सिलंगेर में सीआरपीएफ कैंप के खिलाफ आदिवासियों का आंदोलन जारी, जनप्रतिनिधियों का नौ सदस्यीय जांच दल पहुंचा मौके पर

बस्तर। बीजापुर और सुकमा जिले के मध्य बसे गांव सिलंगेर में नव स्थापित सीआरपीएफ कैंप के खिलाफ आदिवासियों के विरोध के 23वें दिन में प्रवेश करने के बाद, जन प्रतिनिधियों की नौ सदस्यीय मध्यस्थता सह जांच समिति आंदोलनरत आदिवासियों के साथ बातचीत करने के लिए विरोध प्रदर्शन वाले स्थान पर पहुंची।

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इस सप्ताह की शुरुआत में कांग्रेस के 1 सांसद और कुछ विधायकों समेत 9 सदस्यीय मध्यस्थता दल के दौरे की घोषणा की थी। कांग्रेस विधायकों और बस्तर संभाग के सांसद वाली टीम को जल्द ही मुख्यमंत्री को एक रिपोर्ट सौंपने को कहा गया था।

जिला प्रशासन और पुलिस अधिकारियों के साथ मध्यस्थ टीम ने प्रदर्शन स्थल सिलंगेर और तर्रेम गांव के बीच लगभग 5 किलोमीटर दूरी पर प्रदर्शनकारियों का प्रतिनिधित्व करने वाले 10 लोगों से अलग से मुलाकात की ।

 20 से अधिक गांवों के आदिवासी समुदायों के हजारों लोग 14 मई से सुरक्षा बल के कैम्प और पुलिस कार्रवाई के विरोध में सिलंगेर में एकत्र हुए हैं। 17 मई को प्रदर्शनकारियों की सुरक्षा बलों के साथ हुए झड़प के बाद तीन लोगों की मौत हो गई थी।

सिलंगेर के 65 वर्षीय कोर्सा सोमा ने कहा कि जिस जमीन पर कैंप लगा है वह उनका खेत था। गुरुवार को उन्होंने मध्यस्थ टीम के सामने इस मुद्दे को उठाया। “उन्होंने अपनी ज़मीन पर बिना किसी चेतावनी के कब्जा करने का आरोप लगाया है”।

बीजापुर के कलेक्टर रितेश अग्रवाल ने कहा कि प्रदर्शनकारियों से सरकारी समूह को सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है। “हमने उनसे उनकी जरूरतों के आधार पर हमें एक पत्र भेजने के लिए कहा। विकास की कई समस्याओं का समाधान किया जा चुका है। हमने समुदाय में सामग्री और अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए काम करना शुरू कर दिया है।”

तो वहीं गोली लगने से मृत उइका भीमा की भतीजी उइका बसंती ने बताया कि उन्हें प्रशासन की तरफ से 10-10 हजार रुपए दिए गए थे जिन्हें वापस लौटा दिया है ।

दूसरी तरफ कोवासी दुला, कोरसा छोटू,- मुचाकि लक्ष्मी, कोरसा सोमा ने बताया कि ग्रामीणों की मुख्य मांगों में कैम्प हटाने और गोली चलाने के (दिन ड्यूटीरत लोगों पर कार्रवाई, – घटना की आदिवासी व एक गैर आदिवासी जजों से न्याययिक जांच व पहल के लिए स्थानीय लोगों की समिति जैसी मांगे रखी हैं।

जब प्रदर्शनकारियों ने पुलिस कैम्प के बारे में शीर्ष अधिकारियों के सामने अपने आरोप लगाए थे, तो उन्होंने मौतों पर टिप्पणी करने से इंकार कर दिया, जिसमें एक पिछला सर्वेक्षण भी शामिल है।

टीम ने समुदाय के सदस्यों से वादा किया कि उन्हें पीने के पानी और अन्य स्वास्थ्य सुविधाओं जैसी सरकारी सुविधाओं तक पहुंच प्राप्त होगी।

मध्यस्थ समूह को ग्रामीणों के बीच से सबूत इकट्ठा और सकारात्मक पहल करने के लिए भी कहा गया था। फिलहाल सरकार की निगरानी का परीक्षण किया गया है।

आंदोलन करने वाले एक ग्रामीण अजय करम ने कहा कि हमें यहां सुरक्षित स्थान की आवश्यकता नहीं है, हमें कैम्प के बदले स्कूल, आंगनबाड़ी, अस्पताल की जरूरत है पुलिस कैम्प की नहीं।

बीजापुर विधायक विक्रम मंडावी ने बताया कि सांसद दीपक बैज की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय समिति ने गुरुवार को आक्रोशित ग्रामीणों से ढाई घंटे तक बातचीत की। मंडावी ने कहा कि सासंद दीपक बैज ने ग्रामीणों के बीच जाकर आखिरकार राज्य प्रशासन को उनकी मांगों और विकास के बारे में सूचित करने के लिए एक दिन का समय मांगा है।

-न्यायिक जांच और कैंप हटाने की मांग पर अड़े हुए हैं

ग्रामीण

-ग्रामीणों के साथ दो चरणों में हुई कांग्रेसी जांच दल की वार्ता

-लिखित जवाब के बाद ही आंदोलन खत्म करेंगे ग्रामीण

सामाजिक कार्यकर्ता सोनी सोरी ने कहा कि सरकार के प्रतिनिधियों ने पीड़ित और आंदोलनकारी ग्रामीणों से बात की है, यह एक सकारात्मक पहल है।

आदिवासी सामाजिक कार्यकर्ता ने चर्चा के दौरान कहा कि ग्रामीणों ने सिलंगेर कैंप को तत्काल हटाने सहित अपनी सबसे महत्वपूर्ण मांगें रखीं, यदि तुरंत संभव नहीं हो तो सरकार समय सीमा निर्दिष्ट करे।

दूसरी बात, आदिवासी ग्रामीणों को मारने वाली गोलीबारी की घटनाओं की जांच के लिए सेवानिवृत्त सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के तहत एक जांच समिति का गठन किया जाना चाहिए, फायरिंग की घटना के दोषी पुलिस अधिकारी पर मुकदमा चलाया जाना चाहिए,  गांव में आंगनवाड़ी, स्कूल और अस्पताल खोला जाना चाहिए। ठेके ग्रामीणों को दिए जाएं, अंत में पुलिस कैंप खोलने से पहले ग्राम सभा से अनुमति लेनी होगी, सोनी सोरी ने कहा।

गोंडवाना समन्वय समिति के अध्यक्ष तेलम बोरैया कहते हैं कि समाज की तरफ से प्रयास है कि दोनों पक्ष बातचीत कर हल निकालें।

(बस्तर से जनचौक संवाददाता रिकेश्वर राणा की रिपोर्ट।)

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