आदर्श चुनाव आचार संहिता लागू होने का मतलब है कि इस दौरान सरकार में काम करने वाले अधिकारियों की ट्रांसफर और पोस्टिंग पर पूर्ण प्रतिबंध लागू है और चुनावी नतीजे आने के बाद नई सरकार के गठन के बाद ही इसे अमल में लाया जा सकता है। किसी विशेष आपात स्थिति में ही यदि किसी अधिकारी की पोस्टिंग अपरिहार्य है तो इसके लिए चुनाव आयोग से पूर्व अनुमति आवश्यक है। यह एक सामान्य नियम है, जिसका पालन सभी के लिए अनिवार्य है।
तो क्या इस बिना पर मान लिया जाये कि पीएमओ और केंद्र सरकार ने हाल ही में जितने बड़े पैमाने पर अधिकारियों के स्थानांतरण और पोस्टिंग के निर्देश जारी किये हैं, उसके लिए उसकी ओर से चुनाव आयोग से पूर्व अनुमति ली गई है? बता दें कि कल सोमवार को भी कई महत्वपूर्ण पदों पर विभिन्न अधिकारियों की पोस्टिंग और पदोन्नति के आदेश केंद्र सरकार की ओर से जारी किये गये हैं। पीएम मोदी का अचानक से चुनाव अभियान से दूरी बनाकर दिल्ली में कई फाइलों को क्लियर करने की खबर ने आशंकाओं का बाजार गर्म कर दिया है। इसे कई मायनों में बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
इस चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अकेले दम पर भाजपा के चुनावी अभियान को चलाते देखा जा सकता है। इस पूरे चुनाव अभियान के दौरान यह दूसरा मौका है जब अचानक पीएम मोदी अपने तीसरे कार्यकाल की मुहिम को बीच में ही रोक दिए हैं। इससे पहले यह तब देखने को मिला था, जब चुनावी गर्मा-गर्मी के बीच एक भाषण में उन्होंने अचानक अडानी-अंबानी का नाम ले लिया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि राहुल गांधी आजकल अडानी-अंबानी के खिलाफ आरोप नहीं लगा रहे हैं, क्योंकि नोटों के बैग भर-भरकर टेंपो से अडानी-अंबानी के यहां से कांग्रेस को माल मिल रहा है।
यह एक ऐसा बयान था जो इससे पहले किसी भी प्रधानमंत्री तो क्या विपक्ष के नेता ने भी सत्ता पक्ष पर नहीं लगाया था। देखते ही देखते इस बयान की चर्चा देश ही नहीं दुनियाभर में होने लगी थी। यही वह कमजोर क्षण था, जिसके अगले दिन पीएम मोदी ने एक भी सार्वजनिक सभा को संबोधित नहीं किया। लेकिन अब जबकि 6 चरण के चुनाव संपन्न हो चुके हैं, और चुनाव लगभग खात्मे की ओर है और एक सप्ताह बाद ही नतीजा सबके सामने होगा, नरेंद्र मोदी तमाम विभागों में ताबड़तोड़ ट्रांसफर-पोस्टिंग की कवायद में खुद को झोंके हुए हैं, जिसे किसी भी सूरत में उचित और विवेकसम्मत फैसला नहीं कहा जा सकता।
आचार संहिता के बीच नियुक्तियों की फाइल पर फैसले
केंद्रीय सचिवालय में सचिव पद पर कार्यरत 1987 बैच के आईएएस अधिकारी प्रदीप कुमार त्रिपाठी को कल सोमवार केंद्रीय लोकपाल के सचिव का पदभार सौंप दिया गया है। त्रिपाठी इस कार्यकाल को 30 जून तक संभालेंगे, लेकिन नए आदेश के अनुसार, सेवानिवृत्त होने के बाद भी वे अगले दो वर्ष तक अनुबंध के आधार पर इस पद पर बने रहने वाले हैं।
इसी क्रम में 1990 बैच के आईएएस अधिकारी राज कुमार गोयल को विधि एवं न्याय मंत्रालय के तहत न्याय विभाग के सचिव पद की कमान सौंपी गई है। इसके पहले राज कुमार गोयल गृह मंत्रालय के अधीन सीमा प्रबंधन सचिव पद की जिम्मेदारी संभाल रहे थे। अब इस काम को 1991 बैच के तमिलनाडु कैडर के आईएएस अधिकारी राजेंद्र कुमार संभालेंगे। कुमार अभी तक श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के तहत राज्य कर्मचारी बीमा निगम (ईएसआईसी) के डायरेक्टर जनरल का पदभार संभाल रहे थे।
