दानियालपुर, बनारस। उत्तर प्रदेश के बनारस में एक गांव है दानियालपुर, जहां चार महीने पहले 17 साल की लड़की खुशी पाल अचानक लापता हो गई। लड़की के गायब होने के बाद शिवपुर थाना पुलिस ने इस मामले का पेंच इतना उलझा दिया कि अभी तक यह पता ही नहीं चल पाया है कि वो जिंदा है या फिर उसकी मौत हो चुकी है? पुलिस के नकारेपन से नाराज ग्रामीणों ने कुछ रोज पहले ही कलेक्ट्रेट पर प्रदर्शन करते हुए डीएम एस.राजलिंग का घेराव किया। लेकिन नतीजा वही, ढाक के तीन पात। यह स्थित उस इलाके की है जिसके सांसद देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं।

17 वर्षीया खुशी पाल शिवपुर स्थित राघव राम बालिका इंटर कालेज में 11वीं की छात्रा थी। मां अभिलाषा पाल गांव में ही खेतिहर मज़दूर हैं और उसके पिता संतोष पाल बढ़ई का काम करते हैं। उनके बिना प्लास्टर के घर के बाहर मवेशी बांधे जाते हैं। खुशी के घर पिछले कुछ दिनों से पाल समुदाय के नेताओं का आना-जाना लगा रहता है। घर के भीतर बैठी मां अभिलाषा रह-रहकर सिहर उठती हैं और रोते हुए कहती हैं, ” पुलिस ने कहा था कि हमें पचास हजार रुपये दे दो। हम एक हफ्ते के अंदर तुम्हारी लड़की को ढूंढ लाएंगे। हम पैसे नहीं जुटा सके तो हमारी बेटी भी नहीं मिली।”
“खुशी 12 अप्रैल 2024 को गायब हुई। काफी भाग-दौड़ के बाद भी शिवपुर थाना पुलिस ने रपट नहीं लिखी। बाद में चार हजार रुपये सुविधा शुल्क लेने के बाद 22 अप्रैल को हमारी बेटी के लापता होने की सूचना गुमशुदगी में दर्ज की। लड़की को गायब करने वाले अभियुक्तों के बारे में हमने पुलिस को पुख्ता जानकारी दी, लेकिन उनके खिलाफ अपहरण का मामला दर्ज नहीं किया गया। इतना ही नहीं, हमारे घर से शिवपुर तक जाने वाले सभी रास्तों पर कई जगह सीसीटीवी कैमरे लगे हैं, लेकिन पुलिस ने उन्हें खंगालने की जरूरत नहीं समझी। सिर्फ पैसे की डिमांड की जाती रही। हमें झूठा आश्वासन दिया जाता रहा कि जल्दी ही तुम्हारी लड़की को ढूंढकर ला देंगे। पता नहीं खुशी कहां और किस हाल में है? वो जिंदा है अथवा उसकी हत्या कर दी गई है?”

अभिलाषा पाल, गड़ेरिया समुदाय की महिला हैं। पूर्वांचल में यह समुदाय भले ही पिछड़ी जाति में शामिल है, लेकिन इनकी माली हालत दलितों की तरह बदतर है। आमतौर पर गड़ेरिया जाति के लोग पारंपरिक तौर पर भेड़-बकरियां पालते हैं और उसी से अपने परिवार की आजीविका चलाते हैं। अभिलाषा ने भी एक भैंस और चार-पांच बकरियां पाल रखी हैं। उनके तीन बच्चे थे, जिनमें खुशी सबसे बड़ी थी। बेटा शिवम नौवीं का स्टूडेंट है। छोटी बेटी तृषा तीसरी कक्षा में पढ़ती है। खुशी पढ़ाई में अव्वल थी। घर के काम में मां का हाथ बंटाने के बाद भी वह हाईस्कूल अच्छे नंबरों से पास हुई थी। घर वालों के मुताबिक, आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण उसका दाखिला किसी कान्वेंट स्कूल में नहीं हो सका था।
क्या है पूरा मामला?
