ऑपरेशन सिंदूर: पाकिस्तान को एक्सपोज़ करने के लिए भारत ने की 33 देशों की यात्रा लेकिन भारत को क्या मिला?

ऑपरेशन सिंदूर के हुए भी महीने भर से ज्यादा हो गए। पहलगाम हमले के तो दो महीने गुजर गए। इस बीच भारत ने पाकिस्तान को नंगा करने के लिए लगभग तीन दर्जन देशों की यात्रा की। सत्ता पक्ष और विपक्ष के नेताओं ने मिलकर 33 देशों की यात्रा की। मकसद यही था कि पाकिस्तान को नंगा किया जाएगा और पाकिस्तान की कथनी और करनी से दुनिया को अवगत कराया जाएगा। लेकिन सवाल वही है कि भारत को मिला क्या?

क्या दुनिया का कोई भी देश भारत की बातों को सूना और फिर क्या भारत का समर्थन किया? भारत के साथ खड़ा होकर पाकिस्तान के खिलाफ कोई वैश्विक एजेंडा तय किया गया? उत्तर तो एक ही है-नहीं। फिर यह सब क्यों किया गया? क्या सिर्फ इसलिए कि विपक्ष को इस मुद्दे पर साथ लेकर देश को गुमराह किया जाए और विपक्षी नेताओं को विदेश का दौरा कराकर इस पूरे मामले पर पानी फेर दिया जाए?

बिहार में चुनाव तीन महीने बाद होने हैं। बंगाल समेत पांच राज्यों में अगले साल चुनाव होने हैं। फिर अगले तीन सालों में करीब 21 राज्यों में चुनाव हैं और चौथे साल में फिर से लोकसभा चुनाव। ऐसे में क्या चुनाव को देखते हुए ही सरकार कोई कदम उठा रही है? सामने संसद का सत्र है। सरकार जानती है कि पहलगाम और ऑपरेशन सिंदूर के बाद विपक्ष ने संसद के विशेष सत्र की मांग की थी। सरकार को स्वीकार नहीं था। झट से सरकार ने मॉनसून सत्र की घोषणा कर दी।

लगभग दो महीना पहले। आजाद भारत का यह भी इतिहास ही है। सरकार बताये कि इस दो महीने पहले सत्र की घोषणा के पीछे की क्या वजह है? सरकार के लोग इस पर कुछ नहीं बोल सकते। क्योंकि सरकार का एजेंडा कुछ और ही है। और बड़ा एजेंडा यही है कि ऑपरेशन सिंदूर पर देश को गुमराह करके चुनावी जीत हासिल की जाए। इस दिशा में सरकार और सरकार की पार्टियां काम भी कर रही हैं। 

अब संसद सत्र से पहले ही जनगणना कराये जाने की घोषणा हो चुकी है। गजट का ऐलान हो गया है। तारीखें तय कर दी गई हैं। जातिगत गणना की तारीख भी बता दी गई है। परिसीमन से लेकर महिला आरक्षण की तैयारी भी चल रही है। अगले लोकसभा चुनाव में महिला आरक्षण को कैसे हथियार बनाकर आधी आबादी के वोट बैंक को कैटेर किया जाए उसके लिए रणनीति तैयार की जा रही है। और बड़ी बात कि मोदी सरकार के 11 साल पूरे होने पर गांव -गांव की गलियों में मोदी की सरकार के 11 साल की उपलब्धियां पहुँच गई हैं।

लोग कीर्तन कर रहे हैं और भगत जनों से लेकर गोदी मीडिया को प्रशिक्षित किया जा रहा है कि आगे क्या कुछ करना है और कैसे चुनावी खेल में बीजेपी को सत्ता तक पहुँचाना है। कह सकते हैं कि जनता और राष्ट्र निर्माण की कहानी गढ़ी जा रही है लेकिन ऑपरेशन सिंदूर का क्या असर हुआ इस पर कोई बातचीत नहीं है। आगे भी इस पर कोई चर्चा हो इसकी कल्पना तक नहीं जा सकती। संसद सत्र में इस मुद्दे पर भले ही विपक्ष सवाल उठाने की तैयारी कर रहा हो लेकिन सरकार क्या उनके सवालों का जबाव देगी? 

