गांधी जयंती के अवसर पर कल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने झारखंड के हजारीबाग में ‘धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान’ की शुरुआत की है। इस अभियान में 83300 करोड़ रुपए की योजनाएं देश के 63000 ग्रामों में 5 करोड़ आदिवासी लोगों के उत्थान के लिए लागू की जायेगी।
देश के 30 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के 549 जिलों के 2740 ब्लॉकों में इस योजना को चलाया जाएगा। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत वर्ष में 10.45 करोड़ अनुसूचित जनजाति के लोग रहते हैं और 705 जनजाति समूह इसमें आते हैं।
इस अभियान में 25 लक्ष्य तय किए गए हैं और 17 मंत्रालय व विभाग आपस में मिलकर इसमें काम करेंगे।
इन 17 मंत्रालय में ग्रामीण विकास, जल शक्ति, ऊर्जा, नवीन ऊर्जा, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, पेट्रोलियम और नेचुरल गैस, महिला और बाल विकास, शिक्षा, आयुष, टेलीकॉम, स्किल डेवलपमेंट, इलेक्ट्रॉनिक और इन्फॉरमेशन टेक्नोलॉजी, कृषि और किसान कल्याण, मत्स्य और पशु पालन विभाग, पंचायती राज, पर्यटन और जनजाति कल्याण विभाग रखे गए है।
इसमें 1380 किलोमीटर सड़क, 250 बहुउद्देशीय केन्द्र, 500 आंगनबाड़ी केन्द्र, 10 छात्रावास, 275 मोबाइल मेडिकल यूनिट, 75800 घरों का विद्युतिकरण किया जाना है। यह लक्ष्य ही घोषणा की तुलना में बेहद कम है।
बहरहाल यह पिछले साल आदिवासी नायक बिरसा मुंडा की जयंती 15 नवम्बर पर झारखंड से ही मोदी जी द्वारा शुरू की गई प्रधानमंत्री जनजाति आदिवासी नया महाअभियान (पीएम जनमन योजना) का ही दूसरा रूप है। इससे पहले मोदी सरकार ने प्रधानमंत्री वनबंधु कल्याण योजना और जनजाति विकास मिशन चलाई थी।
आज तक सरकार ने इसका मूल्यांकन नहीं किया कि इन योजनाओं के लाभ कहां तक आदिवासियों को पहुंचे। झारखंड चुनाव से पहले आदिवासियों को आकर्षित करने के लिए भाजपा-आरएसएस ने बिरसा मुंडा को भगवान मानने वाले आदिवासियों द्वारा दिए गए नाम ‘धरती आबा’ के नाम पर यह योजना चलाई है।
इस योजना में नया कुछ भी नहीं है यह नई बोतल में पुरानी शराब है।
18 सितंबर को प्रेस ब्यूरो ऑफ इंडिया के द्वारा जारी किए गए प्रेस नोट के मुताबिक कैबिनेट बैठक में इस योजना को लागू करने का प्रस्ताव पारित हुआ है। इस योजना के तहत दिए गए जो विभिन्न लक्ष्य है। उनको यदि हम गौर से देखें तो यह पाएंगे कि सरकार ने अपने बजट में इनमें से तमाम के बजट को घटा देने का काम किया है।
इसके पहले सरकार ने आदिवासियों के विकास के नाम पर प्रधानमंत्री वन बंधु कल्याण योजना शुरू की थी। 2023-24 के बजट में इसके लिए 4295.40 करोड़ रुपया आवंटित किया गया था जो इस बार घटा कर 4241.47 करोड़ रुपया कर दिया गया है।
इसी तरह पिछले वर्ष शुरू की गई पीएम जनमन योजना में बहुत कम धनराशि 240 करोड़ रुपया ही आवंटित किया गया है। जनजाति विकास मिशन (पीएमजेवीएम) में बजट घटकर 288.49 करोड रुपए से 152.32 करोड़ रुपया कर दिया गया है।