इस पूरे मामले पर छात्रा खुशी पाल के दादा धनपत पाल के मुताबिक, 12 अप्रैल 2024 को तड़के खुशी शौच करने गई थी और वह लापता हो गई। मकान के पीछे एक शौचालय है, जिसमें दरवाजा नहीं है। सिर्फ एक मामूली पर्दा डाल दिया गया है। शौचालय के बाहर दो बाल्टियों में पानी भरकर रखा जाता है। घटना के दिन परिवार के सभी लोग घर में मौजूद थे। खुशी की मां अभिलाषा खाना बनाने की तैयारी कर रही थी। तड़के करीब पांच बजे खुशी शौच करने गई। जब काफी देर तक नहीं लौटी तो परिवार को लोगों ने शौचालय में जाकर झांका। वहां कोई नहीं था। मौके पर शौचालय में इस्तेमाल होने वाली बाल्टी मिली। खुशी का मोबाइल घर पर ही था।
खुशी के लापता होने पर घर में कोहराम मच गया। पास-पड़ोस के लोग उन्हें ढूंढने में जुट गए। परिवार के लोग उसे रात भर ढूंढते रहे, लेकिन वो नहीं मिली। दादा धनपत पाल कहते हैं, “खुशी के लापता होने के बाद गांव का ही एक युवक सुनील पाल भी लापता हो गया। 11 अप्रैल 2024 की शाम उसने खुशी से करीब एक घंटे तक मोबाइल पर बात की थी और अगले दिन वह गुम हो गई। घटना के कुछ रोज पहले गांव के ही एक युवक शिवपाल राजभर उर्फ गुरू ने खुशी के साथ छेड़छाड़ और बदसलूकी की थी। इसे लेकर दोनों परिवारों के बीच काफी विवाद हुआ था। यह घटना होली से एक दिन पहले की है। शिवपाल ने धमकी दी थी कि जब तक उनकी बेटी को वह उठवा नहीं लेगा, तब तक कलेजा ठंडा नहीं होगा। खुशी का दोस्त सुनील शिवपाल के साथ रहता था। दोनों प्लंबर का काम करते थे। आमतौर पर सुनील व शिवपाल आवारागर्दी किया करते थे। जब लड़की गायब हुई तो शिवपाल ने ही पूरे गांव में उसके लापता होने की बात प्रचारित की थी।”

धनपत कहते हैं, ” शंका के आधार पर हमने सुनील के घर वालों से बात करनी चाही तो वो झगड़ा करने लगे। पुलिस के लिए काम करने वाले गांव के एक दबंग व्यक्ति को हमने फोन किया। जिस पर उसने कहा कि केस मत करिएगा, हम लड़की को वापस दिला देंगे। जिस वक्त शिवपाल से विवाद हुआ था उस समय इसी व्यक्ति ने दोनों पक्षों के बीच समझौता कराया था। खुशी के लापता होने पर शिवपुर थाना पुलिस ने तत्काल हमारी न तो रपट लिखी और न ही उसे ढूंढने का तनिक भी प्रयास किया। ऐसे ही वक्त बढ़ता रहा और आज तक न तो खुशी जिंदा मिली, न ही उसकी लाश ही मिली।”
“बनारस की कमिश्नरेट पुलिस अगर मुश्तैद होती तो खुशी हमारे घर में होती। लड़की के गायब होने पर पुलिस जांच-पड़ताल और मौका मुआयना करने भी हमारे घर नहीं आई। गुमशुदगी की रपट दर्ज होने के बाद इस मामले के विवेचक राम बालक अभियुक्तों के घर भी नहीं गए। थाना प्रभारी रविशंकर मिश्र भी बहानेबाजी करते रहे। घटना के तत्काल बाद पुलिस ने संदिग्ध अभियुक्तों की सीडीआर (मोबाइल डिटेल आदि) निकलवाने में भी दिलचस्पी नहीं ली। हमने पुलिस अफसरों से मिलकर पुलिस की शिकायत की तब विवेचना अधिकारी छुट्टी लेकर चले गए। इसी बीच सुनील का पूरा परिवार गायब हो गया।”

खुशी के परिजनों को लगता है कि उनकी बेटी किसी के साथ भागी नहीं है। वह हर रोज शिवपुर स्थित राघव राम बालिका इंटर कालेज में पढ़ने जाती थी। उसे किसी लड़के के साथ भागना होता तो स्कूल जाते समय भागती। खुशी का अपहरण किया गया है और शिवपुर थाना पुलिस इस मामले को अपहरण मानकर नहीं चल रही है। इस केस को गुमशुदगी में दर्ज किया गया है और उसे आज तक अपहरण में तरमीम नहीं किया गया। पुलिस के दबिश देने से पहले ही शिवपाल भी गायब हो गया। हमें लगता है कि पहले के पुलिस अफसरों ने ही इस मामले में लीपापोती की और फौरी तौर पर अभियुक्तों को भगाया। “
क्या कहती है एफ़आईआर?
