बिजली संकट : डीवीसी व झारखंड सरकार के बीच गतिरोध का कारण राजनीतिक तो नहीं?

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विगत कुछ दिनों से झारखंड और केन्द्र सरकार के बीच बिजली को लेकर गतिरोध चल रहा है। हालांकि इस मामले में केन्द्र सरकार के किसी मंत्री का बयान तो नहीं आया है लेकिन केन्द्र की सत्तारूढ़ पार्टी, भाजपा के स्थानीय नेताओं के बयान से यह गतिरोध राजनीतिक रूप ग्रहण कर लिया है। दरअसल, कई बार नोटिस जारी करने के बाद जब झारखंड सरकार ने दामोदर वैली कॉरपोरेशन (डीवीसी) का बिजली बकाया शुल्क भुगतान नहीं किया तो डीवीसी ने बिजली की आपूर्ति रोक दी।

डीवीसी प्रदेश के सात जिलों के लिए 600 मेगावाट बिजली प्रतिदिन झारखंड को देती है। इस आपूर्ति के रुकते ही बिजली को लेकर हाहाकार मच गया। प्रदेश के महत्वपूर्ण सात जिलों में 18 घंटे तक बिजली की आपूर्ति ठप रहने लगी। इसके लिए झारखंड की हेमंत सरकार ने जहां केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार को जिम्मेदार ठहराया, वहीं स्थानीय भाजपा के नेताओं ने हेमंत सरकार पर निशाना साधा। हालांकि इस मामले में कहीं न कहीं दोनों ओर से गलती के साथ ही साथ राजनीति भी हुई है। इस दोतरफी राजनीति का खामियाजा प्रदेश की जनता को भुगतना पड़ रहा है।

अभी-अभी हाल ही में विधानसभा चुनाव से पहले पांच साल तक झारखंड में रघुवर दास के नेतृत्व वाली सरकार चली लेकिन एक बार भी दामोदर वैली कॉरपोरेशन (डीवीसी) ने अपने बकाया राशि को लेकर न तो नोटिस दिया और न ही बिजली की आपूर्ति बाधित की। सरकार बदलते तीन महीने भी नहीं हुए कि अपने बकाया राशि को लेकर डीवीसी ने तगादा करना प्रारंभ कर दिया। झारखंड सरकार को पहले नोटिस भेजा और इसके बाद आनन-फानन में बिजली की आपूर्ति रोक दी।

इस बात को लेकर झारखंड की हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली सरकार ने जबरदस्त तरीके से आपत्ति दर्ज कराई है। हालांकि आपत्ति दर्ज कराने के बाद भी डीवीसी ने बिजली की आपूर्ति नहीं की और इसके कारण प्रदेश के 7 जिलों में बिजली को लेकर हाहाकार मचा हुआ है। इस बात को लेकर कई स्थानों पर आन्दोलन भी किए गए हैं। झारखंड व्यापार एवं उद्योग परिसंघ ने भी इस कटौती को लेकर नाराजगी के साथ ही साथ विरोध दर्ज कराया है।

दामोदर वैली कॉरपोरेशन का आरोप है कि झारखंड सरकार के पास लगभग पांच हजार करोड़ रुपये बकाया है। विगत कई वर्षों से सरकार ने कॉरपोरेशन को बिजली का मूल्य भुगतान नहीं किया है। कॉरपोरेशन का यह भी आरोप है कि कई बार नोटिस भेजने के बाद भी सरकार ने बिजली का बकाया देने की जरूरत महसूस नहीं की। इधर कॉरपोरेशन की स्थिति भी अच्छी नहीं है। कर्मचारियों के बकाये के साथ ही साथ तकनीकी यंत्रों के रखरखाव पर भारी खर्च होता है। इन्हीं यंत्रों के माध्यम से बिजली का उत्पादन किया जाता है। कॉरपोरेशन के पास संसाधन के नाम पर बिजली ही है। इसे ही बेच कर सभी प्रकार की आवश्यकता की पूर्ति की जाती है। इतने-तने दिनों तक बकाये नहीं मिलेंगे तो स्वाभाविक रूप से कॉरपोरेशन बंदी के कगार पर पहुंच जाएगा।

