अखिल भारतीय किसान संघर्ष समिति के आह्वान पर कल 14 अक्तूबर को पूरे देश के सैकड़ों किसान संगठन सी-2 लागत आधारित समर्थन मूल्य की मांग पर देशव्यापी आंदोलन करेंगे। किसान ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य अधिकार दिवस’ मनाएंगे। इस आंदोलन का स्वरूप अलग-अलग होगा। कहीं रेल रोकी जाएगी, कहीं रास्ते, कहीं गांवों में प्रदर्शन होंगे, तो कहीं भाजपा सांसदों और विधायकों के निवास और घरों पर प्रदर्शन आयोजित किए जाएंगे।
आज मंगलवार को जारी एक बयान में छत्तीसगढ़ किसान सभा के राज्य अध्यक्ष संजय पराते और महासचिव ऋषि गुप्ता ने बताया कि प्रदेश में भी किसानों और आदिवासियों के बीच काम करने वाले पचीसों संगठन आंदोलन करेंगे और न्यूनतम समर्थन मूल्य सी-2 लागत का डेढ़ गुना घोषित करने का कानून बनाने, इस मूल्य पर अनाज खरीदी करने के लिए केंद्र सरकार के बाध्य होने का कानून बनाने और किसी भी व्यापारी या कंपनी और इनके बिचौलियों द्वारा घोषित समर्थन मूल्य से कम कीमत पर फसल की खरीदी को कानूनन अपराध घोषित करने और जेल की सजा का प्रावधान करने की मांग करेंगे।
उन्होंने बताया कि आंदोलन करने वाले संगठनों में छत्तीसगढ़ किसान सभा, आदिवासी एकता महासभा, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन, हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति, राजनांदगांव जिला किसान संघ, दलित-आदिवासी मंच, छग प्रदेश किसान सभा, जनजाति अधिकार मंच, छग किसान महासभा, छमुमो (मजदूर कार्यकर्ता समिति), परलकोट किसान कल्याण संघ, अखिल भारतीय किसान-खेत मजदूर संगठन, वनाधिकार संघर्ष समिति और भू-अधिकार संघर्ष समिति, धमतरी व आंचलिक किसान सभा, सरिया आदि संगठन प्रमुख हैं।
इन संगठनों से जुड़े किसान नेताओं ने कहा कि यह आंदोलन संसद में भाजपा सरकार द्वारा अलोकतांत्रिक तरीके से पारित कराए गए तीन किसान विरोधी कानूनों के खिलाफ चलाए जा रहे दो माह लंबे देशव्यापी अभियान की ही एक कड़ी है, जो 26-27 नवंबर को दिल्ली में आयोजित किसान रैली में अपने उत्कर्ष पर पहुंचेगा। उन्होंने मोदी सरकार के इस दावे को महज लफ्फाजी और जुमलेबाजी करार दिया कि वह स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार किसानों को समर्थन मूल्य दे रही है।

उन्होंने कहा कि वास्तविकता यह है कि मोदी सरकार द्वारा घोषित समर्थन मूल्य सी-2 लागत मूल्य से भी कम है, जबकि स्वामीनाथन आयोग ने फसलों की सी-2 लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की सिफारिश की है। इन किसान नेताओं ने कहा कि छत्तीसगढ़ में धान प्रमुख फसल है, जिसका अनुमानित उत्पादन लागत 2100 रुपये प्रति क्विंटल बैठता है और सी-2 फार्मूले के अनुसार धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 3150 रुपये प्रति क्विंटल होना चाहिए, जबकि मोदी सरकार ने समर्थन मूल्य 1815 रुपये ही घोषित किया है। इस प्रकार, धान उत्पादक किसानों को वास्तविक समर्थन मूल्य से 1430 रुपये और 45% कम दिया जा रहा है।
इसी प्रकार, पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष खरीफ फसलों की कीमतों में मात्र 2% से 6% के बीच ही वृद्धि की गई है, जबकि इसी अवधि में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई में 10% और डीजल की कीमतों में 15% की वृद्धि हुई है और किसानों को खाद, बीज और दवाई आदि कालाबाज़ारी में दोगुनी कीमत पर खरीदना पड़ा है। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार का यह रवैया सरासर धोखाधड़ीपूर्ण और किसानों को बर्बाद करने वाला है।
किसान नेताओं ने अपने साझा बयान में आरोप लगाया है कि इन किसान विरोधी कानूनों का असली मकसद समर्थन मूल्य और सार्वजनिक वितरण प्रणाली को खत्म करना ही है, जो हमारे देश की खाद्यान्न आत्मनिर्भरता और पोषण सुरक्षा का आधार है। यह किसानों और आम उपभोक्ताओं दोनों के हितों के खिलाफ है।
किसान नेताओं ने इन केंद्रीय कानूनों के किसान समुदाय पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को निष्प्रभावी करने के लिए राज्य की कांग्रेस सरकार द्वारा की जाने वाली पहलकदमी का भी स्वागत किया है और कहा है कि चूंकि कृषि संविधान में राज्य का विषय है, इसलिए राज्य को अपने किसानों के हितों की रक्षा करने का पूरा अधिकार है। उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ में माकपा सहित सभी वामपंथी दलों और जन संगठनों ने इस किसान संगठनों के इस साझा आह्वान को अपना समर्थन देने की घोषणा की है।
छत्तीसगढ़ में किसान संगठनों के साझा मोर्चे की ओर से विजय भाई, संजय पराते, ऋषि गुप्ता, बाल सिंह, आलोक शुक्ल, सुदेश टीकम, राजिम केतवास, मनीष कुंजाम, रामा सोढ़ी, पारसनाथ साहू, अनिल शर्मा, केशव शोरी, नरोत्तम शर्मा, रमाकांत बंजारे, आत्माराम साहू, नंदकिशोर बिस्वाल, मोहन पटेल, संतोष यादव, सुखरंजन नंदी, राकेश चौहान, विशाल वाकरे, कृष्णा कुमार लकड़ा, बिफन यादव, वनमाली प्रधान, लंबोदर साव, सुरेन्द्रलाल सिंह, पवित्र घोष, मदन पटेल की तरफ से यह बयान जारी किया गया है।