खुशी के लापता होने के बाद पिता संतोष पाल की तहरीर पर शिवपुर थाना पुलिस ने 363 के तहत केस दर्ज किया है। हेड कांस्टेबल राजकुमार ने घटना का ब्योरा कंप्यूटर में दर्ज किया है, जिसे हेड कांस्टेबल राजनाथ ने प्रमाणित किया है। संतोष पाल कहते हैं, “हम संदिग्ध अभियुक्तों के खिलाफ अपहरण की नामजद रिपोर्ट दर्ज कराना चाहते थे, लेकिन पुलिस ने हमसे जबरिया गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई। शिवपुर थाना पुलिस रोजनामचे पर हमारी बेटी की उम्र 18 साल से ज्यादा चढ़ाना चाहती थी। हमने पहले आधार कार्ड दिया तब भी वो नहीं माने। बाद में हमने उसके हाईस्कूल का अंकपत्र दिया, जिसमें खुशी की उम्र 13 अगस्त 2007 दर्ज है। इसके बाद पुलिस ने 17 साल उम्र लिखी। हमारी पहले से किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं थी।”
सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के मुताबिक, किसी अवयस्क लड़की अथवा लड़के के गायब होने के दो दिन बाद भी पता नहीं चलता तो इस मामले को अपहरण मानकर पुलिस को जांच-पड़ताल करनी चाहिए। शिवपुर थाना पुलिस ने जो शिकायत दर्ज की है और घर की महिलाएं जो बता रही हैं, उसमें बहुत फ़र्क है। छात्रा खुशी पाल केस में जिन लोगों पर शक-शुबहा है उनमें एक उसका दोस्त सुनील है तो दूसरा सुनील का साथी शिवपाल राजभर। शिवपाल से खुशी पाल के परिवार से विवाद हुआ था। खुशी को मोबाइल फोन देने वाले विजय पाल, जो मुंबई में काम करता है, उसे बुलाकर दो मर्तबा पूछताछ की। फिर भी कोई सुराग नहीं लगा। खुशी पाल केस की जांच कर रहे शिवपुर थाने के दरोगा अनिल सिंह ने भी “जनचौक” से बातचीत में कहा, ” इस मामले में हर ऐंगल से जांच चल रही है। हम इस कोशिश में हैं कि खुशी पाल का सुराग लग जाए।”
एसएचओ समेत दो दरोगा नपे
बनारस के पुलिस कमिश्नर मोहित अग्रवाल ने खुशी पाल प्रकरण में कोताही बरतने और इस मामले को पेंचीदा बनाने पर थानाध्यक्ष इंस्पेक्टर रविशंकर मिश्र, चौकी इंचार्ज बालक राम को निलंबित कर दिया है। इस मामले की जांच अब दरोगा अनिल सिंह को सौंपी गई है। अनिल सेंट्रल जेल चौकी के इंचार्ज हैं। शिवपुर थाने की कमान इंस्पेक्टर उदयवीर सिंह को सौंपी गई है। लापता लड़की खुशी के दादा धनपत पाल भाकपा माले के ब्रांच सचिव हैं। यही वजह है कि खुशी पाल के लापता होने के बाद से शिवपुर थाना पुलिस के नकारापन के खिलाफ प्रगतिशील महिलाओं के संगठन लगातार आंदोलन कर रहे हैं।

