छत्तीसगढ़ में आदिवासियों का आंदोलन और हिंदुत्व बना कांग्रेस की हार का कारण

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रायपुर। छत्तीसगढ़ में विधानसभा के चुनाव परिणाम तीन दिसंबर की शाम को सबके सामने आ गया। भाजपा की भारी बहुमत के साथ जीत हुई। कुल 90 विधानसभा सीटों में भाजपा की झोली में 54 और कांग्रेस की 35 और 1 सीट अन्य के खाते में आई है।  

छत्तीसगढ़ चुनाव परिणाम ने सबको चौंका दिया है। खासकर एक तबका जो यह मान कर चल रहा था कि कांग्रेस की सरकार दोबारा बनने वाली है। एग्जिट पोल में भी यही बताया गया कि कांग्रेस बहुमत के आंकडों को पार कर जाएगी।

लेकिन रविवार को सुबह 11 बजे के बाद जैसे ही भाजपा ने 44 सीटों पर बढ़त बनाई और कांग्रेस 42 सीटों पर खिसक गयी, तो धीरे-धीरे यह साफ हो गया कि भाजपा की जीत होगी। लेकिन जीत का यह आंकड़ा बहुमत तक ही सीमित नहीं रहा।

अब कांग्रेस की इस हार के अलग-अलग कारणों पर मंथन किया जा रहा है क्योंकि खुद कांग्रेस भी ऐसी हार के लिए तैयार नहीं थी।

एग्जिट पोल का आंकड़ा देखने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने कहा था कि हमारी पार्टी अच्छी सीटें ला रही है यही एक बड़ा बदलाव है। इसमें कहीं पर भी जीत के बारे में कोई जिक्र नहीं किया गया।

अब जब रविवार को परिणाम की घोषणा हुई तो सबकी जुबान पर एक ही बात थी मोदी का जादू एक बार फिर चल गया। इस जादू के पीछे कई कारण हैं।

मैं पिछले छह महीने से छत्तीसगढ़ में हूं। लगातार बस्तर में राजनीतिक घटनाओं को देख रही हूं। शांत स्वभाव का यह राज्य है और यहां के लोग कम बोलने के साथ ज्यादा काम करने पर भरोसा करते हैं। ऐसा ही कुछ कमाल साइलेंट वोटर ने किया है।

दशहरे के पहले तक चुनाव की तारीख घोषित हो जाने के बाद भी लोगों में चुनाव को लेकर कुछ खास उत्साह नहीं था। तब तक यह माना जा रहा था कि ज्यादा तो नहीं पर बस्तर संभाग में कांग्रेस ठीक-ठाक सीट ले ही आएगी।

लेकिन त्योहारी सीजन खत्म होते हैं चुनावी त्योहार शुरू हो गया। बस्तर में राष्ट्रीय स्तर के बड़े नेता आने लगे। खुद पीएम मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ आए थे। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस की तरफ से राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, कांग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे चुनाव प्रचार के लिए आए।

कांकेर में पीएम मोदी आए उनके लिए एक छोटी बच्ची स्कैच बनाकर लाई थी। इस बच्ची को पीएम ने बुलाकर उससे स्केच को लिया। कांकेर की सीट पर भाजपा के आशाराम नेताम ने कांग्रेस के शंकर ध्रुवा को मात्र 16 वोट से हराया है। इस तरह से कांग्रेस के हार के कई बड़े कारण रहे हैं।

धर्मांतरण का मुद्दा भाजपा के लिए फायदेमंद

पिछले लंबे समय से पूरे बस्तर संभाग में धर्मांतरण एक बड़ा मुद्दा बना हुआ था। जिस पर कांग्रेस ने एकदम ध्यान नहीं दिया। यहां जिन सीटों पर कांग्रेस हारी है वहां धर्मांतरण के साथ-साथ ईसाई उत्पीड़न के भी कई मामले सामने आए हैं। जहां नल से पानी न लेने देने से लेकर लाशों को सार्वजनिक कब्रिस्तान में दफन नहीं करने देने तक की खबरें देखने को मिलीं।

इसी साल दो नवंबर को नारायणपुर में जो हुआ उसे कोई नहीं भूला था। इस दौरान आदिवासी ईसाईयों को एक उम्मीद थी कि सत्ता पक्ष से कोई उनका हालचाल पूछने आए। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जिसका नतीजा यह हुआ कि ईसाइयों का वोट अन्य जगह शिफ्ट हो गया।

जो लोग धर्मांतरण के खिलाफ थे वह तो भाजपा के साथ आए। लेकिन आदिवासी ईसाई जो कांग्रेस का कोर वोटर माने जाते हैं वह अन्य लोगों में अपना नेता खोजने लगे। यही कारण है कि जिन विधानसभा सीटों पर यह मामला सबसे ज्यादा था वहां भाजपा को इसका फायदा मिला है।

आंदोलनों का असर

बस्तर में आदिवासी लंबे समय से अपनी मांगों को लेकर धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। सिर्फ नारायणपुर जिले में ही पांच जगहों पर आदिवासी अपनी तीन सूत्रीय मांगों को लेकर अलग-अलग जगह पर धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। चुनाव के दौरान और उसके बाद मैंने इन धरना प्रदर्शनों पर लोगों से बातचीत करके पूछा कि क्या कोई बड़ा नेता यहां मिलने आया था। एक ही जवाब मिला कि चंदन कश्यप एक बार भी नहीं आएं यहां तक कि कांग्रेस का भी कोई नेता नहीं आया।

