क्या जीएन साईबाबा भगत सिंह के रास्ते पर चल रहे थे?

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भूमिहीनों के लिए भूमि के बंटवारे के लिए आजादी से पहले की अधूरी मांगों को पूरा करने के लिए आजादी के बाद तेभागा तेलंगाना का सशस्त्र आंदोलन चलाया गया जिसमें शहीद भगत सिंह के साथी भी सक्रिय थे। उधर चीन में भी कामरेड माओ की कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा करोड़ों भूमिहीनों को जमीदारों से जब्त भूमि का वितरण किया गया था। उसी तरह सत्तर के दशक में भारत में नक्सलबाड़ी विद्रोह हुआ जिसे खुद कामरेड माओ ने “बसंत का बज्रनाद” कहा था।

शहीद भगत सिंह ने कहा था कि बिड़ला आदि पूंजीपतियों से बनी कांग्रेस द्वारा लाई इस आजादी का कोई फायदा मेहनतकश जनता को नहीं मिलेगा। गोरे अंग्रेजों के बदले काले अंग्रेज आ जाएंगे। यानि जब तक मुनाफा आधारित पूंजीवाद की व्यवस्था को उलट कर समाजवाद की स्थापना नहीं कर दी जाती कोई लाभ नहीं हो सकता। अपने आखिरी पत्र “क्रांतिकारी कार्यक्रम का मसौदा” में इस हेतु बल प्रयोग के लिए शहीद भगत सिंह एक सैनिक विभाग गठन करने का भी आह्वान करते हैं। भगत सिंह की जेल डायरी में तो साफ दर्ज है कि बिना बल प्रयोग के मजदूर अपना राज्य स्थापित नहीं कर सकते।

शहीद भगत सिंह के कई भाई और बहन थे। लेकिन उनकी सबसे नजदीकी राजनीतिक मित्र थीं उनसे तीन साल छोटी बहन बीबी अमर कौर! अपने भाई की तरह रब में यकीन न रखने वाली बीबी अमर कौर की मृत्यु 1984 में हुई थी। बीबी जी ने कहा था कि “नक्सलबाड़ी के योद्धा भगत सिंह के रास्ते पर चलने वाले रास्ते के अमूल्य हीरे हैं।” (संदर्भ: पेज 6; भगत सिंह दी पैंण, बीबी अमर कौर : मुलाकात, विआन अते सुनहड़े। लेखक: अमोलक सिंह तरक भारती प्रकाशन, बरनाला)

शहीद भाइयों का लहू सूखा भी नहीं था कि फांसी की रात तीनों भाइयों के टुकड़े उठा कर लाने वाली बीबी अमर कौर को आजादी के दस साल बाद ही मजदूर और किसानों की मांगों को लेकर चालीस दिन का अनशन करना पड़ा था। वह अपनी आंखों के सामने देख रही थी कि उनके भाई शहीद भगत सिंह की भविष्यवाणी सच हो रही है।

ये भी देखा कि नक्सलबाड़ी के युवक मनुष्य के मनुष्य द्वारा शोषण को खत्म करने के लिए एक समाजवादी समाज की रचना करने के लिए ही अपना बलिदान दे रहे हैं। अन्यथा क्या कारण है कि शहीद भगत सिंह की सगी बहन नक्सली युवकों को भगत सिंह के रास्ते पर चलने वाला करार देने जैसा संवेदनशील बयान देती?

अब कुछ बातें साईबाबा, हेम मिश्रा आदि माओवाद का आरोप झेल रहे लोगों पर। जहां तक साईबाबा आदि साथियों का सवाल है अदालत उन्हें बरी कर चुकी है। फिर भी कुछ लोग कहेंगे कि वे वास्तव में नक्सलवादी हैं और सबूतों के अभाव में छूट गए हैं।
अगर साईबाबा नक्सली हैं तो भी वह (शहीद भगत सिंह की बहन बीबी अमर कौर के शब्दों में कहा जाए तो) भगत सिंह के रास्ते पर चलने वाले ही ठहरते हैं। और अगर वे नक्सली नहीं भी थे तो भी वंचितों, आदिवासियों की आवाज उठाने के लिए काले अंग्रेजों द्वारा और उनकी अदालतों द्वारा कत्ल किए गए शहीद ही ठहरते हैं।

(उमेश चन्दोला पशु चिकित्सक हैं)

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