इस देश को तुम किस ओर ले जा रहे हो?

Estimated read time 1 min read

होठों पर सच्चाई रहती है, जहां दिल में सफाई रहती है। हम उस देश के वासी हैं, जहां गंगा बहती है। इंसान का इंसान से भाईचारा हो, यही पैगाम हमारा। न हिंदू बनूंगा, न मुसलमान बनूंगा, इंसान की औलाद हूं, इंसान बनूंगा। गंगा-जमुनी है यहां की तहज़ीब। हमारी संस्कृति ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की है। ये सब बातें सुनने में कितनी अच्छी लगती हैं। काश, ये सच भी होतीं।

हमारा देश और समाज जाति व धर्म में बंटा होने के बावजूद देश की जनता मिलजुलकर शांति से रहना चाहती है। इसकी मिसाल हमें रोज़मर्रा की ज़िंदगी में देखने को मिलती है। हम दूध, ब्रेड, सब्ज़ी या अन्य दैनिक उपयोग की चीज़ें खरीदते हैं, तो किसी की जाति या धर्म नहीं देखते। अपने काम पर-चाहे दफ्तर, फैक्ट्री या कोई और जगह-जाने के लिए घर से निकलते हैं, तो जिस वाहन से जाते हैं, उसके चालक की जाति या धर्म नहीं पूछते। कार्यस्थलों पर भी सभी धर्मों और जातियों के लोग मिलजुलकर काम करते हैं और अपनी आजीविका कमाते हैं।

बहुत कन्फ्यूज़न पैदा कर रहे हो

जनता ने तुम्हें चुनकर इसलिए भेजा कि देश का शासन-प्रशासन भली-भांति चलाओ। जनकल्याणकारी योजनाओं को लागू करो। संविधान के सिद्धांतों का इस तरह कार्यान्वयन करो कि देश में भाईचारे की भावना विकसित हो। देश में फैली कुप्रथाओं का अंत हो। पर ऐसा हो नहीं रहा।

मिसाल के तौर पर, आज विज्ञान और तकनीक के युग में भी जाति आधारित मैला प्रथा को ही लें। यह अमानवीय और घृणित प्रथा आज भी देश के कई राज्यों में जारी है। शुष्क शौचालयों से आज भी दलित महिलाएं मानव मल साफ कर रही हैं। इस प्रथा के उन्मूलन के लिए देश में दो-दो कानून होने के बावजूद मैला ढोना जारी है। सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई के दौरान दलितों की जान जा रही है। देशभर के सफाई कर्मचारी जंतर-मंतर पर धरना-प्रदर्शन करते हैं और कहते हैं, “हमें मारना बंद करो,” पर सरकार कोई संज्ञान नहीं लेती।

इस शर्मनाक प्रथा के आज भी अस्तित्व में होने के लिए नैतिकता के आधार पर प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र मोदी जी को शर्मिंदगी महसूस करनी चाहिए। उन्हें देश से माफी मांगनी चाहिए और इस कुप्रथा को हमेशा के लिए खत्म करना चाहिए। पर वे इस बारे में एक शब्द नहीं बोलते। दूसरी ओर, प्रधानमंत्री सहित भाजपा सरकार दलित हितैषी होने का दावा करती है।

एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुसलमानों के हितैषी होने का दावा करते हुए ईद पर उनके लिए “सौगात-ए-मोदी” दे रहे हैं। दूसरी ओर, उनकी ही पार्टी के उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कहते हैं कि सौ हिंदू परिवारों की बस्ती में एक मुसलमान परिवार हो, तो वह सुरक्षित है। लेकिन सौ परिवारों की बस्ती में पचास मुसलमान और पचास हिंदू हों, तो हिंदू सुरक्षित नहीं हैं।

ऐसी बातें कर वे हिंदुओं और मुसलमानों में नफरत फैला रहे हैं। “बंटोगे तो कटोगे” का उनका नारा तो जगज़ाहिर है। एक ओर भाजपा वाले “सौगात-ए-मोदी” देकर हिंदू-मुसलमानों में भाईचारे का दावा करते हैं, दूसरी ओर उनके खिलाफ नफरती भाषण। बहुत कन्फ्यूज़न है, भाई। ऐसे में मुक्तिबोध की पंक्ति पूछने का मन करता है, “बंधु, तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है?”

