ग्राउंड रिपोर्ट: रोजगार का आंदोलन चला रहे युवाओं ने कहा- उत्पीड़न कर रही उत्तराखंड सरकार

Estimated read time 1 min read

देहरादून। अभी बहुत ज्यादा वक्त नहीं गुजरा है, जब उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने दावा किया था कि उत्तराखंड में बेरोजगारी माइनस 20 परसेंट है। इसका अर्थ यह हुआ कि जितने बेरोजगार लोग थे, सभी को नौकरी मिल चुकी है और जितने लोगों को नौकरी दी जा चुकी है, इनके 20 परसेंट और भी हों तो उनके लिए भी नौकरी उपलब्ध है। मौजूदा मुख्यमंत्री भी लगातार नौकरी देने का दावा करते रहे हैं।

सरकार से हर महीने 25 हजार रुपये पाने वाले न्यूज पोर्टल को देखें तो सरकारी विभागों में लगभग हर रोज नौकरियां निकल रही हैं। हालांकि ये नौकरियां निकलने का बाद कहां चली जाती हैं, इस पर ये न्यूज पोर्टल मौन साध लेते हैं।

राज्य में बेरोजगार युवक किस तरह हताश और निराश हो चुके हैं और सरकार उन्हें प्रताड़ित करने के लिए कैसे-कैसे तरीके ईजाद कर रही है, यह देखने के लिए हमें राजधानी देहरादून के एकता विहार जाना होगा। एकता विहार शहर से करीब 15 किमी दूर राज्य स्तरीय धरना स्थल है। आंदोलन करने वालों को शहर से दूर अलग-थलग एकता विहार इलाके में खदेड़ दिये जाने की भी एक कहानी है।

फिलहाल सुनसान पड़े रहने वाले एकता विहार इलाके के एक खाले में यह धरनास्थल है। बरसात होते ही यहां पानी भर जाता है और पुलिस के लिए यह सुभीता है कि वह किसी भी वक्त जाकर धरना देने वालों पर रोब गालिब कर सकती है और किसी को भी बेरोकटोक किसी भी समय उठवा सकती है।

‘जनचौक’ 30 अक्टूबर, 2023 की दोपहर एकता विहार धरनास्थल पर पहुंचा। यहां फिलहाल तीन टेंट लगे हुए हैं।

उत्तराखंड समस्त कोविड-19 कर्मचारियों का आंदोलन

पहला टेंट उत्तराखंड समस्त कोविड-19 कर्मचारियों का है। ये वे कर्मचारी हैं जो या तो फार्मासिस्ट डिप्लोमाधारी हैं या कम्यूटर में कोई न कोई डिप्लोमा उनके पास है। कोविड के दौर में इन कर्मचारियों को विभिन्न अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों में नियुक्ति दी गई है।

ये कर्मचारी कोविड काल के करीब 3 वर्षों तक जान हथेली पर रखकर कोविड मरीजों के इलाज में मदद करते रहे हैं। वैक्सीनेशन और डाटा फीडिंग में भी इन कर्मचारियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा। सरकार ने इन कर्मचारियों की खूब तारीफ भी की, लेकिन बाद में उन्हें नौकरी से हटा दिया गया। 2022 में विधानसभा चुनावों में लाभ लेने के लिए इन कर्मचारियों को नौकरी परमानेंट करने का भी झांसा दिया गया, लेकिन चुनाव निपटते ही सभी को घर भेज दिया गया।

यहां 10 कर्मचारी टेंट में बैठे मिले। इनमें से चार प्रदीप थपलियाल, धनवीर सिंह रावत, संदीप पंवार और विवेक शाह पिछले 6 दिनों से आमरण अनशन पर हैं। इस समय यहां मेडिकल टीम आई हुई है और अनशनकारियों का चेकअप किया जा रहा है। जांच पूरी होने के बाद डॉक्टर ने फैसला सुना दिया है कि सभी का हॉस्पिटल ले जाना पड़ेगा। क्योंकि वजन गिरने के साथ ही कई दूसरे सिम्टम्स भी आ रहे हैं।