सिलगेर वाली घटना घटित हुए दो साल हो गए हैं। आदिवासी आज भी न्याय की आस में बैठे हैं। सरकार ने मुआवजा देने और जांच की बात कही थी। लेकिन कुछ नहीं हुआ। बस्तर की अधिकांश सीटों पर नोटा तीसरे नंबर पर रहा है। जहां जनता ने भाजपा और कांग्रेस दोनों को ही नकारा है।

इंफ्रास्ट्रक्चर कमजोर

राहलु गांधी और भूपेश बघेल अपने भाषणों में अपनी उपलब्धियों में आत्मानंद स्कूल और गोठान का खूब जिक्र किया। यहां तक कि केजी से पीजी तक की पढ़ाई की भी घोषणा की लेकिन इसका कोई असर देखने को नहीं मिला।

जनता आज भी आधारभूत सुविधाओं पर ज्यादा ध्यान देती है। बस्तर की सड़कें टूटी-फूटी हैं। इसमें ज्यादातर सड़कें नेशनल हाईवे कैटेगिरी में केंद्र सरकार के अंतर्गत आती हैं। लेकिन जनता इस बात को चुनाव के दौरान नहीं समझती है। केशकाल घाटी का एनएच 30 की स्थिति इसका एक उदाहरण है। कोंडागांव से नारायणपुर जाती सड़क का हाल बुरा था। मतदान से कुछ दिन पहले ही यह पेच लगाने का काम किया गया। कई गांव आज भी सड़क से नहीं जुड़े हैं।

जल जीवन मिशन के तहत लोगों के घरों तक पानी आना था। लेकिन उसकी स्थिति ऐसी है कि कहीं-कहीं पर तो पानी की लाइन ही नहीं पहुंची है। बाकी जहां पहुंची हैं। वहां पानी नहीं आ रहा। कोंडा में तो कई गांवों में यह स्थिति हैं। इसी साल गर्मी में मैंने यहां से खबर की थी कि कैसे महिलाएं चिलचिलाती धूप में चुएं से पानी लेकर जा रही हैं।

साहू समाज में नाराजगी

छत्तीसगढ़ में साहू समाज ओबीसी के एक बड़ा वर्ग है। जिसकी संख्या पूरे राज्य में लगभग 33 प्रतिशत हैं। बेमेतरा जिले की साजा सीट में साहू समाज का गुस्सा देखने के मिला। साजा सीट पर ईश्वर साहू (एक किसान) और सूबे की कृषि मंत्री रविंद्र चौबे के बीच लड़ाई थी। इसी साल एक झड़प के दौरान ईश्वर साहू के बेटे की हत्या हो गई थी। भाजपा इसे सांप्रदायिक रंग देने में कामयाब हो गयी और चुनाव के दौरान साहू को भाजपा प्रत्याशी बना दिया गया।

भाजपा का एक साधारण से किसान को टिकट देना एक पूरे समाज को भा गया। लोगों ने भाजपा के इस कदम को हिंदुत्व से जोड़कर देखा और वोट किया।

दूसरा कारण यह भी रहा कि साहू समाज द्वारा साल 2018 में ताम्रध्वज साहू को मुख्यमंत्री बनाए जाने की चर्चा के बीच कांग्रेस को वोट किया था। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। इस मामले में साहू समाज के लोग अपने को ठगा महसूस किया। वहीं दूसरी ओर भाजपा ने इसका फायदा उठाया और अरुण साव को भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया और सरगुजा संभाग की लोरमी विधानसभा से टिकट दिया। जहां उन्होंने 75070 वोटों से जीत दर्ज की।

साहू समाज के लोगों को यह भरोसा है कि वह मुख्यमंत्री की रेस में हैं। अपने समुदाय के किसी व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाने के लिए लोगों ने वोट किया है।

हिंदुत्व एक बड़ा मुद्दा

ज्यादातर मीडिया संस्थानों में यह खबर चली कि छत्तीसगढ़ में हिंदू-मुस्लिम जैसी कोई चीज नहीं है। लेकिन ग्रांउड की सच्चाई कुछ और थी। बस्तर में जहां धर्मांतरण ने आदिवासियों को कट्टर हिंदू बनाया वहीं दूसरी ओर मैदानी भाग में बिरहनपुर जैसी घटनाओं ने चुनाव के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।  

पीएम मोदी ने दुर्ग में और मैदानी इलाकों की अपनी रैली में ईश्वर साहू के बेटे का जिक्र किया। इतना ही नहीं ज्यादातर लोगों को यह भी लग रहा था कि कांग्रेस ने भाजपा से हिंदुत्व वाले मुद्दे को छीन लिया है। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।

साइलेंट वोटर ने हिंदुत्व के मुद्दे पर वोट किया है। कांग्रेस ने रामकथा कराई, राम वन गमन पथ बनाया। हिंदू वोटर्स को लुभाने की कोशिश की। लेकिन भाजपा हिंदू-मुस्लिम कराने में सफल रही। जिसका नतीजा है कि मैदानी हिस्से में बेमेतरा जिले की सभी तीन सीटें, दुर्ग की छह में से चार, रायपुर की सभी सात सीटों पर भाजपा को अच्छी-खासी जीत हासिल हुई है।

(छत्तीसगढ़ से पूनम मसीह की रिपोर्ट।)

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