2014 व 2019 में लोकसभा चुनाव के दौरान लोगों में जो उत्साह था, वह 2024 में देखने को नहीं मिला। हाईटेक राजनीति में बिना रुपया खर्च किए कार्यकर्ता भी नहीं मिल रहे हैं। वर्तमान सत्ता से नाराज लोगों में कुछ उत्साह दिखा लेकिन ईवीएम की सेटिंग के खेल से उनके कार्यकर्ता भी चिंतित दिखे।
पहले कार्यकर्ता छोटे-छोटे समूह में कालोनियों में शाम होते ही झंडा / बैनर के साथ जुलूस निकालते थे लेकिन इस साल ऐसा जुलूस देखने को नहीं मिला। घर-घर पर्ची पहुंचाने वाले कार्यकर्ता भी इस साल सक्रिय नहीं रहे।
बनारस में एक जून को जिस बूथ पर मेरा वोट था, वहां कुछ पड़ोसियों को जाते देख मैं भी पहुंच गया। महिलाओं व पुरुषों की लम्बी लाइन लगी थी लेकिन मतदान का समय हो जाने के बावजूद वोटिंग शुरू नहीं हुई थी। जब शुरू हुई तो गति बहुत धीमी रही। लाइन में 20 वें नंबर पर मैं था लेकिन मेरा नंबर आते-आते एक घंटा से अधिक समय लग गया।
सुबह 7.30 बजे तक किसी दल के पोलिंग एजेंट वहां नहीं पहुंचे थे। उसके बाद गले में गमछा लपेटे एक कार्यकर्ता पहुंचा और अकड़ते हुए पोलिंग बूथ का अवलोकन किया। पुलिसकर्मी उसे रोकना चाहे तो आराम से गले में लटका एजेंट होने का प्रमाण दिया। उसके बाद उसने अपना काम शुरू किया।
पहले उसके दो साथी जो अपना वोट डालने को लाइन में लगे थे, वे जब वोट डालकर बाहर निकले तो उसने दो-तीन मतदाताओं की पर्ची निकाला और पोलिंग बूथ से ही गोंद लेकर उनकी जगह अपनी तस्वीर चिपकाया, फिर वहां तैनात एक सब-इंस्पेक्टर से संपर्क करके फर्जी वोट डालने में जुट गया। इससे स्पष्ट है कि बिना पुलिस और मतदान कर्मियों की मदद के फर्जी वोटिंग करना संभव नहीं है।
विश्वगुरु का नशा अब लोगों के सिर से उतर रहा है। उनकी गुरुआई से लोग त्रस्त हैं। बनारस का “रस” निकल गया है। सिर्फ दिखावा व चकाचौंध शेष है। जिंदगी बड़बोलेपन से नहीं चलती है। राजनीतिक या आर्थिक रूप से जिन्हें कुछ लाभ मिला वो ही साथ रह गए हैं।
वोटिंग के समय भी बिजली कटौती जारी है। इस भीषण गर्मी में बिजली न रहने से लोगों की रात की नींद कहीं खो गई है। बनारस में तापमान 47-48 डिग्री है लेकिन 50 डिग्री से अधिक महसूस हो रहा है। शनिवार को आसमान में बादल छाया है। लगता है बारिश होगी। कल भी ऐसा ही रहा लेकिन बारिश नहीं हुई। धूप से बचने के लिए बहुत से लोग सुबह ही मतदान करना पसंद किए। दोपहर में घर से बाहर निकलना संभव नहीं है। लेकिन सुबह वोटिंग की गति बहुत धीमी रही। क्या यह किसी रणनीति के तहत हो रहा है? यह सवाल मतदाताओं में चर्चा का विषय बना रहा।
देश का पीएम यदि महात्मा गांधी के बारे में अनाप-शनाप बोले तो इससे उसकी बौद्धिक क्षमता का अंदाजा लगाया जा सकता है। उसके बाद कन्याकुमारी में साधना करना और वह भी कैमरे के साथ। यह कैसी साधना? दुनिया में शायद ही किसी देश का प्रधानमंत्री ऐसा करता हो।
2024 में पीएम ने बनारस में कोई चुनावी रैली नहीं की। नामांकन से पहले सिर्फ लंका से गोदौलिया तक रोड-शो हुआ था। उसके बाद विश्वनाथ मंदिर में दर्शन-पूजन किए। बनारस में रैली क्यों नहीं किए? यह सवाल चर्चा का विषय बना है। अन्य नेता भी जो बनारस में डेरा डाले थे, सिर्फ लाॅन में मीटिंग किए।
दूसरी तरफ इंडिया गठबंधन की तरफ से प्रियंका गांधी और डिंपल यादव का रोड-शो दुर्गाकुंड से रविदास मंदिर तक हुआ। राहुल गांधी और अखिलेश यादव की जबरदस्त रैली मोहनसराय में हुई। महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी के नेतृत्व में टाउन हॉल से डॉ. आरपी घाट तक “संविधान बचाओ पदयात्रा” निकाली गई। 2024 में लोकसभा चुनाव में बनारस में टक्कर है। परिणाम क्या होगा, यह 4 जून को पता लग जाएगा।
2024 का लोकसभा चुनाव इस रूप में भविष्य में याद किया जाएगा कि इसने पीएम की “झूठोलॉजी” की कलई खोल दी है। पीएम की रैलियों के भाषण की समीक्षा होनी चाहिए लेकिन मीडिया यह काम न करके अब कन्याकुमारी की साधना की खबरों में व्यस्त हो गई है। मीडिया की भूमिका को लेकर भी शोध होना चाहिए। सातवें चरण में बनारस समेत यूपी की 13 सीटों पर वोटिंग हो रही है। खबरों के मुताबिक सभी सीटों पर कड़ा संघर्ष है।
(सुरेशप्रताप सिंह बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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