इसी प्रकार एनडीएमसी के अध्यक्ष अमित यादव जो 1991 बैच के आईएएस अधिकारी हैं, को सामाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण विभाग में ओएसडी के तौर पर नियुक्त किया गया है। आदेश में कहा गया है कि 31 जुलाई को सौरभ गर्ग के सेवानिवृत्त होने पर अमित यादव सामाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण विभाग के सचिव पद को संभालेंगे।
इतना ही नहीं स्टाफ सेलेक्शन कमीशन (एसएससी) के नए चेयरमैन को भी इसी बीच तय कर लिया गया है। कृषि एवं कृषक कल्याण विभाग में विशेष सचिव का पदभार संभाल रहे राकेश रंजन को पदोन्नत कर केंद्र ने एसएससी के चेयरमैन की कुर्सी थमा दी है।
मोदी सरकार के इन फैसलों पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। सबसे पहला सवाल तो यह खड़ा हो रहा है कि एक सप्ताह में ही नई सरकार बनने जा रही है, ऐसे में पीएम नरेंद्र मोदी को ऐसा करने की जरूरत क्यों पड़ी? क्या उन्हें भी अहसास है कि हालात उनके पक्ष में नहीं हैं, इसलिए जितना हो सके अपने भरोसेमंद लोगों को कृतार्थ कर दो। इसमें एक अधिकारी को लोकपाल सचिव पद पर दो साल का अतिरिक्त एक्सटेंशन भी मिल रहा है। मोदी राज में लोकपाल पद पूरी तरह से अर्थहीन हो चुका था, क्योंकि लोकपाल का मुख्य काम ही सरकार के कामकाज की समीक्षा था। क्या इस नियुक्ति से आने वाली सरकार के कामकाज को प्रभावित किया जा सकता है? इसी प्रकार सामाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण विभाग के सचिव पद पर नियुक्त अधिकारी का कार्यकाल 31 जुलाई तक है। ऐसे में एक महीने पहले से किसी अन्य को ओएसडी नियुक्त करने का क्या अर्थ रहा जाता है?
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी का इस बारे में कहना है, “आदर्श आचार संहिता के दौरान, ज्यादातर स्थानांतरण का काम चुनाव आयोग के निर्देशों पर होता है। अधिकांश मौकों पर अधिकारियों के द्वारा अपने कर्तव्यों के निर्वहन में लापरवाही या हीला-हवाली दिखाने पर विपक्षी दलों की शिकायतों के आधार पर ऐसे फैसले लिए जाते हैं। लेकिन इन मामलों में ऐसा कुछ भी नहीं था। इसके बावजूद हमें मानकर चलना होगा कि इस सबके लिए चुनाव आयोग से इजाजत ली गई होगी।”
मजे की बात यह है कि सरकार के तमाम विभागों मार्च 2024 से ही सर्कुलर जारी कर सबको बाखबर कर दिया गया है कि चुनाव आयोग की आचार संहिता लागू हो चुकी है, और जितने भी ट्रांसफर पोस्टिंग हैं वे 5 जून 2024 के बाद प्रभावी होंगे। पांच वर्षों में एक बार आने वाले आम चुनावों के मद्देनजर, मार्च से प्रभावी सभी स्थानांतरण और प्रमोशन की प्रकिया स्वतः ठप हो चुकी है, और केंद्र सरकार के तहत कार्यरत लाखों कर्मचारी चुनाव संहिता के नियम से खुद को बंधा मान इसका पालन भी करते हैं। लेकिन शायद सरकार के मुखिया खुद को इस आदर्श चुनाव संहिता से ऊपर मानते हैं।
इंडियन आर्मी और नौसेना प्रमुख की नियुक्ति पर उठते सवाल