धनपत पाल शिवपुर थाना पुलिस पर सवाल उठाते हैं कि, “दो-दो दरोगाओं के निलंबन के बावजूद खुशी के लापता होने की पेंच क्यों उलझी हुई है? दानियालपुर से पुसौर पुल और शिवपुर तक कई स्थानों पर सड़क के किनारे सीसीटीवी कैमरे लगे हैं। बैंक आफ बड़ौदा के सीसीटीवी कैमरे के फुटेज की जांच तक नहीं की गई? आखिर वह कौन शख्स था जिसके दबाव में विवेचना अधिकारी बालक राम अचानक विवेचना की फाइल लेकर छुट्टी पर चला गया। लोकसभा चुनाव के दौरान इस दरोगा को किसी अधिकारी ने छुट्टी सैंक्शन की? “
पहेली बनी छात्रा की गुमशुदगी
खुशी केस में ढेरों अबूझ पहेलियां हैं, जिनका पुलिस और प्रशासन के पास कोई जवाब नहीं है। छात्रा की मां अभिलाषा ने जनचौक से कहा, ” हम खेतिहर मजदूर हैं। अगर खुशी बड़े घर की बेटी होती तो पुलिस उसे न जाने कब की ढूंढ चुकी होती। दरोगा बालक राम चौकी में बैठे थे और बाहर सिपाही मनोज पांडेय हमारी बेटी को ढूंढने के लिए हमसे सौदा कर रहा था। इसी सिपाही के जरिये दरोगा बालक राम ने हमसे पहले पचास हजार रुपये और दबिश देने के लिए गाड़ी का पेट्रोल व अन्य खर्च की डिमांड की।”
“हमने कहा कि हुजूर, हम तो दो वक्त की रोटी का इंतजाम मुश्किल से कर पाते हैं। इतने पैसों का इंतजाम हम कहां से करेंगे? रपट लिखे जाने से पहले ही हम चार हजार रुपये दे चुके हैं और पैसा हमारे पास नहीं है। हमने पुलिस को पैसा नहीं दिया तो हमारा केस ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। काफी जद्दोजहद के बाद शिवपुर थाने की पुलिस घटना के 18 दिन बाद 30 अप्रैल 2024 को पहली बार हमारे गांव में जांच-पड़ताल करने आई। हमने पुलिस से सवाल किया कि जांच-पड़ताल में इतनी देर क्यों कर दी तो दरोगा बालक राम ने कहा कि हम चुनाव देखें कि तुम्हारी बेटियों को ढूंढें।”

अभिलाषा कहती हैं, “हमारे पास पुलिस को रिश्वत देने के पैसे होते तो शायद बेटी खुशी हमारे घर होती। पिछले चार महीने से घर का कोई शख्स ठीक से सो नहीं पा रहा है। सभी को चिंता खाए जा रही है। पुलिस की चुप्पी हमें और भी ज्यादा परेशान कर रही है। घटना के तत्काल बाद सभी संदिग्ध अभियुक्त फरार हो गए थे। शिवपुर थाना पुलिस पिछले चार महीने से इस केस में हीला-हवाली कर रही है। हमें शिवपुर थाना पुलिस की जांच पर तनिक भी भरोसा नहीं है। हमें लगता है कि पुलिस पर सत्तारूढ़ दल से जुड़े नेताओं का दबाव हो सकता है।”
महिलाओं ने डीएम को घेरा
अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन (एपवा) की प्रदेश सचिव कुसुम वर्मा और दखल संगठन की इंदु पांडेय व नीति के नेतृत्व में 07 अगस्त 2024 को बड़ी संख्या में महिलाओं ने शास्त्री घाट से लेकर कचहरी तक मार्च निकाला। मार्च में शामिल महिलाओं और स्कूली छात्राओं ने कलेक्ट्रेट पहुंचकर न्याय की गुहार की। प्रदर्शनकारी महिलाओं ने पहले कलेक्ट्रेट पर नारेबाजी की। इनकी बात सुनने के लिए डीएम एस.राजलिंग मौके पर पहुंचे तो आक्रोशित महिलाओं-छात्राओं ने उनका घेराव किया। साथ ही न्याय की गुहार लगाई और शिवपुर थाना पुलिस के खिलाफ काफी देर तक नाराजगी जताते हुए गुस्से का इजहार किया। बाद में महिलाएं पुलिस कमिश्नर कार्यालय पहुंची और वहां भी नारेबाजी की।