इस मामले में वर्तमान हेमंत सोरेन की सरकार का कहना है कि बिजली का बकाया राशि 2016 से बाकी है। इतने दिनों तक रघुवर दास के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार प्रदेश में थी, तब कॉरपोरेशन ने एक नोटिस तक सरकार को नहीं भेजा। सरकार के बदलते ही कॉरपोरेशन ने झारखंड को नोटिस भेजा और बिना समय दिए बिजली की आपूर्ति भी रोक दी। झारखंड सरकार का कहना है कि कॉरपोरेशन हमारे राज्य में स्थित है। हमारे कई प्रकार के संसाधनों का वह उपयोग भी कर रहा है, बावजूद इसके प्रदेश के साथ गैर जिम्मेदाराना हरकत किया है। इस मामले में प्रदेश सरकार के दो मंत्रियों ने केन्द्र सरकार पर भी जुबानी हमला बोला।

शिक्षा मंत्री जगन्नाथ महतो ने तो यहां तक कह दिया कि केन्द्र सरकार के पास झारखंड का 70 हजार करोड़ रुपये बकाया है। अगर इसी प्रकार की कार्रवाई राज्य सरकार करे तो फिर बड़ी समस्या खड़ी हो जाएगी। झारखंड सरकार के पेयजल मंत्री मिथिलेश कुमार ठाकुर ने भी केन्द्र पर जमकर हमला बोला है। उन्होंने कहा है कि वर्ष 2016 में कॉरपोरेशन का एक भी पैसा झारखंड सरकार पर बकाया नहीं था लेकिन पिछली रघुवर सरकार ने प्रदेश को कई मामले में कर्जदार बनाया। जब रघुवर दास की सरकार थी तो हाथी उड़ाने के नाम पर अरबों-खरबों खर्च हुए लेकिन कर्ज अदा नहीं किया गया, बावजूद इसके कॉरपोरेशन की नोटिस देने तक की हिम्मत नहीं हुई। चूंकि भाजपा झारखंड में हार गयी है इसलिए भाजपा के इशारे पर डीवीसी प्रदेश को अस्थिर करने और आम लोगों के मन में हमारी लोकप्रियता को कम करने की साजिश रच रही है।

सच पूछिए तो इस मामले में यदि 60 प्रतिशत भाजपा दोषी है तो 40 प्रतिशत झारखंड का सत्तारूढ़ गठबंधन भी दोषी है। दोनों के अपने-अपने दांव हैं। इसमें यह तो साबित हो गया है कि रघुवर दास की सरकार को डीवीसी ने इसलिए भी ढील दे रखी थी कि केन्द्र में भी उन्हीं की पार्टी की सरकार थी। यह साफ दिख रहा है कि इतना बकाया के बाद भी डीवीसी ने रघुवर दाव के नेतृत्व वाली सरकार को नोटिस तक नहीं भेजी। जैसा कि हेमंत के मंत्रियों ने दावा किया है। इधर हेमंत सरकार ने भी थोड़ी राजनीति की है। अभी हाल ही में जब डीवीसी ने बिजली कटौती प्रारंभ की तो झारखंड सरकार ने 400 करोड़ रुपये का भुगतान किया। यदि भुगतान करना ही था तो नोटिस के बाद ही कर देती। इससे सरकार की फजीहत भी नहीं होती और लोगों को परेशानी भी नहीं होती लेकिन हेमंत के साथ ही साथ उनके सहयोग जो सत्तारूढ़ दल हैं उसकी भी अपनी राजनीति है। इस गतिरोध के पीछे एक बड़ा कारण यह भी है।

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को यह साबित करना था कि रघुवर दास खजाना खाली करके गए हैं और प्रदेश को बड़े पैमाने पर कर्जदार बना गए हैं। खैर इस मामले को लेकर हेमंत यह प्रचारित करने में कामयाब रहे हैं। हेमंत अपने प्रचार तंत्र के माध्यम से प्रदेश की जनता के मन में यह बात बैठाने में सफल रहे हैं कि पूर्ववर्ती सराकर की गलती के कारण प्रदेश को आर्थिक मोर्चे पर परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, साथ ही लोगों को भी परेशानी उठानी पड़ रही है। कायदे और समय से डीवीसी की नोटिस के बाद बकाया पैसे का भुगतान हो गया होता, तो रघुवर दास के खिलाफ इतना प्रचार नहीं हो पाता। यही नहीं हेमंत यह भी प्रचारित करने में सफल रहे हैं कि केन्द्र की भाजपा सरकार प्रदेश सरकार को अस्थिर करने की कोशिश में लगी हुई है। यही कारण है कि डीवीसी के माध्यम से बिजली की आपूर्ति बाधित करा लोगों में असंतोष फैलाने की कोशिश की गयी है।

(गौतम चौधरी वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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