इसी तरह जितने भी जनजातियों के कल्याणकारी कार्यक्रम है उनका कुल बजट 600 करोड़ रुपया 2023-24 की तुलना में घटाकर 560 करोड़ रुपया कर दिया गया है। आदिवासी कल्याण मंत्रालय के बजट में बहुत मामूली महज 550 करोड़ रुपए की वृद्धि की गई है।
आदिवासी बच्चों की स्कॉलरशिप में बेहद कम बढ़ोतरी की गई है पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप 202- 24 में 2371.01 करोड़ की तुलना में 2374.5 करोड़ की गई है, प्री मैट्रिक स्कॉलरशिप 411.63 करोड़ की तुलना में इस बार 440.36 करोड़ रुपए की गई है और हायर एजुकेशन की स्कॉलरशिप को घटाकर 2023-24 के 230 करोड़ रुपए से 165 करोड़ रुपए कर दिया गया है।
जिस आदि आदर्श ग्राम पेयजल योजना का बड़ा जिक्र सरकार करती है, उसका बजट घटा कर 2023-24 में आवंटित 1485 करोड़ रुपए को इस बार 1000 करोड़ कर दिया गया है। एकलव्य विद्यालय के बजट में महंगाई की तुलना में बेहद कम वृद्धि महज 300 करोड़ रुपए की गई है।
इसकी हालत यह है कि 2023-24 के बजट में 5943 करोड़ रुपया आवंटित किया गया था। जिसमें से मात्र 2471.81 करोड़ रुपए ही खर्च किया गया।
यदि हम एसटी सब प्लान जो बजट के 10 बी एक्सपेंडिचर प्रोफाइल में दर्ज किया जाता है यदि उसको गौर से देखें तो 124908.95 करोड़ रुपए के वेलफेयर फंड में ज्यादातर पैसा कॉर्पोरेट घरानों के लाभ के लिए रखा गया है।
सामाजिक सुरक्षा व जनजातियों के शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार आदि मदों में कटौती ही की गई है।
ग्रामीण विकास का बजट में जनजाति के लिए मनरेगा में 2022-23 में आवंटित 11291.99 करोड़ रुपए की तुलना में 23-24 में 10355 करोड़ रुपए आवंटित किया गया और इस बार इसे 10000 करोड़ रुपया कर दिया गया है।
प्रधानमंत्री आवास योजना में बजट तो बढ़ाया गया लेकिन उसकी सच्चाई यह है कि 23-24 में 9536.26 करोड़ रुपया आवंटित किया गया था, जिसमें से 6220.05 करोड़ रुपया ही खर्च किया गया है। वृद्धावस्था पेंशन, पारिवारिक बेनिफिट, विधवा व विकलांग पेंशन के बजट में कोई भी वृद्धि इस बार नहीं की गई है।
इस सामाजिक सहायता कार्यक्रम में 1041.73 करोड़ रुपया पिछले वित्तीय वर्ष में आवंटित था वैसे ही पड़ा हुआ है। टूरिज्म डिपार्टमेंट पर्यटन विभाग में स्वदेश दर्शन के नाम पर बजट को 103 करोड़ रखा गया है। जिसमें आदिवासी गांव में विदेशी पर्यटकों के रहने के लिए ग्रामीण आवास वगैराह निर्मित किए जाने है।
एमएसएमई सेक्टर जिसमें आदिवासी सबसे ज्यादा काम करते हैं। उसमें 2022 में आवंटित 2446.8 करोड रुपए को घटाकर इस बार 1881.42 करोड़ रुपए कर दिया गया है।
श्रम और रोजगार में देखा जाए तो असंगठित मजदूरों के डेटाबेस के बजट को घटकर 17.85 करोड़ रूपया, आदिवासी बच्चों की कोचिंग के बजट को घटकर 7.5 करोड़ से 1.7 करोड़ रुपया, श्रम योगी मान धन योजना में 30.10 करोड़ के बजट को घटा के 15.24 करोड़, श्रमिकों के कल्याण की योजनाओं में 8.57 करोड़ से घटकर 4.35 करोड़, बाल श्रम के पुनर्वास के लिए आवंटित 1.12 करोड़ को घटकर 52 लाख कर दिया गया।