क्यों गड़े मुर्दे उखाड़े जा रहे हो? क्यों औरंगज़ेब की कब्र खोद रहे हो?

तुम क्यों डिसाइड करना चाहते हो कि देश के लोग क्या खाएं? नवरात्रों के दौरान मीट की दुकानें बंद करने की बात कर रहे हो। तुम्हारे अनुसार, इससे जनभावनाएं आहत होती हैं। पर मीट का कारोबार करने वालों के आर्थिक नुकसान की तुम्हें कोई चिंता नहीं। मीट का कारोबार सिर्फ मुसलमान ही तो नहीं करते। एक अनुमान के मुताबिक, मीट का कारोबार साठ प्रतिशत हिंदू और चालीस प्रतिशत मुसलमान करते हैं। देश के अस्सी प्रतिशत लोग मांसाहारी हैं। तुम यह क्यों तय करना चाहते हो कि देश की जनता क्या खाए, क्या न खाए?

बहुरंगी है संस्कृति इस देश की, क्यों बस एक रंग में रंगना चाहते हो?

सब जानते हैं कि भारत विविधताओं का देश है। यहां की संस्कृति बहुरंगी है और यही इसकी खूबसूरती भी है। विविधता में एकता इसकी विशेषता है। आप एक धर्म विशेष की संस्कृति को इस देश पर थोपना चाहते हैं। इसे एक ही रंग में रंगना चाहते हैं। इससे लोगों के निजता के अधिकार का हनन होता है। इस धर्म विशेष की संस्कृति को नकारकर कोई अपनी तरह से जीना चाहता है (जो उसका संवैधानिक मौलिक अधिकार है), तो वह आपकी नज़र में देशद्रोही हो जाता है।

आखिर इस संवैधानिक लोकतांत्रिक देश को किस ओर ले जाना चाहते हो? किसी भी देश का विकास तभी होता है, जब वहां की जनता में चैन और अमन हो। लेकिन राजनीतिक लाभ के लिए तुम एक धर्म के लोगों में दूसरे धर्म के लोगों के प्रति नफरत फैला रहे हो। इससे लोग एक-दूसरे के खून के प्यासे हो जाएंगे। देश में जगह-जगह सांप्रदायिक दंगे भड़केंगे। बेगुनाह लोग मारे जाएंगे। उनके परिवार बेसहारा और बच्चे अनाथ हो जाएंगे। ऐसे में देश कैसे विकास करेगा? तुम 2047 तक देश को विकसित भारत बनाने का सपना देख रहे हो। वह कैसे पूरा होगा?

“एक देश, एक धर्म” ऐसा भी बनाया जाए

हमारा देश धर्मनिरपेक्ष है। फिर भी, यहां धर्म के नाम पर हिंसा होती रहती है। क्यों न देश में एक ऐसा नया धर्म बनाया जाए, जिसे सभी मानें? वह धर्म देश के संवैधानिक मूल्यों का पालन करता हो। लोकतंत्र में विश्वास रखता हो। जाति, धर्म, लिंग, भाषा, क्षेत्र, संस्कृति से ऊपर उठकर सभी के मानवाधिकारों की रक्षा करता हो। सभी को गरिमा के साथ जीने के लिए प्रोत्साहित करता हो। समता, समानता, स्वतंत्रता, न्याय और बंधुत्व में विश्वास रखता हो। सभी में मिलजुलकर रहने की भावना विकसित करता हो। देशवासियों को एक अच्छा नागरिक बनाता हो।

हमारे प्रिय कवि गोपालदास नीरज तो पहले ही कह गए हैं:

अब तो मज़हब कोई ऐसा चलाया जाए,
जहां इंसान को इंसान बनाया जाए।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और सफाई कर्मचारी आंदोलन से जुड़े हैं।)

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author