सफूरा जरगर की गिरफ़्तारी अंतरराष्ट्रीय संधियों का उल्लंघन: यूएन नेशंस वर्किंग ग्रुप ऑन आर्बिट्रेरी डिटेंशन

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यूनाइटेड नेशंस वर्किंग ग्रुप ऑन आर्बिट्रेरी डिटेंशन का निष्कर्ष  है कि जामिया मिलिया इस्लामिया की छात्रा सफूरा ज़रगर की मेडिकल स्थिति को देखते हुए गंभीर से भी गंभीर आरोप में भी तत्काल गिरफ़्तारी की कोई ज़रूरत नहीं थी। यूनाइटेड नेशंस वर्किंग ग्रुप ऑन आर्बिट्रेरी डिटेंशन ने भारत से उनकी हिरासत की परिस्थितियों पर एक स्वतंत्र जांच सुनिश्चित करने को कहा है। 27 नवंबर 2020 में अपने 89वें सत्र में स्वीकार इस रिपोर्ट को गुरुवार 11 मार्च को सार्वजनिक रूप से जारी किया गया।

यूनाइटेड नेशंस वर्किंग ग्रुप ऑन आर्बिट्रेरी डिटेंशन (यूएनडब्ल्यूजीएडी) ने जामिया मिलिया इस्लामिया की छात्रा सफूरा जरगर की गिरफ्तारी और हिरासत को मानवाधिकारों पर सार्वभौमिक घोषणा और नागरिक व राजनीतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय अनुबंध का उल्लंघन कहा है, जिसमें भारत एक पक्ष (हस्ताक्षरकर्ता) है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद से मान्यता प्राप्त यूएनडब्ल्यूजीएडी में ऑस्ट्रेलिया, लताविया, दक्षिण कोरिया, जाम्बिया और इक्वाडोर के विशेषज्ञों का एक पैनल शामिल है।

वर्किंग ग्रुप ने कहा है कि जरगर की गिरफ्तारी अनियमित थी और उन्हें एक कथित अपराध के लिए हिरासत में लिया गया था जिसके लिए उसका नाम नहीं लिया गया और उस मामले में शिकायतकर्ता पुलिस है। जरगर को पहली बार दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने जाफराबाद रोड-ब्लॉक मामले में दर्ज एफआईआर 48/2020 में 10 अप्रैल को गिरफ्तार किया था। उन्हें 13 अप्रैल को इस मामले में जमानत दी गई थी, लेकिन उसी दिन 24 फरवरी को दर्ज 59/2020 एफआईआर में उनका नाम जोड़ दिया गया और फिर से गिरफ्तार कर लिया गया। दिल्ली पुलिस ने दावा किया कि वह पिछले साल फरवरी में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में होने वाले दंगों में मुख्य साजिशकर्ताओं और मुख्य उकसाने वालों में से एक थीं। अंततः उन्हें मानवीय आधार पर दिल्ली हाईकोर्ट से जून 2020 को जमानत मिल गई। वह उस समय वे 23 सप्ताह की गर्भवती थीं।

वर्किंग ग्रुप ने दावा किया कि उन्होंने 22 जुलाई को सफूरा जरगर को हिरासत में लेने के आरोपों के बारे में भारत सरकार को पत्र लिखा था और 21 सितंबर, 2020 तक जवाब देने का अनुरोध किया था।लेकिन उसे भारत सरकार से कोई जवाब नहीं मिला और न ही सरकार ने उससे जवाब के लिए समय सीमा बढ़ाने का अनुरोध किया, जैसा कि वर्किंग ग्रुप के काम करने के तरीकों के लिए तय किया गया है।

वर्किंग ग्रुप ने कहा है कि मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के अनुच्छेदों 2, 3, 7, 8, 9, 10, 11, 19, 20 और 21 (1) और अनुबंध के अनुच्छेदों  2 (1) और (3), 9, 14, 19, 25 (क) और 26 का उल्लंघन करते हुए सफूरा जरगर को स्वतंत्रता से वंचित किया गया जो मनमाना था और I, II और V की श्रेणियों में आता है।

वर्किंग ग्रुप ने कहा है कि उनकी चिकित्सकीय स्थिति को देखते हुए कितने भी गंभीर आरोप में छात्र कार्यकर्ता की तत्काल गिरफ्तारी की कोई आवश्यकता नहीं थी। वर्किंग ग्रुप ने कहा कि जरगर की नजरबंदी भी अंतरराष्ट्रीय संधियों के तहत उल्लिखित श्रेणी 2 के तहत आती है, क्योंकि उनकी गिरफ्तारी उनके विचार व्यक्त करने और शांतिपूर्ण सभा के अधिकार के कारण हुई थी।

वर्किंग ग्रुप ने कहा है कि सार्वभौमिक तौर पर मान्यता प्राप्त मानवाधिकारों- खासतौर पर राय, अभिव्यक्ति और शांतिपूर्ण सभा की स्वतंत्रता, के इस्तेमाल के कारण जरगर को उनकी स्वतंत्रता से वंचित किया गया। इस तथ्य को देखते हुए कि जरगर नागरिकता (संशोधन) कानून को पास किए जाने की आलोचक थीं। इसके खिलाफ सार्वजनिक विरोध प्रदर्शन में लगी एक महिला मानवाधिकार रक्षक और जामिया कोऑर्डिनेशन कमेटी के लिए एक मीडिया संपर्क अधिकारी के रूप में उनकी वर्तमान हिरासत को साफ तौर से उन्हें और जामिया कोऑर्डिनेशन कमेटी से जुड़े अन्य लोगों को डरा-धमकाकर उनकी असहमति पर अंकुश लगाने के एक और कदम के रूप में व्याख्या की जा सकती है।

संयुक्त राष्ट्र की संस्था ने अनुरोध किया है कि भारत सरकार बिना किसी देरी के जरगर की स्थिति को सुधारने के लिए आवश्यक कदम उठाए और इसे संबंधित अंतरराष्ट्रीय स्तर के नियमों के अनुरूप लाए। भारत से यह भी कहा गया था कि वह जरगर की हिरासत की परिस्थितियों को लेकर एक पूर्ण और स्वतंत्र जांच सुनिश्चित करे और उनके अधिकार के उल्लंघन के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ उचित कदम उठाए।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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