आंदोलनकारी महिलाओं के सख्त रवैये के चलते पुलिस अधिकारियों की नींद टूटी। बाद में संयुक्त पुलिस कमिश्नर अपने दफ्तर से बाहर आए और महिलाओं से बात की। साथ ही वादा किया कि खुशी पाल के परिजनों को ज़रूर न्याय मिलेगा। बाद में उन्होंने मामले की जांच क्राइम ब्रांच के एडिशनल कमिश्नर टी.सरबरन को सौंपी। खुशी के माता-पिता को पूछताछ के लिए पुलिस कमिश्नर कार्यालय में बुलाया गया है। इस मामले की जांच पुलिस की महिला विंग की अफसर ममता सिंह भी कर रही हैं।
सबसे अहम बात यह है कि खुशी पाल की गुमशुदगी कोई हाईप्रोफाइल मामला नहीं है, इसके बावजूद पुलिस अभियुक्तों तक क्यों नहीं पहुंच पा रही है, यह सवाल हर किसी के जेहन में उभर रहा है? आखिर वो कौन सी वजह है कि पुलिस अभियुक्तों से कड़ी पूछताछ नहीं कर पा रही है? अगर सीडीआर फाइल पुलिस ने निकलवा ली है तो खुशी के गांव दानियालपुर से शहर और दूसरे गांवों की ओर जाने वाले रास्तों पर लगे सीसीटीवी कैमरों की जांच पड़ताल करने में दिलचस्पी क्यों नहीं दिखाई? खुशी के लापता होने के बाद सिर्फ तीन किमी के फासले पर स्थित शिवपुर थाने की पुलिस ने घटनास्थल पर पहुंचने में 18 दिन क्यों लगा दिए? जांच-पड़ताल तब शुरू की गई जब प्रगतिशील महिलाओं ने इस को उठाते हुए 31 जुलाई 2024 को पुलिस अफसरों से शिकायत की। आखिर वह कौन शख्स है जो इस मामले में शिवपुर थाना पुलिस की आंखों पर पर्दा डाल रहा है?

एपवा की प्रदेश सचिव कुसुम वर्मा कहती हैं, “खुशी पाल मामले में जांच के लिए हमने सभी वैधानिक प्रक्रिया पूरी की। शिवपुर थाना पुलिस ही नहीं, कैंट एसीपी विदूष सक्सेना से महिला संगठनों ने कई मर्तबा वार्ता की, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। अगर खुशी को पुलिस नहीं ढूंढ सकती तो कौन ढूंढेगा? समझ में यह नहीं आ रहा है कि उसे जमीन खा गई या फिर आसमान निगल गया। अगर गरीब घरों की बेटियों को न्याय नहीं मिलेगा योगी सरकार पर भला कौन भरोसा करेगा? यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आए दिन दावा करते हैं कि हम चौबीस घंटे में न्याय देने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम चार महीने से दौड़ रहे हैं और न्याय की उम्मीद लगातार क्षीण होती जा रही है।”
किसकी नीयत में खोट?