अनशन पर बैठे कोविड-19 कर्मचारी।

डॉक्टर का कहना है कि अब इससे आगे भी अनशन जारी रहा तो जीवन खतरे में पड़ सकता है। सभी 6 अनशनकारियों को एंबुलेंस में बैठने को कहा जाता है। लेकिन, वे साफ इंकार कर देते हैं। वो कहते हैं कि अब जिन्दा रहने का कोई फायदा नहीं हैं। मौके पर दो पुलिसकर्मी मौजूद हैं। वे फोन करके अपने अधिकारियों को फोर्स भेजने के लिए कहते हैं। इसके बाद मेडिकल करने वाली टीम वापस लौट जाती है।

‘जनचौक’ 6 लोगों की जिन्दगी का हवाला देते हुए समझाने का प्रयास करता है कि उन्हें हॉस्पिटल चले जाना चाहिए, लेकिन वो कहते हैं कि हम पहले ही राज्यपाल से इच्छामृत्यु की इजाजत देने के लिए कह चुके हैं। युवक 22 अक्टूबर को राज्यपाल को भेजे गये खून से लिखे एक पत्र का फोटो दिखाते हैं। इस पत्र में कहा गया है कि सरकार के पास उन्हें देने के लिए नौकरी नहीं है और उनके पास जीवन यापन के लिए कोई दूसरा साधन नहीं है, इसलिए उन्हें इच्छामृत्यु की इजाजत दी जाए।

युवक बताते हैं कि उन्होंने इस पत्र की रिसीविंग भी राजभवन के ऑफिस में 22 अक्टूबर को करवाई थी। राजभवन से आश्वासन मिला था कि एक हफ्ते के भीतर राज्यपाल का कोई प्रतिनिधि उनके पास जरूर पहुंच जाएगा। कल एक हफ्ता पूरा हो गया है। कोई नहीं आया। याद दिलाने के लिए कुछ आंदोलनकारी युवक राजभवन गये हैं। बाकी पुलिस और प्रशासन के आने के इंतजार कर रहे हैं, लेकिन उन्होंने ठान रखी है कि किसी भी हालत में हॉस्पिटल नहीं जाएंगे।

युवक बताते हैं कि कोविड के दौरान राज्य के विभिन्न अस्पतालों में 688 और दून मेडिकल कॉलेज में 118 कर्मचारी नियुक्त किये थे। लेकिन बाद में उन्हें हटा दिया गया। मार्च 2022 से वे लगातार आंदोलन कर रहे हैं। बीते 6 सितंबर को इन बेरोजगार युवाओं ने विधानसभा सत्र के दौरान विधानसभा कूच किया था। रास्ते में उन्हें रोक दिया गया। इस दौरान पुलिस के साथ उनकी झड़प भी हुई।

युवाओं को आरोप है कि इस दौरान पुलिस के एक अधिकारी ने उनके एक साथी का मोबाइल फोन सबके सामने छीन लिया। लेकिन, अब वापस नहीं दे रहे हैं। मांगने पर पुलिस अधिकारी द्वारा छीन लिये जाने का सबूत मांगते हैं। इन युवाओं को पुलिस फोर्स की प्रतीक्षा करते छोड़ हम आगे के टेंट में बढ़ जाते हैं।

उत्तराखंड बेरोजगार संघ का आंदोलन

यह टेंट उत्तराखंड बेरोजगार संघ का है। युवाओं का यह संगठन राज्य में सरकारी नौकरियों के लिए होने वाली परीक्षाओं में पेपरलीक जैसी धांधलियां और बैक डोर से नौकरी देने जैसे मामलों को लेकर करीब एक साल से आंदोलनकर रहे हैं। बीते 9 फरवरी को इस मुद्दे को लेकर देहरादून में जुटे हजारों बेरोजगार युवाओं की भीड़ पर पुलिस ने लाठीचार्ज भी किया था और संगठन के अध्यक्ष बॉबी पंवार सहित 8 युवकों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार किया था। करीब एक हफ्ते बाद इन युवाओं को सशर्त जमानत मिल पाई थी।

उत्तराखंड बेरोजगार संघ के टेंट पर इस वक्त भीड़ है। आंदोलनकारी बेरोजगार युवकों के साथ ही पत्रकार भी मौजूद हैं। संघ के अध्यक्ष बॉबी पंवार यहां प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे हैं।

बॉबी पंवार प्रेस कॉन्फ्रेंस में आरोप लगाते हैं कि पुलिस उनकी जमानत खारिज कर उन्हें फिर से जेल भेजने का प्रयास कर रही है। उन पर जमानत की शर्तों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया जा रहा है, जबकि उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं किया है, जिससे जमानत की शर्तों का उल्लंघन हो।

