्रम में कल अमीश देवगन को लाइव प्रसारण के लिए कश्मीर से दिल्ली लौटे प्रत्यक्षदर्शी मिले, लेकिन उन्होंने स्थानीय कश्मीरियों द्वारा पर्यटकों को खुलकर मदद करने की बात पर जोर दिया, जिसके बाद वे न्यूज 18 के लिए उपयोगी नहीं रहे।

लेकिन चलिए, आतंकी घटना पर सरकार और सुरक्षा एजेंसियों की भूमिका को गौण करने के लिए सरकार समर्थक और मीडिया जो कर रहे हैं, उसकी तो देश को आदत-सी हो चुकी है। लेकिन कल सरकार की ओर से एक ऐसा कदम उठाया गया, जो सीमा पार से आतंकवाद को रोकने की दृष्टि से पूरी तरह अप्रत्याशित था।

विदेश मंत्रालय ने रात 9 बजे एक संक्षिप्त प्रेस वार्ता के माध्यम से सूचित किया कि पाकिस्तानी नागरिकों का वीजा तत्काल प्रभाव से निलंबित किया जाता है, और सभी वीजा 27 अप्रैल से रद्द माने जाएंगे। मेडिकल वीजा भी केवल 29 अप्रैल तक वैध रहेंगे, और सभी पाकिस्तानियों को वीजा अवधि समाप्त होने से पहले भारत छोड़ देना होगा। अमृतसर के अटारी बॉर्डर को भी बंद कर दिया गया है, और भारतीयों को भी पाकिस्तान न जाने की सलाह दी गई है।

आज विदेश मंत्रालय ने दुनिया भर के दूतावासों को बैठक के लिए आमंत्रित किया है, जिसमें अमेरिका, चीन, ब्रिटेन, पोलैंड, इटली, कनाडा और यूरोपीय संघ के लगभग 30 देशों के राजनयिकों को पहलगाम हमले के बारे में जानकारी दी जा रही है। कयास लगाए जा रहे हैं कि विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के लिहाज से वैश्विक जनमत भारत के पक्ष को गंभीरता से लेगा। लेकिन पाकिस्तान से राजनयिक संबंध खत्म करने और अंतरराष्ट्रीय जल समझौते को एकतरफा रद्द करने पर वैश्विक समुदाय भारत के साथ खड़ा होगा, इस पर संशय बना हुआ है।

सोशल मीडिया पर इस सवाल पर काफी चर्चा हो रही है, और लोग ग्रोक से सवाल पूछ रहे हैं। ग्रोक के अनुसार, “भारत ने अपने बयान में जो कहा है, उसके मुताबिक सिंधु जल संधि को निलंबित किया जा रहा है, लेकिन पाकिस्तान को पानी की आपूर्ति तत्काल प्रभाव से बंद नहीं हुई है। वर्तमान में भारत के पास पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब) का प्रवाह रोकने के लिए बुनियादी ढांचा ही मौजूद नहीं है।

पानी के प्रवाह को रोकने के लिए डैम या बैराज बनाने में कई वर्ष लग सकते हैं। निलंबन से भारत अब पाकिस्तान के साथ पानी का डेटा साझा करने और भंडारण के लिए स्वतंत्र है, लेकिन इसका असर होने में काफी समय लगेगा। यह कदम पाकिस्तान के साथ सैन्य तनाव को बढ़ा सकता है, लेकिन हाल-फिलहाल पानी का प्रवाह जारी रहेगा।”

सिंधु जल संधि के तहत भारत को सिंधु, चिनाब और झेलम नदियों पर जलाशय बांध बनाने से प्रतिबंधित किया गया है। संधि को निलंबित करने से तकनीकी रूप से ये प्रतिबंध हट जाते हैं, जिससे भारत को जलाशय बांध बनाने की अनुमति मिलती है।

2023 में भी मोदी सरकार ने इस विवाद को हवा दी थी। तब समाचार पत्र ‘एशियन एज’ में मोहन गुरुस्वामी ने सिंधु जल संधि के बारे में विस्तार से लिखकर बताया था कि इस घोषणा से कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला है। दो वर्ष बीत चुके हैं, और एक बार फिर मोदी सरकार अब अधिक दृढ़ संकल्प के साथ उसी सवाल को दोहरा रही है।

बता दें कि सिंधु नदी बेसिन के पानी के आवंटन के लिए कई वर्षों की गहन बातचीत के बाद विश्व बैंक ने भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि की मध्यस्थता की थी। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और राष्ट्रपति अयूब खान ने 19 सितंबर, 1960 को कराची में इस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। संधि के अनुसार, तीन “पूर्वी” नदियों-ब्यास, रावी और सतलुज-पर भारत को नियंत्रण दिया गया, जबकि तीन “पश्चिमी” नदियों-सिंधु, चिनाब और झेलम-पर पाकिस्तान को नियंत्रण दिया गया।