इससे एक दिन पहले 26 मई को पीएम मोदी की अगुआई में मंत्री परिषद की नियुक्ति कमेटी की ओर से सेना प्रमुख जनरल मनोज सी पांडे की सेवा में एक माह का विस्तार देकर उन्हें 30 जून, 2024 तक सेवा विस्तार दिया गया था। पीआईबी की प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक इसे आर्मी रुल 1954 के नियम 16 ए (4) के तहत लागू किया गया है। जनरल पांडे का कार्यकाल 31 मई को पूरा हो रहा था।
लेकिन इसके पीछे भी एक कहानी है, जिसके निहितार्थ पूरी नियुक्ति प्रकिया के मायने ही बदल देती है। अपने रिटायरमेंट से मात्र 6 दिन पहले जनरल पांडे को हासिल 30 दिन के अतिरिक्त कार्यकाल से दो वरिष्ठतम सेना अधिकारी आर्मी चीफ पद से वंचित हो गये। इसमें एक हैं उप प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल उपेन्द्र द्विवेदी (जम्मू कश्मीर राइफल्स) और दूसरे हैं दक्षिणी कमांड के चीफ लेफ्टिनेंट जनरल अजय कुमार सिंह (गोरखा राइफल्स)। दोनों अधिकारी 30 जून को रिटायर हो रहे हैं। अगर इन्हें सेना प्रमुख का पदभार मिलता तो आर्मी, वायुसेना और नौसेना के सर्विस रुल के मुताबिक इनकी रिटायरमेंट की उम्र 62 वर्ष हो जाती है।
जनरल पांडे को एक महीने के एक्सटेंशन दिए जाने के पीछे तर्क दिया जा रहा है कि ऐन आम चुनाव के बीच नए सेना प्रमुख की नियुक्ति उचित नहीं है। नई सरकार के गठन के बाद जून मध्य में इस बारे में फैसला लिया जा सकता है।
लेकिन तब सवाल उठता है कि जब ऐसा ही था तो नौसेना प्रमुख की नियुक्ति के समय इस बात को ध्यान में क्यों नहीं रखा गया? बता दें कि 19 अप्रैल 2024 को नौसेना प्रमुख के तौर पर एडमिरल दिनेश त्रिपाठी की नियुक्ति की घोषणा की गई थी और 30 अप्रैल 2024 को उन्होंने अपना कार्यभार संभाल भी लिया। ये दोनों चीजें आम चुनाव के मध्य ही हुई, जब आदर्श चुनाव आचार संहिता देश में लागू थी। सेना प्रमुख की नियुक्ति के समय आदर्श चुनाव आचार संहिता का पाठ और नौसेना प्रमुख की नियुक्ति पर सरासर अनदेखी का उदाहरण अपने आप में एक अबूझ पहेली बना हुआ है।
सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने भी आम चुनावों के बीच इतने महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्तियों को बेहद असामान्य बताया है और उनका मत है कि यह दिखा रहा है कि मोदी सरकार नतीजों को लेकर बेहद आशंकित है।
खबर तो यह भी है कि 1 जून को सातवें और अंतिम चरण के दौरान इंडिया गठबंधन के सभी घटक दल देश की राजधानी में बैठक कर अगली रणनीति पर विचार-विमर्श करने जा रहे हैं। इसमें संभावित बहुमत को देखते हुए पीएम पद के दावेदार सहित 4 जून को शांतिपूर्ण एवं निष्पक्ष मतों की गिनती को लेकर तैयारी पर चर्चा संभव है। वहीं दूसरी तरफ नरेंद्र मोदी 30 मई को पंजाब के होशियारपुर में चुनावी अभियान को खत्म कर राजधानी आने के बजाय सीधे कन्याकुमारी जाने वाले हैं। यहां अगले दिन 31 मई को वे विवेकानंद रॉक मेमोरियल पर दिनभर ध्यान मुद्रा में ठीक उसी तरह बैठने वाले हैं, जैसा मई 2019 में वे केदारनाथ में ध्यानमग्न मुद्रा में देखे गये थे। इसका प्रभाव 1 जून को अंतिम चरण के चुनाव और उनके खुद के लोकसभा क्षेत्र पर कितना पड़ेगा, यह तो समय ही बतायेगा लेकिन इतना तय है कि 2024 का आम मतदाता खुद को उस बिल्ली की तरह मान रहा है, जो दो बार गर्म दूध में मुंह मारकर बेहद फूंक-फूंककर अपना वोट डाल रहा है।
(रविंद्र पटवाल लेखक व स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
+ There are no comments
Add yours