जब पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को अपने भाषण को बीच में ही रोकना पड़ा

नई दिल्ली। नालंदा विश्वविद्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को अपना भाषण बीच में ही रोकना पड़ा। उनके वक्तव्य के दौरान अचानक संगीत बजने लगा फिर पीछे से पीएम मोदी का भाषण चलने लगा। इस घटना से कार्यक्रम में उपस्थित सारे लोग हक्का-बक्का हो गए।

यह घटना कल शुक्रवार 15 सितंबर, 2023 को नालंदा विश्वविद्यालय में दो दिन तक चलने वाले “वैशाली फेस्टिवल ऑफ़ डेमोक्रेसी” कार्यक्रम की है। कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद इस प्राचीनतम विश्वविद्यालय के इतिहास और दक्षिण के एक शासक परांतक चोल के शासनकाल के दौरान लोकतंत्र की अवधारणा पर अपना वक्तव्य दे रहे थे, तभी अचानक बैकग्राउंड से देववाणी से पहले वाला संगीत बजना शुरू हो गया, जिससे सभागार में मौजूद सभी लोग अचानक से चौंक गये। और पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को अपने भाषण को बीच में ही रोकना पड़ा।

एक पल को लगा कि संभवतः भाषण के पीछे धीमे संगीत को साउंड प्रबंधकों के द्वारा एडजस्ट किया जा रहा होगा, और कोविंद ने एक पल ठिठक कर जैसे ही फिर से अंग्रेजी में अपने लिखित वक्तव्य को पढ़ना शुरू किया कि मोदी जी की कड़क आवाज के छाते ही उन्हें अपना भाषण बीच में ही रोकने के लिए मजबूर होना पड़ा, अब संगीत के बाद मोदी जी बोल रहे थे, “मैं कहूंगा मित्रों एक बार, इस रामराज्य की कल्पना क्या है, इसका अध्ययन करने के लिए आप सबको…।” फिर आवाज बंद हो गई, और पूर्व राष्ट्रपति ने हंसते हुए कहा, “this is also a part of democracy (यह भी लोकतंत्र का हिस्सा है)”।

सभागार में मौजूद लोगों ने ठठाकर हंसते हुए ताली बजा दी। मालूम हुआ कि किसी ने जानबूझकर पूर्व राष्ट्रपति के भाषण के बीच में व्यवधान डालने के लिए पीएम मोदी का रिकार्डेड भाषण शुरू कर दिया था। स्टेज पर मौजूद किसी मोदी समर्थक ने पूर्व राष्ट्रपति के वक्तव्य के बीच में ही उनका रिकार्डेड भाषण बजा दिया था, या संभवतः वह अंग्रेजी में नालंदा विश्वविद्यालय के शानदार गौरवशाली अतीत और लोकतंत्र, अशोक के धम्म चक्र और उस जमाने के शासनकाल में प्रतिनिधियों के लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचन की बातों को सुनकर बोर हो रहा था। बहरहाल जो भी है, लेकिन यह याद दिलाने के लिए काफी है कि भक्तों में प्रचलित, मोदी जी के आंख और कान हर जगह लगे होते हैं, और उन्हें पल-पल की खबर रहती है, सभागार में मौजूद श्रोताओं को भी एकबारगी इस बात का अहसास हो गया था।

सभागार में मौजूद बिहार के राज्यपाल, राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा, केंद्रीय राज्य संस्कृति मंत्री मीनाक्षी लेखी सहित विभिन्न देशों के राजदूतों की मौजूदगी के बीच कार्यक्रम में हुए इस व्यवधान की क्या व्याख्या की जा सकती है, और मोदी जी के रिकार्डेड भाषण को बीच में बजाने की कोई सजा भी होनी चाहिए या जो ऐसा सोच भी ले, उसे खुद अपने अंजाम के बारे में पहले से पता होना चाहिए। लेकिन इतना तो तय है कि यहीं पर अगर मोदी जी की जगह “मोहब्बत की दुकान खोलने” वाले का भाषण चल गया होता, तो अंजाम क्या होता?

बता दें कि इस दो दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन इंडियन काउंसिल फॉर कल्चरल रिलेशन (आईसीसीआर) द्वारा अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस के अवसर पर किया गया था।

व्यवधान के बाद एक बार फिर से पूर्व राष्ट्रपति की ओर से उद्घाटन भाषण का शेष हिस्सा पढ़ा गया, जिसमें उन्होंने मोदी जी की प्रसिद्ध उक्ति, ‘भारत लोकतंत्र की जननी है’ को दोहराया और बताया कि किस प्रकार से हमारी लोकतांत्रिक परंपरा हजारों साल पुरानी है। वैशाली सबसे प्राचीन गणराज्य था। उस दौरान देश के विभिन्न हिस्सों में लोकतंत्र फल-फूल रहा था, और प्राचीन भारत में कई गणराज्यों की स्थापना हुई थी। उन्होंने इस बात का भी दावा किया कि ऋग्वेद में गणतंत्र शब्द का 40 बार उल्लेख किया गया है, जबकि अथर्वेद में 6 बार इसका उल्लेख मिलता है।

लेकिन अजीब विडंबना यह है कि अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस के इस मौके पर प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को आमंत्रित नहीं किया गया था, जो नालंदा विश्वविद्यालय को एक बार फिर से विश्व पटल पर लाने के लिए सबसे प्रमुख रूप से जिम्मेदार हैं। आज नालंदा विश्वविद्यालय को वैश्विक शिक्षण संस्थान के रूप में पुनर्स्थापित करने वाले नीतीश कुमार ने कुछ दिनों पहले ही नांलदा ओपन यूनिवर्सिटी के एक नवनिर्मित भवन का उद्घाटन भी किया है।

2010 में यूपीए के शासनकाल के दौरान नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना की गई थी, और नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन को इसका पहला चांसलर नियुक्त किया गया था। 2014 में एनडीए के सत्ताशीन होने के बाद अमर्त्य सेन जैसे विश्व प्रसिद्ध हस्ती के साथ क्या व्यवहार हुआ, और उन्हें किन परिस्थितयों में कुलपति पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा, यह एक अलग कहानी है। मौजूदा दौर में एक अन्य अर्थशास्त्री अरविंद पनगढ़िया इसके चांसलर हैं।

(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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