गुरुस्वामी लिखते हैं, “सिंधु नदी प्रणाली का कुल जल निकासी क्षेत्र 1,165,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक है। इसका अनुमानित वार्षिक प्रवाह लगभग 207 किमी³ है, जो इसे वार्षिक प्रवाह के मामले में दुनिया की इक्कीसवीं सबसे बड़ी नदी बनाता है। यह पाकिस्तान की आजीविका का एकमात्र साधन भी है। अंग्रेजों ने पाकिस्तान के पंजाब क्षेत्र की सिंचाई के लिए एक जटिल नहर प्रणाली का निर्माण किया था। विभाजन के कारण इस बुनियादी ढांचे का बड़ा हिस्सा पाकिस्तान में रह गया। सिंधु नदी बेसिन के पानी को आवंटित करने के लिए कई वर्षों की गहन बातचीत के बाद विश्व बैंक ने भारत और पाकिस्तान के बीच इस संधि की मध्यस्थता की थी।”

पहली नजर में यह समझौता पाकिस्तान के लिए उदार माना जाता है, क्योंकि यह निचले तटवर्ती राज्य को पश्चिमी नदियों के पानी का 80% देता है। लेकिन वास्तविकता यह है कि इस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति ही इसे तय करती है। मुख्य कश्मीर घाटी अपने अधिकतम विस्तार में मात्र सौ किलोमीटर चौड़ी है और 15,520.3 किमी² क्षेत्र में फैली है। हिमालय पर्वत, जो कश्मीर घाटी को लद्दाख से अलग करता है, और पीर पंजाल पर्वतमाला, जो घाटी को पश्चिम और दक्षिण से घेरती है, इसे उत्तरी भारत के विशाल मैदानों से अलग करती है।

इस सुरम्य और घनी आबादी वाली घाटी की समुद्र तल से औसत ऊंचाई 1,850 मीटर है, जबकि आसपास की पीर पंजाल पर्वतमाला की औसत ऊंचाई 5,000 मीटर है। इस प्रकार, पीर पंजाल पर्वतमाला कश्मीर घाटी और देश के बाकी हिस्सों के बीच एक दुर्गम बाधा है, जो पानी को कहीं और स्थानांतरित करने से रोकती है। न ही कश्मीर घाटी की संरचना इसके किसी भी हिस्से में अधिक पानी जमा करने की अनुमति देती है।

यही तथ्य जर्मनी का न्यूज चैनल DW भी अपने लेख में प्रस्तुत करता है, जिसके अनुसार, “पश्चिमी नदियों का पानी हर वर्ष करीब 120,000 वर्ग किलोमीटर को 1 मीटर की ऊंचाई तक जलमग्न करने के लिए पर्याप्त है। यह एक वर्ष के भीतर ही पूरे कश्मीर को 7 मीटर की ऊंचाई तक जलमग्न करने की क्षमता रखता है। एक अन्य विशेषज्ञ के अनुसार, इतनी विशाल मात्रा को संग्रहीत करने के लिए भारत को टिहरी बांध (260.5 मीटर ऊंचा और 592 मीटर लंबा) जैसे 30 भंडारण प्रणालियों की आवश्यकता होगी, जो व्यावहारिक रूप से असंभव है।”

अब टिहरी बांध के बारे में कम-से-कम उत्तर भारत के लोग तो जानते ही हैं कि एक टिहरी बांध बनाने में भारत को कितने वर्ष लगे थे। टिहरी बांध यदि कभी क्षतिग्रस्त हुआ, तो ऐसी मान्यता है कि मेरठ तक की आबादी जलमग्न हो सकती है। ऐसे 30 बड़े बांध बनाने के लिए भारत को कम-से-कम पांच दशक लग सकते हैं, और इसके लिए आवश्यक राजस्व भारत सरकार के कई बजट हजम कर सकता है।

कश्मीर विश्वविद्यालय के भूविज्ञान और भू-भौतिकी विभाग में पृथ्वी विज्ञान के प्रमुख डॉ. शकील अहमद रोमशू ने हाल ही में कहा है: “मान लीजिए कि हमने पानी की आपूर्ति बंद कर दी, लेकिन यह पानी फिर कहां जाएगा? हमारे पास इस पानी को संग्रहीत करने के लिए कोई बुनियादी ढांचा नहीं है। हमने जम्मू-कश्मीर में बांध नहीं बनाए हैं, जहां हम पानी को संग्रहीत कर सकें। और तमिलनाडु या कर्नाटक के विपरीत, एक पहाड़ी राज्य होने के नाते आप पानी को दूसरे राज्य में नहीं ले जा सकते। इसलिए आप तकनीकी रूप से पानी को रोक नहीं सकते।”