अभी ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी ने ऑपरेशन सिंदूर को लेकर कई सवाल खड़े किये हैं। बनर्जी का सवाल यही है कि ऑपरेशन सिंदूर और पहलगाम हमले की जानकारी दुनिया तक पहुंचाने के लिए करोड़ों रुपये खर्च करके भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने 33 देशों की यात्रा की। लेकिन भारत को मिला क्या? कितने देशों ने भारत का समर्थन किया और पाकिस्तान के खिलाफ कुछ कहा? जब पाकिस्तान के खिलाफ कोई एक्शन ही नहीं हुआ तो विदेशी दौरे का क्या मतलब? कोई यह भी कह सकता है कि चूंकि बंगाल में अगले साल चुनाव है और टीएमसी की लड़ाई बीजेपी के साथ होनी है इसलिए अभिषेक बनर्जी इस तरह के सवाल उठा रहे हैं। लेकिन क्या सच में यही दृश्य नहीं है? 

अभिषेक बनर्जी भी पांच देशों की यात्रा पर गए थे। वे एशियाई देशों की यात्रा पर थे। उन्होंने पांच देशों के नागरिक समाज से मिले फीडबैक का अध्ययन किया और फिर मोदी सरकार से कुछ सवाल पूछे हैं। एक विस्तृत पोस्ट में, अभिषेक ने कूटनीति के अलावा चिंता के चार अन्य क्षेत्रों को उठाया है। सीमा उल्लंघन और नागरिक हताहतों पर, उन्होंने यह जानने की मांग की कि चार आतंकवादी कैसे “घुसपैठ करने में कामयाब रहे” और हमले को अंजाम दिया? टीएमसी नेता ने कहा कि “राष्ट्रीय सुरक्षा में भारी उल्लंघन” के लिए जवाबदेही होनी चाहिए। क्या सरकार ने अब तक जवाबदेही की कोई बात की?

अभिषेक बनर्जी कहते हैं कि हर कोई जानता है पहलगाम में जो कुछ भी हुआ वह खुफिया विफलता है। आईबी प्रमुख तपन कुमार डेका को दण्डित करने के बाजए उन्हें एक साल के लिए सेवा विस्तार दिया गया। सरकार के भी कई लोग मानते हैं कि यह खुफिया विफलता थी तो फिर डेका का सेवा विस्तार क्यों? उन्हें जवाबदेही ठहराने की जगह पुरस्कृत क्यों किया गया? आखिर सरकार की मज़बूरी क्या थी? 

कई जानकार तो यही कहते हैं कि इस सरकार में किसी भी बड़े आदमी और मंत्री, संत्री को दण्डित नहीं किया जाता। और यह सब इसलिए कि अगर किसी को दंडित किया गया तो सरकार की भद्द पिट सकती है। मध्यप्रदेश वाले मंत्री ने कर्नल सोफिया के बारे में भी जो कहा ,क्या उसे दंडित किया गया? क्या गृह मंत्री शाह ने पहलगाम हमले की जिम्मेदारी ली और खुद को मंत्री पद से इस्तीफा दिया? चूंकि ऐसा होने लगे तो पीएम मोदी भी कटघरे में खड़े हो सकते हैं। इसलिए देश को बहलाते रहने की ज़रुरत है। अब दूसरी बात यह है कि अगर कभी कोई विपक्षी पार्टी सत्ता तक पहुँचती है तो क्या बीजेपी वाले किसी से इस्तीफा मांग सकते हैं? देश के भगत जन यही सवाल विपक्षी सरकार से पूछ सकते हैं? लगता है मोदी सरकार अब एक नया चलन शुरू कर रही है। 

अपने हालिया पोस्ट में अभिषेक बनर्जी ने कई मौजूं सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा है कि “अगर भारत सरकार विपक्षी नेताओं (मेरे सहित), पत्रकारों और यहां तक कि न्यायाधीशों के खिलाफ पेगासस स्पाइवेयर का आसानी से इस्तेमाल कर सकती है, तो उसे आतंकवादी नेटवर्क और संदिग्धों के खिलाफ वही उपकरण इस्तेमाल करने से क्या रोकता है?”