जिस योजना की मोदी सरकार बहुत तारीफ करती है, आत्मनिर्भर भारत रोजगार योजना, उसमें 22-23 में 399.20 करोड़, 23-24 में 201.70 करोड़ आवंटन था, जिसे घटाकर मात्र 14.90 करोड़ रुपया कर दिया गया है।
आयुष्मान भारत जिसकी आज भी प्रधानमंत्री बड़ी तारीफ कर रहे थे उस प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना में 2022-23 में 726.20 करोड़ रुपए आवंटित हुआ था। जिसे घटाकर 23-24 में 688.97 करोड़ किया गया और 24-25 के भी बजट में 715.15 करोड़ रूपया रखा गया है।
मेडिकल एजुकेशन के बजट में बड़ी कटौती की गई है पिछले वित्तीय वर्ष में आवंटित 5559 करोड़ रुपए को घटकर 112.22 करोड़ कर दिया गया है। इसी प्रकार स्वास्थ्य के कुल बजट में जो पिछले वित्तीय वर्ष में 4830.41 करोड़ था।
उसे घटकर 4744.53 करोड़ रुपया कर दिया गया है। प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल योजना की भी बड़ी चर्चा होती है, उसमें इस वर्ष कोई भी बजट सरकार ने आवंटित नहीं किया है।
यदि शिक्षा में स्कूल शिक्षा और साक्षरता मिशन को देखा जाए तो पीएम पोषण में जिससे बच्चों को मिड-डे मिलता है, महंगाई की तुलना में मात्र 14 करोड़ रुपए की वृद्धि की गई है।
हायर एजुकेशन में 6 करोड़ रुपए की वृद्धि की गई है और पीएम उच्च शिक्षा प्रोटेक्शन योजना में बजट घटा दिया गया है। पीएम आदिवासी छात्राओं के छात्रावास के लिए महज 10 लाख रुपए आवंटित किया गया है।
आदिवासियों की रिसर्च फैलोशिप के बजट को 34 करोड़ से घटाकर 30 करोड़ कर दिया गया है और आईआईटी में पढ़ने वाले आदिवासी बच्चों की सहायता के लिए पिछले वित्तीय वर्ष में आवंटित 326.89 करोड़ के बजट को घटाकर 306 करोड़ रुपए कर दिया गया है।
इसी तरह यदि हम देखें खाद्यान्न और सार्वजनिक वितरण बजट 2022-23 में 12756.53 करोड़ था। जिसे इस बार घटा के 10169 करोड़ रुपया कर दिया गया है। जो आदिवासी गरीबों लोगों को मुफ्त राशन मिलता है उसकी सब्सिडी 2022-23 में 9231.92 करोड़ की तुलना में इस बार 6260.35 करोड़ रुपया ही आवंटित की गई है।
आदिवासियों के सांस्कृतिक उत्थान की बड़ी बातें भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस के लोग करते हैं, उसके बजट में 13 करोड़ रुपए की कटौती की गई है।
कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा के बजट क्रॉप साइंस, हॉर्टिकल्चर साइंस, एनिमल साइंस, फिशरी साइंस, एग्रीकल्चर एक्सटेंशन, एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटीज को एक भी पैसे का बजट आवंटित नहीं किया गया है।
कृषि के बजट में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में जो जनजाति को दिया जाने वाला बजट है, उसमें 35 करोड़ रुपए की कटौती की गई है। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि में 5260 करोड़ 23-24 में आवंटित किया गया था, वही इस बार भी आवंटित किया गया है।