हालांकि, विशेषज्ञ मानते हैं कि सिंधु, झेलम और चिनाब नदियां, हिमालयी नदियां होने के कारण, पहले ही जल संकट से जूझ रही हैं। सिंधु नदी बेसिन को ज्यादातर ग्लेशियरों के पिघलने से पानी मिलता है, जबकि गंगा और ब्रह्मपुत्र बेसिन को ज्यादातर पानी मानसून से प्राप्त होता है। चूंकि जलवायु परिवर्तन अब हिमालय के ग्लेशियरों को प्रभावित कर रहा है, इसलिए सिंधु नदी बेसिन में पानी के पैटर्न में पहले से ही बदलाव दिख रहे हैं।

यही वजह है कि पाकिस्तान कुछ समय से लगातार भारत पर सिंधु जल संधि का पालन न करने के झूठे आरोप लगाता रहा है। लेकिन क्या लंबे समय तक पर्याप्त पानी उपलब्ध रहेगा? पाकिस्तान के कृषि क्षेत्र के लिए समस्त सिंचाई जल का 80 प्रतिशत हिस्सा यहीं से प्राप्त होता है। ये जल स्रोत पहले से ही अपने उच्चतम स्तर के करीब हैं, जिसमें से अधिकांश पानी दक्षिण की कीमत पर उत्तरी पाकिस्तान के कृषि क्षेत्रों में भेजा जाता है। पाकिस्तान के दक्षिणी प्रांत इस मुद्दे पर अक्सर पंजाब के खिलाफ आरोप लगाते हैं।

फिर यह भी ध्यान रखना चाहिए कि चीन भी तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर दुनिया का सबसे बड़ा हाइड्रोपावर बांध बनाने पर विचार कर रहा है। अगर भारत एकतरफा फैसला लेकर पड़ोसी देश पाकिस्तान में जल प्रवाह को रोकने का निर्णय लेता है, तो वह कल चीन को अंतरराष्ट्रीय मंच पर किस मुंह से घसीटेगा?

हाल ही में टाइम्स ऑफ इंडिया के साथ अपनी बातचीत में भारत में चीनी राजदूत ने आश्वस्त किया था कि चीन की यह परियोजना भारत के हितों को किसी भी प्रकार से नुकसान नहीं पहुंचाएगी। उल्टा, असम में बाढ़ के प्रकोप को रोकने में इससे मदद मिलेगी। बांग्लादेश भी चीन की इस परियोजना से प्रभावित हो सकता है, क्योंकि ब्रह्मपुत्र नदी का प्रवाह बांग्लादेश से होकर भी गुजरता है। हाल के दिनों में चीन और बांग्लादेश के बीच इस बारे में सहमति बनी है कि चीन इस परियोजना की जानकारी बांग्लादेश के साथ साझा करेगा।

ऐसे में, यह समझना आसान है कि भारत सरकार ने यह नीतिगत फैसला अचानक नहीं लिया है, बल्कि देश में जन-असंतोष को दबाने और मजबूत फैसले लेने वाली सरकार की छवि को बरकरार रखने के लिए उठाया गया कदम है।

पहलगाम आतंकी हमले पर सरकार के पास कोई तार्किक जवाब नहीं है। इन जवाबों से बचने के लिए सोशल मीडिया पर आईटी सेल के पास अब पाकिस्तान का पानी रोकने का वैसा ही मुंहतोड़ जवाब मौजूद है, जैसा कि 2020 में भारत-चीन सैन्य झड़प में 20 भारतीय जवानों की शहादत के जवाब में चीनी टिकटॉक सहित 100 से अधिक ऐप्स पर प्रतिबंध लगाकर मोदी सरकार ने करारा जवाब दिया था।

पहलगाम आतंकी हमले में मारे गए एक पिता का नन्हा बच्चा भी जब दर्जनों गोदी मीडिया चैनलों के माइक पर यह बुनियादी सवाल करता है कि पहलगाम जैसे पर्यटन स्थल पर सेना की तैनाती क्यों नहीं थी, तो समझा जा सकता है कि देश के नीति-नियंताओं और आईबी-एनआईए के पास अपना मुंह छिपाने के लिए पाकिस्तान को छठी का दूध याद दिलाने जैसे जुमलों के सिवाय और क्या बचता है?

(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं)

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