दानियालपुर गांव बनारस शहर का हिस्सा है। शिवपुर से इस गांव की दूरी करीब तीन किमी है। पार्षद गोविंद सिंह पटेल यह कहकर इस मामले में खामोश हो जाते हैं कि पुलिस अपना काम कर रही है। वरुणा नदी के किनारे बसा दानियालपुर गांव पहले पपीते की खेती के लिए समूचे पूर्वांचल में जाना जाता था। इस गांव के कुछ किसान अब फूलों की खेती करते हैं तो कुछ सब्जियों की। धान-गेहूं के अलावा चरी, बाजरा और मक्के की खेती भी होती है। कुछ लोग खेत मजदूर हैं तो कुछ लोग बढ़ईगीरी, प्लंबर आदिर का काम करते हैं। पटेल बहुल इस गांव में मौर्या-कुशवाहा, राजभर, पाल, ठाकुर, ब्राह्मण, पासी, मल्लाह समुदाय के लोग रहते हैं। गांव के पास तक सड़क पक्की है। गलियों में खड़ंजा बिछा है। खाली समय में कुछ लोग बनारसी हथकरघे पर बनारसी साड़ियों की बुनाई भी करते हैं।
दानियालपुर गांव के जिस टोले में खुशी का घर है, वहां कई और भी घर हैं। इन घरों के ज़्यादातर पुरुष शहर में कमाने जाते हैं। ये पूरा टोला लंबे पसरे खेतों के नज़दीक है। लेकिन इन खेतों पर इस टोले के लोगों का हक़ नहीं है, बल्कि वो खेतिहर मज़दूर हैं। इस टोले की ही महिलाएं कहती हैं, “जिन घरों में बच्चियां हैं, वो लोग डर के रहेंगे। हम लोग छोटी जाति के हैं, ग़रीब हैं। बनिहार (खेतिहर मज़दूर) हैं, डर के रहना पड़ता है। कैसे आवाज़ उठाएंगे।”
सीएम योगी आदित्यनाथ लखनऊ में ही रहते हैं। बताया जाता है कि, किसी भी घटना को लेकर यूपी पुलिस हमेशा अलर्ट मूड में रहती है। लेकिन खुशी मामले में बनारस की कमिश्नरेट पुलिस पर असंवेदनशील होने का आरोप है। लोगों में यह भी चर्चा है कि गांव के ही एक दबंग की संलिप्तता उजागर होने पर शिवपुर थाना पुलिस उससे पूछताछ करने से बचती नजर आई। खुशी प्रकरण में जब अफसरों की खुद की गर्दन फंसने लगी तो पुलिस ने कार्रवाई करना शुरू कर दिया।
खुशी के पिता संतोष पाल कहते हैं, “बेटी के गायब होने के बाद हमारी दिनचर्या बिलकुल बदल गई है। हमारा काम ठप हो चुका है। हम कहीं आते-जाते नहीं हैं। हम अपने घर में ही नज़रबंद हैं। हमारा पूरा दिन दुखों में ही बीत रहा है। हम अपने भविष्य को लेकर आशंकित हैं, हम नहीं जानते कि हमारा आगे जीवन कैसा होगा? हम अपनी बेटी को भुला नहीं पाए हैं, आगे भी भुला नहीं पाएंगे।”
“सिर्फ़ हमारी बेटी के इंसाफ़ का ही सवाल नहीं है, बल्कि भारत की बेटियों के साथ इंसाफ़ और सुरक्षा का सवाल है। हम ये बताना चाहते हैं कि हम दबेंगे नहीं। सरकार बेटियों के प्रति कुछ ऐसा नहीं कर रही है कि वो सम्मान से जी पाएं, बल्कि ऐसा माहौल बना दिया है कि ना जीते-जी सम्मान मिल रहा है और ना मरकर ही मिल रहा है। हमें नहीं लगता कि हम अपनी ज़िंदग़ी को यहां कभी पटरी पर ला पाएंगे।” दूसरी ओर, खुशी के परिजन जिन युवकों सुनील और शिवपाल उर्फ गुरू के खिलाफ कार्रवाई की मांग उठा रहे हैं, उनके घर वालों का कहना है कि वो निर्दोष हैं। पुरानी अदावत निकालने की कोशिश की जा रही है।
पुलिस की नाकामी पर सवाल?