केंद्र सरकार द्वारा फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइजेशन (एफपीओ) की बड़ी चर्चा होती है। इसमें महज 49.36 करोड रुपए का आवंटन हुआ है। मार्केट इंटरवेंशन और प्राइस सपोर्ट स्कीम के लिए मात्र 4.8 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है।
फूड और न्यूट्रिशन सुरक्षा, ऑर्गेनिक चेंज हॉर्टिकल्चर, डेवलपमेंट सीट्स एंड प्लैनिंग मटेरियल, डिजिटल एग्रीकल्चर मार्केटिंग का जो बजट 458.61 करोड़ था, उसमें इस बार कोई पैसा आवंटित नहीं किया गया है।
प्रधानमंत्री अन्नदाता आम संरक्षण योजना में कोई पैसा इस बार के बजट में आवंटित नहीं किया गया है। कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर फंड में जो बजट पिछली बार था वही बजट इस बार भी दिया गया है।
वहीं दूसरी तरफ अनुसूचित जनजाति के सब प्लान से काफी बड़ा पैसा कॉर्पोरेट घरानों को दिया गया है। टेली कम्युनिकेशन में 582.65 करोड़ रुपया जिसमें टेलीफोन टावर और लाइन लगाई जानी है।
भारत नेट में 365.50 करोड़, न्यू एंड रिन्यूएबल एनर्जी में 1259.31 करोड़ रुपया, सोलर पावर में 905 करोड़ रुपया, नए गैस सिलेंडर कनेक्शन के लिए 391 करोड़ रुपया, हाईवेज और रोड ट्रांसपोर्ट के निर्माण के लिए 16300 करोड़ रुपया और खाद्य सब्सिडी में नाम पर यूरिया में 5633.63 करोड़ दिया गया।
जबकि न्यूट्रीएंट खाद 2062.52 करोड़ रुपया तथा सेमी कंडक्टर निर्माण के लिए 462.50 करोड़ रुपए दिए गए है। जिनका आदिवासियों के उत्थान से सीधा सम्बंध नहीं है। यही नहीं बजट में अडानी के प्रोजेक्ट जल जीवन मिशन के लिए 7016.30 करोड़ रुपया आवंटित किया गया है।
उपरोक्त आंकड़ों को यदि आप देखें तो आपके सामने यह स्पष्ट हो जाएगा कि भारतीय जनता पार्टी की मंशा जनजाति कल्याण की नहीं है। सभी लोग जानते हैं कि जनजाति बाहुल्य इलाकों में आरएसएस के लोग कॉर्पोरेट की आर्थिक मदद के जरिए विभिन्न नामों से काम करते हैं।
ये उनकी सभ्यता, संस्कृति, बोली भाषा, रीति-रिवाज को खत्म करके उनका इस्तेमाल हिन्दुत्व की राजनीति के लिए करते हैं। आदिवासी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर खनिज संपदा और प्राकृतिक संसाधन है, जिनका कॉर्पोरेट दोहन करना चाहता है, उनके इस काम में आरएसएस के लोग मदद करते है।
आदिवासियों का कोई भी शांतिपूर्ण आंदोलन हो तो उस पर हमला करना, फर्जी एनकाउंटर्स में हत्याएं कराना और आदिवासियों के विरूद्ध राज्य की तरफ से युद्ध का संचालन करना भारतीय जनता पार्टी के राज्यों में देश ने देखा है।
लोकसभा चुनाव में झारखंड में आदिवासी बाहुल्य वाली सीटों पर हारने के बाद भाजपा घबराई हुई है और योजनाओं की घोषणा के चकाचौंध से वह वहां आसन्न विधानसभा चुनाव जीतना चाहती है।
इसलिए भाजपा और आरएसएस के बहकावे वाली कार्रवाईयों में फंसने की जगह आदिवासियों को लोकतांत्रिक राजनीति के साथ खड़ा होना चाहिए और अपनी ताकत मजबूत करनी चाहिए।
(दिनकर कपूर आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट, उत्तर प्रदेश के प्रदेश महासचिव हैं)
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