कोविड-19 को लेकर देश भर में बड़ी-बड़ी बातें हो रही हैं। नदी तटों पर शवों को बहते देख हर कोई सहम सा जा रहा है। सभी कह रहे हैं यह एक प्राकृतिक आपदा है। इसमें सभी को सकारात्मक सोच रखने की जरूरत है। मैं भी इस बात से सहमत हूं लेकिन सिस्टम को मैं कैसे सही मान लूं। कोरोना वायरस के कारण होने वाली मौतों की कम गिनती किए जाने के आरोपों के बीच यूपी में मरने वालों की आधिकारिक संख्या 20, 208 हो गई है। 16.9 लाख संक्रमित हुए हैं। यूपी में इंतजाम की ढोल भले ही सरकार या उनके अधिकारी पीट रहे हैं लेकिन जिस पर यह आफत आ रही है, वही महसूस कर पा रहा है कि प्रदेश में उपचार का इंतजाम किस तरह का है।
अब हालात थोड़े बेहतर जरूर हैं लेकिन ये भूलना मुश्किल है कि किस तरह तस्वीरें चीख-चीख कर कह रही थीं कि सड़कों पर और घरों में ऑक्सीजन की कमी, अस्पतालों में आईसीयू बेड और वेंटिलेटर की कमी से तड़पकर लोगों की मौते हो रहीं थीं। अभी भी बहुत से लोग इससे जूझ रहे हैं। यूपी में तो कोरोना पॉजिटिव होने के बाद मरीज से बड़े-बड़े चिकित्सक अपना किनारा करने लगे। हां गांव के वे चिकित्सक जिनके पास ऊंची डिग्री नहीं है लेकिन वे एक योद्धा की तरह कोरोना मरीजों का उपचार करते रहे।

मैं अपनी बात करूं तो कोरोना की दूसरी लहर ने मेरे बड़े पिताजी सहित चार पत्रकार मित्रों को भी मुझसे हमेशा हमेशा के लिए दूर कर दिया। कोरोना संक्रमितों के उपचार की सरकारी व्यवस्था का मैं खुद साक्षी हूं। बलिया में कोरोना संक्रमित होने के बाद मैं 4 अप्रैल को अपने गांव आ गया। अगले दिन एक स्वास्थ्यकर्मी दवा लेकर मेरे घर आया, मैं होम क्वारंटाइन था। जब सरकारी दवाओं को देखा तो उसमें आधी गोलियां खराब हो चुकी थीं। यह देख मैं पूरी तरह टूट गया। मेरा आक्सीजन लेवल 90-92 तक रहता था, अन्य कई शारीरिक समस्याएं भी बढ़ने लगी थीं। बुखार भी पीछा नहीं छोड़ रहा था। कई दोस्त संक्रमित होने के बाद इस लोक से लगातार विदा होते जा रहे थे…..यह सुनकर मन में और डर का माहौल बना हुआ था। इसी बीच झारखंड रांची में रहने वाले मेरे बेड़े पिता जी के संक्रमित होने की सूचना मिली। वह भी तीन दिन ही चल सके। चौथे दिन उनके निधन की सूचना ने मुझे और पूरे परिवार को बेचैन कर दिया। घबराहट और बेचैनी के बीच मैं बलिया के सीएमओ डा. राजेंद्र पसाद से बात करने का प्रयास करता था कि वह कुछ उचित इंतजाम करा देंगे लेकिन उन्होंने कभी मेरी बातों को गंभीरता से नहीं लिया।
कई बार तो फोन उठाना भी उचित नहीं समझा। सीयूजी नंबर भी उन्होंने किसी और को दे रखा था। संबंधित से आईसीयू बेड की स्थिति पूछने पर मुझे बताया गया कि इस बात की जानकारी केवल सीएमओ दे सकते हैं। आक्सीजन की व्यवस्था के बारे में पूछने पर भी वही जवाब। अब बेड की जानकारी किससे ली जाए..मैं समझ नहीं पा रहा था। सीएमओ के सीयूजी नंबर से इस तरह के जवाब पाकर मेरा मन काफी दुखी हुआ लेकिन कर भी क्या सकता था। सरकार के मंत्री या अन्य जनप्रतिनिधि अधिकारियों की कमियां मानने को तैयार नहीं हैं। उनके अनुसार पूरे जिले में किसी को कोई दिक्कत नहीं है। सरकार के सभी इंतजाम ठीक हैं। उपचार की व्यवस्था भी ठीक है। नदी तटों पर बहकर आने वाले शव भी कोरोना संक्रमितों के नहीं हैं।