केंद्र और प्रदेश सरकार “बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ” के नारे को लेकर आगे बढ़ रही है। फिर भी हर साल सैकड़ों लड़कियां गायब हो रही हैं। इनमें से 38 प्रतिशत लड़कियों को तो पुलिस ढूंढ़ने में नाकाम रही है। आरटीआई से 50 जिलों की पुलिस द्वारा दी गई जानकारी इसकी तस्दीक करती है। यूपी पुलिस विभाग से मांगी एक सूचना के मुताबिक, गायब होने वाली सैकड़ों लड़कियों की उम्र 20 से 25 वर्ष के बीच की है। अगर सरकारी आंकड़ों को देखें तो यूपी के 50 जिलों में हर दिन तीन बेटियां गायब हो रही हैं, जबकि लड़के हर दो दिन में तीन गायब हो रहे हैं। इनमें से 12 से 18 वर्ष की आयु वालों की संख्या अधिक है। लड़कियों के गायब होने को मानव तस्करी से जोड़कर भी देखा जा रहा है।
काशी पत्रकार संघ के पूर्व अध्यक्ष प्रदीप श्रीवास्तव कहते हैं, “जब कोई महिला लापता हो जाती है, तो उसके माता-पिता इसे गंभीरता से लेते हैं। महिलाओं को घर की इज्जत माना जाता है, इसलिए जब वह लापता हो जाती हैं, तो मामला दर्ज करवाया जाता है और यह फिर डेटा में आ जाता है। पुलिस ने 2013 से लापता लड़कियों और बच्चों के मामलों को तब से गंभीरता से लेना शुरू किया है, जब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दो दिनों से अधिक समय तक लापता बेटियों को अपहरण माना जाएगा। बनारस पुलिस इतनी घाघ है कि खुशी पाल के मामले को अभी तक गुमशुदगी मानकर चल रही है। बड़ा सवाल यह है कि शीर्ष अदालत के निर्देशों के मुताबिक खुशी के लापता होने के मामले को अभी तक अपहरण में तब्दील करके जांच क्यों नहीं की जा रही है? “
” खुशी के परिजन पिछले चार महीने से अपनी बेटी को ढूंढने के लिए पुलिस के चक्कर काट रहे हैं। लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। अब तक भी पुलिस के हाथ खाली हैं। कितनी अचरज की बात है कि हर रोज चार से अधिक बच्चे लापता हो रहे हैं और कुछ जिलों की पुलिस तो लापता होने वाली लड़कियों के बारे में जवाब देने से ही इनकार कर रही है। लड़कियों का लापता होना चिंता का विषय है। अगर नाबालिग चार माह तक बरामद नहीं होते हैं तो उसकी विवेचना मानव तस्करी निरोधक शाखा में स्थानांतरित करने का प्रावधान है। इसके बावजूद लापता बेटियों का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है, जो बहुत अधिक चिंतित करती है। किशोर लड़कियां ज्यादा गायब हो रहीं हैं। वो या तो प्रेमजाल में फंस रही हैं अथवा उन्हें व्यापार में धकेला जा रहा है।”
प्रदीप कहते हैं, “बनारस की खुशी पाल की तरह किशोरियों और बच्चों के गायब होने की घटनाएं योगी सरकार की इस दावे को खोखला साबित करती हैं कि यूपी में कानून व्यवस्था बहुत मजबूत है। दानियालपुर जैसी घटनाएं समूचे उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर हो रही हैं, जिनमें से कुछ की रिपोर्ट दर्ज है और कुछ पीड़ित परिवारों को पुलिस डाट-फटकार कर भगा देती है। अगर उन घटनाओं को लिया जाए जिनकी रिपोर्ट दर्ज है, उनमें से वर्कआउट होने वाले मामले कुछ गिने-चुने ही होंगे। ऐसे में यह कहना बेशर्मी की पराकाष्ठा है कि यूपी में महिलाएं सुरक्षित हैं। सवाल है कि सुरक्षा व्यवस्था का दावा करने वाली प्रदेश सरकार की नाक के तले इतनी बड़ी संख्या में लड़कियां कैसे गायब हो रही हैं? यह सवाल बहुत बड़ा है और सरकार और पुलिस प्रशासन को इसका जवाब ढूंढ़ना चाहिए।”
“पीएम नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस से 17 साल की छात्रा खुशी का चार महीने बाद भी सुराग नहीं लग पाना डबल इंजन की सरकार की असफलता का चरम है। नाबालिग खुशी का गायब होना गंभीर चिंता विषय है। इस तरह के बहुत सारे मामलों में पुलिस “आफ द रिकार्ड” यह कहती देखी जाती है कि लड़की अपनी मर्जी से भागी है। बावजूद इसके एक बेहतर कानून व्यवस्था का दावा करने वाली योगी सरकार और उसकी प्रशासनिक मशीनरी का दायित्व बनता है कि वह किशोरी खुशी पाल को उसके अभिभावकों के समक्ष पेश करे। लेकिन इस मामले में पुलिस अपनी हीला-हवाली और गलत बयानी से बाज नहीं आ रही है। “
क्या कदम उठा रही सरकार?
