पश्चिम बंगाल उप-चुनाव : अभया की आंच को बुझाने की कोशिश 

अभया की आंच को बुझाने की हर कोशिश नाकाम होती जा रही है। क्योंकि लोग इसके लौ को जिंदा रखने पर आमादा है। अभी शनिवार को हजारों की संख्या में लोगों ने कोलकाता में जुलूस निकाला था और एक ही नारा था ‘वी वांट जस्टिस’।

सबसे दिलचस्प बात तो यह है कि इस जुलूस में डॉक्टर के मुकाबले आम लोगों की भागीदारी बहुत ज्यादा थी। आर जी कर मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में एक ट्रेनी डॉक्टर की बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई थी। उसे यह नाम उसके साथियों ने दिया है।

अभया के मामले में आजादी के बाद यह पहला मौका है, जब पश्चिम बंगाल में इतना बड़ा आंदोलन हुआ है। इस मुद्दे पर सिर्फ बंगाल ही नहीं, सिर्फ देश ही नहीं, दुनिया के अन्य देशों में भी आंदोलन हुआ है।

14 अगस्त की रात के जन जागरण ने बंगाल में एक इतिहास रच दिया है। ऐसे में सवाल उठता है कि बंगाल का प्रमुख विरोधी दल भाजपा के नेता इस मामले में इतने बेजार क्यों हो गए हैं। शुरुआती दौर में तो बेहद मुखर थे। पर अब खामोश  क्यों हो गए हैं।

इसकी वजह बताने के लिए विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी का यह बयान ही काफी है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के कोलकाता दौरे के बाद उन्होंने कहा था, आरजी कर आंदोलन पर वामपंथियों और अति वामपंथियों का कब्जा हो गया है।

इस घटना के बाद धर्मतल्ला के वाई चैनल पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार सहित भारी भरकम नेताओं ने करीब 15 दिनों तक तंबू लगा कर धरना दिया था।

अब उन्हें वामपंथियों का खौफ सता रहा है। जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कोलकाता आए थे, तो अभया के माता-पिता ने बहुत सारी उम्मीदों के साथ न्याय पाने के लिए उनसे मिलने का समय मांगा था। यह गौरतलब है कि इस मामले की जांच सीबीआई कर रही है।

अमित शाह ने अपने लाभ-हानि के राजनीतिक खाते के आर जी कर के पन्ने को पलट कर देखा तो उसमें नुकसान ही नुकसान नजर आया। 

लिहाजा उन्होंने अभया के माता-पिता से मिलने से इनकार कर दिया। अभया के माता-पिता भी सोचा था साथ रोएंगे, पर अमित शाह को उनसे मिलना घाटे का सौदा लगा इसलिए मिले नहीं।

अमित शाह अपने 1 घंटे की सभा में मुस्लिम का राग अलापते रहे पर आर जी कर को 10 शब्दों में समेट लिया था। तृणमूल कांग्रेस की सरकार के मंत्री और नेता तो पहले दिन से ही आरजी कर आंदोलन की जड़ खोदने में लग गए थे। इस जन आंदोलन पर हमला भी किया गया। उस दौरान भाजपा के नेताओं ने इसका तीखा विरोध भी किया था।

अब तो भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के नेता एक ही भाषा बोलने लगे हैं। जैसे तृणमूल कांग्रेस की सरकार के एक मंत्री शोभन चट्टोपाध्याय ने एक सभा में कहा था कि आरजी कर का आंदोलन नक्सलबाड़ियों का आंदोलन है और वामपंथी इसका समर्थन कर रहे हैं। साथ ही कहते हैं कि डॉक्टर के इस आंदोलन को नक्सल पंथियों और वामपंथियों ने अगवा कर लिया है।

साथ ही इस बात पर अफसोस भी जताते हैं कि भाजपा इस आंदोलन से कोई लाभ नहीं ले पाई। अब देखिए बीजेपी के नेता दिलीप घोष क्या कहते हैं। कहते हैं कि डॉक्टरों का यह आंदोलन शहरी शरीफ लोगों का आंदोलन है। इसका आम लोगों और महिलाओं से कोई वास्ता नहीं है।

साथ ही कहते हैं कि डॉक्टर और शहरी भद्र लोग मोमबत्ती जलाकर आंदोलन कर रहे हैं, पर जब गरीब महिलाओं के साथ ऐसा होता है तो खामोश रहते हैं। पर हजूर यह काम तो आपका है। डॉक्टर ने भला समाज सुधार का ठेका कब लिया था। इसका समापन करते हुए शुभेंदु अधिकारी कहते हैं कि डॉक्टरों की इस आंदोलन की असमय मौत हो गई है।

अब सवाल उठता है कि डॉक्टरों की आंदोलन की मौत हो गई है या भाजपा की असलियत सामने आ गई है। पश्चिम बंगाल में विधानसभा की छह सीटों पर 13 नवंबर को उपचुनाव होना है। साथ ही झारखंड में भी विधानसभा का चुनाव हो रहा है। विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी को झारखंड विधानसभा चुनाव का प्रभारी बनाकर रांची भेज दिया गया।

दिलीप घोष को त्रिपुरा के संगठन की जिम्मेदारी सौंप दी गई है। इसलिए बोरिया बिस्तर लेकर त्रिपुरा चले गए हैं। हां भाजपा ने इन सब विधानसभा सीटों के लिए अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं, पर ये ऐसे उम्मीदवार हैं जिन्हें प्रदेश तो दूर भाजपा के जिला स्तर के नेता भी नहीं पहचानते हैं।

तो क्या वामपंथियों का खौफ इस कदर भारी पड़ गया है कि 2026 के फाइनल के पहले 2024 में तृणमूल कांग्रेस को वॉक ओवर दे दिया है। इस याराने की वजह  कुछ यूं तलाश करते है। मोदी जी अक्सर अपने भाषण में कांग्रेस को परजीवी कहते हैं। यानी दूसरों के कंधे पर इसका विस्तार होता है।

बंगाल में भाजपा का विस्तार कुछ इसी तरह हुआ है। वामपंथी समर्थकों के भाजपा से जुड़ने के कारण ही भाजपा को बंगाल में राजनीतिक जमीन मिली थी। अब अगर बंगाल में वामपंथी लौट आते हैं, तो भाजपा का खाता खाली हो जाएगा।

वामपंथी ही तृणमूल कांग्रेस के सबसे बड़े रजनीतिक दुश्मन है। राजनीति में दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है। इसलिए अब भाई भाई का दौर चल रहा है।

(जे के सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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