मैं यूपी के उस बलिया की बात कर रहा हूं जहां के फेफना विधायक उपेंद्र तिवारी व बलिया विधान सभा के विधायक आनंद स्वरूप शुक्ल सरकार में मंत्री हैं। यह पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चंद्रशेखर का भी गृह जनपद है। विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष रामगोविंद चौधरी भी इसी जनपद के बांसडीह विधान सभा के विधायक हैं। राज्य सभा सांसद नीरज शेखर भी यहीं के हैं। भाजपा राष्ट्रीय किसान मोर्चा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष वीरेंद्र सिंह मस्त भी यहीं से सांसद हैं। इसके बावजूद इतनी खराब स्वास्थ्य व्यवस्था को देख सभी का मन अंदर से टूट जाता है।
संक्रमित होने के पांच दिनों के बाद जब मेरी परेशानी कम होने के बजाय ज्यादा बढ़ने लगी तो मैं अपने कुछ परिचित चिकित्सकों से परामर्श लेकर दवा लेना शुरू किया लेकिन मन के अंदर यह डर था कि यदि आक्सीजन लेवल कम हुआ तो क्या होगा। बलिया में जान बचाने की कोई व्यवस्था नहीं है। हां इस दरम्यान पत्नी, मां, बच्चे लाख मना करने के बाद भी वे पास आने से नहीं मानते थे। उनकी सेवा और खुद की हिम्मत के बदौलत ही कोरोना से लगभग डेढ़ माह तक लड़ा। हालात कुछ ठीक होने पर 16 मई को तीसरे सेंपल की रिपोर्ट निगेटिव आयी। इस दरम्यान जो सबसे बड़ा ज्ञान मिला वह यह कि आपदा की घड़ी में ही अपने लोगों की असल पहचान होती है। मैं खुद मानता हूं कि कोरोना संक्रमित मरीज के अंदर यदि हिम्मत न हो तो वह बहुत जल्द जिंदगी की जंग हार जाएगा। सरकारी इंतजाम के भरोसे कोरोना से जंग नहीं जीता जा सकता।
शवों को फेंक कर भाग जा रहे थे लोग
कोरोना संक्रमण से इतने लोगों की मौत हो जाएगी, ऐसा मैं कभी नहीं सोचा था। हालात तो ऐसे हो चले थे कि बलिया के कई पुलों के नीचे लोग संक्रमितों के शव को फेंककर भाग जा रहे थे। बलिया से सटे बिहार के जनपद बक्सर, आरा, छपरा के लोग भी यहां की गंगा और सरयू में शवों को फेंकने लगे। बक्सर की सीमा से सटे बलिया के भरौली में तो कई दर्जन शव नदी के तट पर आकर लग गए थे। यह देख आसपास के लोग परेशान हो चले। गांव के लोगों के शोर-शराबे के बाद यूपी पुलिस सक्रिय हुई और सभी शवों को जेसीबी की मदद से जमीन के अंदर दफन किया गया।

एक साल में भी नहीं कर पाए मुकम्मल इंतजाम
बलिया में कोरोना का पहला केस पिछले साल 11 मई 2020 को मिला। उससे पहले यहां कोई केस नहीं था। तब के समय में जनपद के सभी जनप्रतिनिधियों ने स्वास्थ्य व्यवस्था सुधारने की दिशा में खूब शोर मचाया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक बलिया में पहुंचे और जरूरी इंतजाम करने को कहा लेकिन यूपी में योगी के बताए रास्ते पर अधिकारी कहां चलते हैं। पूरे एक साल में भी स्वास्थ्य व्यवस्था में कोई बदलाव नहीं हो सका।
इस जिले की आबादी वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार 32,39,774 है। इसके सापेक्ष जिला अस्पताल और जिला महिला अस्पताल, 18 सीएचसी, 13 पीएचसी, 66 न्यू पीएचसी और 02 अरबन अस्पताल हैं। कोरोना को लेकर एल-1 और एल-2 अस्पताल बने हैं लेकिन कोई भी मरीज एल-1 या एल-2 अस्पताल में जाना नहीं चाहता। इसकी वजह को समझा जा सकता है। ग्रामीण सीएचसी और पीएचसी केंद्रों पर हर जगह संसाधनों का अभाव है। बहुत से अस्पताल तो चिकित्सकों के अभाव में बंद पड़े हैं। इसके बावजूद सुविधाएं बढ़ाने की बजाय अधिकारी और जनप्रतिनिधि अपने भाषणों से ही हर मर्ज का उपचार कर रहे हैं।
(लवकुश सिंह लेखक होने के साथ बलिया के वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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