साल 2016 के दिसंबर महीने में हुए निर्भया कांड के बाद से भारत में यौन शोषण से जुड़े कानून और भी सख्त किए गए है ताकि ऐसे मामले के दोषियों को ज्यादा से ज्यादा सजा मिल सके। पहले अगर अपराध करने वाले व्यक्ति की उम्र 18 साल से कम होती थी तो उसे माइनर केस मान लिया जाता था और उस मामले को जुवेनाइल जस्टिस के अंतर्गत भेज दिया जाता था। लेकिन निर्भया केस के बाद इस कानून में बदलाव किए गए। अब अपराधी की उम्र 16 से 18 साल के बीच है, तो उसे भी सख्त सजा सुनाई जा सकती है। साल 2016 से पहले अगर कोई व्यक्ति महिला का पीछा करता था, तो उसे अपराध नहीं माना जाता था, लेकिन 2016 के बाद किसी भी महिला का पीछा करना कानूनी अपराध में आने लगा।
31 जुलाई 2023 को संसद में पेश किए गए आंकड़ों के मुताबिक पिछले तीन सालों में भारत में 13.13 लाख महिलाएं और लड़कियां लापता हो गईं। ये आंकड़े राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा जुटाए गए थे। मंत्रालय ने संसद को बताया कि देश में 2019 से 2021 के बीच 18 साल से अधिक उम्र की 10,61,648 महिलाएं और 18 साल से कम उम्र की 2,51,430 लड़कियां गायब हो गईं।
देश में 2019 से 2021 के बीच 18 साल से अधिक उम्र की 10,61,648 महिलाएं और 18 साल से कम उम्र की 2,51,430 लड़कियां गायब हो गईं। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019 और 2021 के बीच जम्मू और कश्मीर से 9,765 महिलाएं और लड़कियां लापता हो गईं। इनमें 18 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं की संख्या 8,617 और 18 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों की संख्या 1,148 थी। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली पहले स्थान पर है, जहां इस अवधि के दौरान 61,054 महिलाएं और 18 वर्ष से कम उम्र की 22,919 लड़कियां लापता हो गईं।
कितनी सुरक्षित हैं बेटियां?
राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम भारत सरकार का एक सांविधिक निकाय है, जो देश में महिलाओं को प्रभावित करने वाले सभी नीतिगत मामलों पर सरकार को सलाह देता है। इस आयोग का गठन जनवरी 1992 में भारतीय संविधान के प्रावधानों के तहत किया गया था। राष्ट्रीय महिला आयोग का उद्देश्य देश में महिलाओं के अधिकारों का प्रतिनिधित्व करना और महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर कानूनी सहायता देना है। इसके अलावा दहेज, राजनीतिक मामले, धार्मिक मामले, नौकरियों में महिलाओं के समान प्रतिनिधित्व और वर्क प्लेस में महिलाओं के शोषण जैसे अलग अलग विषय भी का अवलोकन भी इनके दायरे में शामिल है। राष्ट्रीय महिला आयोग भारत में महिलाओं के साथ हो रही हिंसा, भेदभाव, उत्पीड़न की शिकार या अपने अधिकारों से वंचित महिलाओं की शिकायत भी स्वीकार करता है और मामलों की जांच भी करता है।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कहते हैं कि बेटियों की सुरक्षा के लिए कई कदम उठाए गए हैं। इनमें 2013 का यौन अपराध निवारण अधिनियम भी शामिल है। कानून को और अधिक सख्त और प्रभावी बनाने के लिए 2018 में संशोधन किया गया था, और 12 साल से कम उम्र की लड़की से बलात्कार पर अब मौत की सजा हो सकती है। भारत सरकार का कहना है कि पीड़ित महिलाओं को तत्काल सहायता देने के लिए एक राष्ट्रव्यापी आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रणाली भी शुरू की गई है और कोई भी महिला 112 डायल करके तुरंत मदद हासिल कर सकती है। विश्लेषकों का कहना है कि सरकार के तमाम दावों के बावजूद भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराध रुक नहीं रहे हैं। इसका एक मुख्य कारण इस मुद्दे को लेकर सभी राजनीतिक दलों में रुचि की कमी है।
(लेखक बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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