पहलगाम आतंकवादियों की स्थिति पर, अभिषेक ने “क्रूर, धर्म-आधारित नरसंहार” के लिए जिम्मेदार चार लोगों के भाग्य पर स्पष्टता मांगी। उन्होंने पूछा कि क्या वे मर चुके हैं या जीवित हैं, और अगर मारे गए हैं, तो सरकार स्पष्ट बयान जारी करने में विफल क्यों रही। उन्होंने सरकार की चुप्पी पर भी सवाल उठाया है। 

अभिषेक ने पूछा कि भारत पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) को कब “वापस लेने” का इरादा रखता है और सरकार ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के इस दावे पर आधिकारिक रूप से जवाब क्यों नहीं दिया कि उन्होंने व्यापार के वादों के साथ ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम की मध्यस्थता की। अभिषेक ने कहा कि संघर्ष विराम ने “140 करोड़ भारतीयों की भावनाओं की अनदेखी की है”, और पूछा कि सशस्त्र बलों के पीछे राष्ट्र के एकजुट होने के बाद इस तरह के “समझौते” की क्या वजह थी।

अभिषेक ने कहा कि यह आश्चर्य की बात है कि भारत दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है और केंद्र देश को “विश्वगुरु” के रूप में पेश करता है, इसके बावजूद अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक ने हमले के तुरंत बाद पाकिस्तान को महत्वपूर्ण वित्तीय सहायता और दीर्घकालिक निवेश को मंजूरी दे दी थी। उन्होंने सवाल किया कि कैसे एक देश “बार-बार सीमा पार आतंकवाद में शामिल” वैश्विक जांच से बच गया और उसे पुरस्कृत किया गया, और क्यों पाकिस्तान को बमुश्किल एक महीने बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आतंकवाद-रोधी समिति का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया।

अभिषेक ने अपने पोस्ट का समापन इस बात पर प्रकाश डालते हुए किया कि पिछले 10 वर्षों में विदेश मामलों पर 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए गए हैं, उन्होंने जोर देकर कहा कि “भारतीय जनता पारदर्शिता, जवाबदेही और परिणाम की हकदार है – चुप्पी और घुमाव की नहीं”।

टीएमसी नेता के एक्स पर पोस्ट के बाद, इसके राज्यसभा सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने उनका समर्थन करते हुए एक वीडियो जारी किया। उन्होंने कहा, “किसी को इस सरकार को घेरने की जरूरत है। किसी को इस सरकार को जवाबदेह ठहराने की जरूरत है। किसी को पांच सीधे सवाल पूछने की जरूरत है,” उन्होंने कहा कि इन महत्वपूर्ण मुद्दों पर सरकार की चुप्पी अस्वीकार्य है। 

सच तो यही है कि विपक्ष के इन सभी सवालों के जवाब कभी नहीं मिल सकते। सरकार बहुमत में है और उसे पता है कि देश की जनता अभी उसी की बात सुनती है। सरकार को यह भी पता है कि जब किसी भी प्रदेश की बहुतायत जनता सरकार को नहीं घेर रही है तो विपक्ष की क्या औकात है? और बड़ी बात तो यह है कि देश की 80 करोड़ जनता को जब हर महीने पांच सेर अनाज अबाध गति से मिल रहे हैं और हर समय पीएम योजना की तरफ से किसानों को नकदी बांटी जा रही है और हर राज्य सरकार महिलाओं को नकदी बाँट रही है फिर सरकार के खिलाफ आखिर कौन बोल सकता है? क्या इस देश का कोई भी आदमी दो से चार हजार की नकदी को छोड़कर सरकार के खिलाफ जाने की हिमाकत कर सकता है? कभी नहीं। नकदी की यह लीला इस देश को कहाँ ले जा रही है और भगत जनों को कितना लंगड़ा-लूला बना दिया है यह दुनिया भी देख रही है।

(अखिलेश अखिल वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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