बस्तर। सलवा जुडूम बंद होने के बाद नक्सलियों के डर से तेलंगाना और आंध्रप्रदेश में जाकर बसे आदिवासियों को बस्तर में फिर से बसाया जाएगा। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सोमवार को इसका ऐलान किया है। मुख्यमंत्री बघेल ने कहा, तेलंगाना और आंध्रप्रदेश गए छत्तीसगढ़ के लोग यदि वापस आना चाहते हैं, तो राज्य सरकार उनका दिल से स्वागत करने को तैयार है। कार्ययोजना बनाकर उनके पुनर्वास के लिए अनुकूल वातावरण बनाया जाएगा। इस घोषणा के बाद सामान्य प्रशासन विभाग ने विस्थापितों के पुनर्वास के लिए बस्तर संभागायुक्त को इसका नोडल अधिकारी बनाया है। वे जनप्रतिनिधियों के साथ समन्वय कर पुनर्वास की कार्ययोजना बनाएंगे। इसके अलावा विस्थापितों के संपर्क के लिए अलग से मोबाइल नम्बर जारी किया जाएगा।

बता दे कि बस्तर में 2005 में शुरू किए गये सलवा जुडूम अभियान में सैकड़ों लोग मारे गये थे और 644 गाँवों को पूरी तरह से ख़ाली करवा दिया गया था। अब मुख्यमंत्री ने छत्तीसगढ़ से विस्थापित एक लाख से अधिक आदिवासियों के पुनर्वास की बात कही है।
लंबे समय बाद छत्तीसगढ़ में एक बार फिर सलवा जुडूम चर्चा में आ गया है। दरअसल, सलवा जुडूम बंद होने के बाद नक्सलियों की डर से सुकमा, बीजापुर व दंतेवाड़ा के हजारों आदिवासी तेलंगाना-आंध्रप्रदेश में जाकर बस गए थे, लेकिन वहां की सरकार इन आदिवासियों को बाहरी बताकर जमीन से बेदखल कर रही है। ऐसे में अपनी सरकार से मदद मांगने तेलंगाना में रहने वाले छत्तीसगढ़ के आदिवासियों ने मंगलवार को रायपुर आकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मुलाकात की।
मुख्यमंत्री से हुई मुलाकात के दौरान प्रतिनिधिमंडल ने उनसे किसी उपयुक्त स्थान में बसाने और कृषि के लिए जमीन उपलब्ध कराने का आग्रह किया। मुख्यमंत्री ने उनकी मांग पर कहा कि छत्तीसगढ़ वापस आने के इच्छुक लोगों को जमीन देने के साथ उन्हें राशन दुकान, स्कूल, रोजगार सहित मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी।
मुख्यमंत्री से हुई मुलाकात के बाद राज्य अनसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष भानुप्रताप सिंह ने पत्रकार वार्ता में कहा, सलवा जुडूम के दौरान 2012 में वह पुलिस और नक्सलियों की प्रताड़ना से तंग आकर करीब 45 हजार लोगों ने पलायन किया था। पिछले कुछ समय से तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के जिला और पुलिस प्रशासन उन्हें परेशान कर रहे हैं। इन पर जंगल को उजाड़ने का आरोप लगाकर जमीन और घरों से बेदखल किया जा रहा है।
क्या है सलवा जुडूम
नक्सलियों के खिलाफ लडने के लिए 2005 में सलवा जुडूम अभियान शुरू हुआ था। इसकी शुरुआत करने में दिवंगत महेन्द्र कर्मा का अहम योगदान रहा। इस अभियान को एक तरह से तत्कालीन राज्य सरकार का भी समर्थन था। बाद में आंदोलन का स्वरूप हिंसात्मक होते गया। जबकि सलवा जुडूम गोण्डी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है शांति का कारवां। इस अभियान का असर यह हुआ कि यहां के करीब 644 गांव खाली हो गए। उनकी एक बड़ी आबादी सरकारी शिविरों में रहने के लिए बाध्य हो गई। कई लाख लोग बेघर हो गए। सैकड़ों लोग मारे गए। यह संघर्ष कई सालों तक चला। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और सुप्रीम कोर्ट ने सलवा जुडूम मामले में सरकार की कड़ी आलोचना की। 5 जुलाई 2011 को सलवा जुडूम को पूरी तरह से खत्म करने का फैसला सुनाया गया था।
(जनचौक संवाददाता तामेश्वर सिन्हा की रिपोर्ट।)
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