बॉबी पंवार को जब पुलिस ने गिरफ्तार किया था।

बॉबी कहते हैं कि 9 फरवरी को हुए तथाकथित पथराव और लाठीचार्ज की घटना की जांच कर रहे पुलिस अधिकारी ने उन पर जमानत की शर्तों का उल्लंघन का आरोप लगाते हुए जमानत खारिज कर उन्हें फिर से जेल में डालने का अनुरोध कोर्ट से किया है। कोर्ट ने उन्हें मंगलवार यानी 31 अक्टूबर को स्पष्टीकरण देने के लिए तलब किया है।

बॉबी पंवार के अनुसार हो सकता है कि उनकी जमानत खारिज कर उन्हें फिर से जेल भेज दिया जाए, लेकिन उनके जेल जाने के बावजूद बेरोजगार युवाओं का आंदोलन जारी रहेगा। बेरोजगार संघ मुख्य रूप में भर्ती परीक्षाओं में हुई धांधली की हाईकोर्ट की जज की निगरानी में जांच करवाने की मांग कर रहा है। इसके अलावा नकलचियों के नाम सार्वजनिक करने, उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के कर्मचारियों की जांच करवाने जैसी मांगें भी की जा रही हैं।

बॉबी पंवार और उनके कुछ साथी दो महीने पहले बागेश्वर में हुए विधानसभा उपचुनाव के दौरान वहां गये थे। वहां पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया था, लेकिन कोर्ट के आदेश पर उन्हें बिना शर्त रिहा कर दिया गया था। इस गिरफ्तारी के बारे में पूछे जाने पर बॉबी पंवार ने बताया कि बागेश्वर में दर्ज की गई एफआईआर में लगाये गये सभी आरोप झूठे हैं। एफआईआर में कहा गया है कि वे नारे लगा रहे थे और पर्चे बांट रहे थे।

बॉबी पंवार के अनुसार उन्होंने और उनके किसी साथी ने न तो नारे लगाये और न पर्चे बांटे। वे कहते हैं कि जब वे मंदिर में दर्शन करने जा रहे थे तो कुछ युवकों ने आकर नारेबाजी की और फिर पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया। बॉबी पंवार के अनुसार इस मौके का वीडियो फुटेज उनके पास उपलब्ध है। नारे लगाने वाले सभी युवक बागेश्वर के ही हैं और बजरंग दल से जुड़े हुए हैं।

उन्होंने बताया कि बागेश्वर आने से पहले उन्होंने स्थानीय प्रशासन और पुलिस को इसकी सूचना दी थी और अपने कुछ साथियों से मिलने की बात कही थी। बॉबी पंवार कहते हैं कि वे समय-समय पर सरकार में बैठे लोगों की कारगुजारियों की पोल खोलते रहते हैं, इसलिए सरकार उन्हें किसी भी हाल में जेल में बंद रखना चाहती है।

उत्तराखंड रोडवेज मृतक आश्रितों का आंदोलन

एक और टेंट उन युवाओं का है जिनके माता-पिता की उत्तराखंड रोडवेज में नौकरी के दौरान मृत्यु हो गई है, लेकिन उन्हें नियमानुसार मृतक आश्रित का लाभ नहीं मिल रहा है। इस टेंट में आशिष सिंह, अनंत अग्रवाल, करन कुमार, वंश शर्मा, शिवानी प्रजापति, अंश कुमार और वैशाली बिष्ट धरने पर बैठे हैं।

उत्तराखंड रोडवेज मृतक आश्रितों का धरना

वे बताते हैं कि रोडवेज में 2017 से सीधी भर्ती पर रोक है, लेकिन इस रोक की आड़ में मृतक आश्रितों को भी नौकरी नहीं दी जा रही है। पिछले 5 वर्षों में रोडवेज में ऐसे मृतक आश्रितों की संख्या 229 हो गई है।

वे बताते हैं कि 2022 में कुछ दिन उन्होंने आंदोलन किया था। तत्कालीन परिवहन मंत्री चंदन रामदास ने उन्हें नौकरी देने का आश्वासन भी दिया था। बाद में चंदन रामदास की मृत्यु हो गई। अब मुख्यमंत्री खुद इस विभाग को देख रहे हैं। उन्हें मृतक आश्रितों की मांगों के बारे में बताया जा चुका है, लेकिन कुछ नहीं हो रहा है।

(उत्तराखंड से त्रिलोचन भट्ट की रिपोर्ट।)

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author