देहरादून। उत्तराखंड के नगर निकायों में अन्य पिछड़ा वर्ग समुदाय के सर्वे में हो रही लेट लतीफी इसी साल के नवम्बर महीने में प्रस्तावित निकाय चुनाव पर भारी पड़ सकती है। सर्वे का काम तय वक्त पर पूरा न होने पर निकाय चुनाव छः महीने आगे सरकने के आसार बन रहे हैं। आम आदमी पार्टी के मुताबिक सरकार जानबूझकर ओबीसी सर्वे के बहाने निकाय चुनाव में जाने से बचने का प्रयास कर रही है।
गौरतलब है कि प्रदेश में 102 नगर निकायों के कार्यकाल का यह अंतिम वर्ष चल रहा है। यहां 9 नगर निगम, 43 नगर पालिकाएं, 50 नगर पंचायतें वर्तमान में संचालित हैं। इस साल के आखिर में इन सभी निकायों का कार्यकाल खत्म होने के कारण नवम्बर माह में निकाय चुनाव होने निश्चित हैं। लेकिन निकायों में आरक्षण की स्थिति स्पष्ट करने के लिए अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) समुदाय का सर्वे कार्य अभी तक पूरा नहीं हो पाया है।
राज्य में 9 नगर निगम हैं जिसमें देहरादून, ऋषिकेश, रुद्रपुर, हल्द्वानी, काशीपुर, रुड़की, श्रीनगर, हरिद्वार, कोटद्वार शामिल हैं। किसी भी नगर निगम ने अभी तक ओबीसी सर्वे की रिपोर्ट एकल सदस्यीय समर्पित आयोग को नहीं दी है। जबकि खटीमा नगर पालिका का सर्वे आयोग ने निरस्त करते हुए काशीपुर के अधिकारियों की निगरानी में दुबारा करने को कहा है। आयोग के अनुसार खटीमा में सर्वे वार्डवार की जगह आंकड़ों के सहारे किया गया है।
आयोग ने चम्पावत और धारचूला के सर्वे को भी गड़बड़ मानते हुए सर्वे रिपोर्ट खामियां दुरुस्त करते हुए दुबारा मांगी है। इसके अलावा एक नया पेंच मामले में यह भी है कि सरकार की ओर से कुछ नए निकायों की घोषणा की जा चुकी है। लेकिन नए बनने वाले निकायों का न तो अभी कोई सीमांकन ही हुआ है और न ही कोई परिसीमन। सीमांकन और परिसीमन के बाद इनमें नियमानुसार ओबीसी सर्वे भी होगा।
ओबीसी सर्वे की रिपोर्ट एकल सदस्यीय समर्पित आयोग को मिलनी है, उसके बाद आयोग के पास नियमानुसार जनता की आपत्तियां सुनने का समय भी चाहिए। यदि कोई आपत्ति आई तो उसके निस्तारण के लिए भी आयोग को समय चाहिए। इस लिहाज से अगर सर्वे रिपोर्ट आने में चार से पांच माह भी लगे तो इसके बाद अपना काम पूरा करने में आयोग को कम से कम दो माह और चाहिए। ऐसी सूरत में निकाय चुनाव सर्वे पूरा न होने के कारण निकाय चुनाव कम से कम सात महीने आगे सरक सकते हैं।
खुद आयोग के सदस्य सचिव ओमकार सिंह का कहना है कि निकायों के सर्वे में काफी गड़बड़ियां सामने आ रही हैं। आयोग के अध्यक्ष की ओर से इस संबंध में अपर मुख्य सचिव को पत्र भेजा गया है। यही हाल रहा तो ओबीसी सर्वेक्षण मुश्किल हो जाएगा।
निकाय चुनाव को लेकर एक ओर प्रदेश में ओबीसी सर्वे की प्रक्रिया जारी है तो दूसरी ओर राजनीतिक हलकों में इस बात की भी चर्चा है कि खुद प्रदेश सरकार अभी निकाय चुनाव नहीं चाहती। राजनैतिक विश्लेषकों की मानें तो प्रदेश की भाजपा सरकार के पास ऐसी कोई उपलब्धि नहीं है कि उसकी वजह से वह निकाय चुनावों में फ्रंट फुट पर बैटिंग कर सके। सरकारी नौकरियों में घपले, बढ़ते अपराध, बेरोजगारों का आक्रोश, बढ़ता पलायन, बढ़ता मानव वन्यजीव संघर्ष, धंसता जोशीमठ जैसी तमाम बातों पर सरकार घिरती नजर आ रही है।
इसलिए ऐसी परिस्थिति में भाजपा की प्रदेश सरकार “करो या मरो” माने जा रहे लोकसभा चुनाव से पूर्व कोई ऐसा खतरा मोल नहीं लेना चाहती जिससे निकाय चुनाव में हुए कमजोर प्रदर्शन का असर लोकसभा चुनाव पर पड़े। माना जा रहा है कि सरकार की मंशा भी लोकसभा चुनाव के बाद ही निकाय चुनाव करवाने की है।
आम आदमी पार्टी के उत्तराखंड प्रदेश समन्वयक जोत सिंह बिष्ट ने भी सरकार पर आरोप लगाया है कि वह ओबीसी के सर्वे के नाम पर निकाय चुनाव को टालने का षड्यंत्र रच रही है। निकाय चुनाव टालने का मतलब है कि राज्य सरकार निर्वाचित प्रतिनिधि से जिम्मेदारी हटाकर निकायों को अफसरशाही के हवाले करने वाली है। ऐसा करके सरकार निकायों में अगले चुनाव तक धन उगाही का काम अधिकारियों के माध्यम से करने की साजिश कर रही है।
जोत सिंह बिष्ट का कहना है कि ओबीसी सर्वे आयोग के सदस्य सचिव ओंकार सिंह ने शासन को अपनी रिपोर्ट सौंपते हुए कहा कि खटीमा में ओबीसी सर्वे गलत तरीके से किया गया है। धारचूला के सर्वे में भी खामियां बताई गई हैं। इसके अलावा जो 9 नगर निगम में भी अभी तक ओबीसी सर्वे पूरा नहीं किया गया है, जबकि ओबीसी सर्वे पूरा करने की तिथि 31 मार्च 2023 थी। राज्य सरकार जानबूझकर ओबीसी सर्वे में देर करवाकर तथा उसमें खामियां दिखा कर नगर निकाय चुनाव टालना चाहती है।
जोत सिंह बिष्ट ने कहा कि निकाय चुनाव पार्टी सिंबल पर लड़े जाते हैं। भाजपा सरकार को अपनी नाकामियों के कारण निकाय चुनाव में हार का डर सता रहा है। इसका असर लोकसभा चुनाव पर पड़ना तय है। इसलिए वह नगर निकाय चुनाव को टालने की साजिश कर रही है।
उन्होंने कहा कि अगर राज्य सरकार जानबूझकर निकाय चुनाव टालने का षड्यंत्र करेगी तो इसका पुरजोर विरोध किया जाएगा। प्रशासकों के माध्यम से निकायों को विकास के लिए मिलने वाली धनराशि की बंदरबांट का मंसूबा पूरा नहीं होने देंगे। आम आदमी पार्टी कार्यकर्ता चुनाव कराने की मांग को लेकर सड़कों पर उतरेंगे।
(उत्तराखंड से सलीम मलिक की रिपोर्ट)
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