संसद का शीतकालीन सत्र ठीक महाराष्ट्र चुनाव परिणाम के दूसरे दिन ही शुरू हो गए। 23 नवम्बर को महाराष्ट्र चुनाव के परिणाम सामने आये थे और परिणाम एनडीए के पक्ष में गया। पहले यह माना गया था कि महाराष्ट्र चुनाव इंडिया के पक्ष में जाएगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
परिणाम जो आया उसमे इंडिया साफ़ ही हो गई। कहीं की नहीं रही। अब तो महाराष्ट्र में एनडीए की सरकार भी बन गई है और देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री हो गए हैं। पहले हरियाणा और फिर महाराष्ट्र के चुनाव परिणाम ने बीजेपी को ताकत दी और प्रधानमंत्री मोदी का इकबाल एक बार फिर से बुलंद हुआ।
लेकिन महाराष्ट्र को लेकर अभी भी खेल जारी है। कल क्या होगा यह कोई नहीं जानता। राजनीति कब पलटी मार जाए और कब किस नेता का मिजाज बिगड़ जाए और कब कौन नेता बिकने और खरीद करने वालों में शामिल हो जाए यह भी कौन जानता है?
लेकिन बड़ी बात तो यह है कि महाराष्ट्र में जो भी हुआ है वह स्थानीय जनता को भी नहीं पच रहा है। जनता और नेता अब महाराष्ट्र चुनाव को चुनौती देते फिर रहे हैं। बीजेपी की परेशानी अभी भी ख़त्म नहीं हुई है।
ईमानदारी से जांच हो गई तो बीजेपी का खेल ख़राब हो सकता है और सबसे बड़ी बात कि कारोबारी अडानी की मुश्किलें और भी बढ़ सकती हैं। वह अडानी ही हैं जिसकी साख सबसे ज्यादा महाराष्ट्र चुनाव में फंसी थी। लेकिन अब जैसे ही देवेंद्र फडणवीस की सरकार बनी अडानी की बांछें खिल गई होंगी।
लेकिन खेल यहीं तक का नहीं था। अब जो खेल हो रहा है वह बड़ा विचित्र है। अडानी को पहले हिंडनबर्ग मामले में फंसाया गया लेकिन अभी तक अडानी को कुछ हुआ नहीं। फिर अमेरिकी अदालत से अडानी और उनके सात लोगों पर गिरफ्तारी वारंट जारी किया।
कहा गया कि अडानी ने करोड़ों रुपये घूस देकर ऊर्जा के क्षेत्र में अपना दबदबा बढ़ाया है। चूंकि अडानी की ऊर्जा कंपनी में एक पार्टनर अमेरिकी हैं इसलिए उनकी शिकायत पर ही अमेरिकी अदालत ने अडानी और उनके लोगों पर गिरफ़्तारी वारंट जारी कर दिया।
अमेरिका में बाइडेन अभी राष्ट्रपति हैं लेकिन अगले महीने ही ट्रंप की सरकार काम करने लगेगी। जाहिर है अडानी के मामले में ट्रम्प की सरकार क्या कुछ फैसला लेती है इस पर दुनिया भर की नजरें टिकी हुई हैं।
अडानी का भले ही कुछ अहित नहीं हुआ हो लेकिन उनकी बदनामी तो खूब हुई है। यह बात और है कि अगर अखबार और टीवी चैनलों तक ही जमाना होता तो शायद अडानी की कहानी लोगों तक नहीं पहुंच पाती लेकिन अब तो डिजिटल का जमाना है और फिर अडानी और केंद्र सरकार सबको मैनेज नहीं कर सकते।
याद रहे अडानी अब खुद भी बड़े मीडिया कारोबारी हैं। जितना मैनेज कर सकते थे किया लेकिन सबका मुंह बंद भी नहीं कर सकते।
लेकिन जैसे ही महाराष्ट्र में एनडीए की सरकार बनी बीजेपी कांग्रेस और राहुल गांधी पर टूट पड़ी। पहले बैठकों का दौर चला। तरकीबें निकाली गईं।
फैसला यही हुआ कि जिस तरह से अडानी को राहुल गांधी ने बदनाम किया और टारगेट किया है ठीक उसी तरह ही राहुल गांधी को बदनाम करना है ताकि पार्टी की छवि भी ख़राब हो और राहुल गाँधी मुंह दिखाने लायक भी नहीं रहें।
फिर बीजेपी के भीतर यह भी तय किया गया कि राहुल गांधी पर अटैक कौन करेगा और कैसे करेगा? तय हुआ कि प्रेस वार्ता के जरिये ही राहुल गांधी को नंगा किया जाएगा और इस काम की जिम्मेदारी बीजेपी के संबित पात्रा को दी गई।
पिछले दिनों बीजेपी ने प्रेस वार्ता का आयोजन किया और फिर हमला किया गया राहुल गांधी पर। यह हमला ठीक वैसा ही था जैसा कि राहुल गांधी अडानी और पीएम मोदी पर करते रहे हैं। महाराष्ट्र की सरकार बनने के बाद बीजेपी का यह पहला और बड़ा हमला माना जा रहा है।
बीजेपी प्रवक्ता एवं सांसद संबित पात्रा ने कहा कि ‘उन्हें राहुल गांधी को देशद्रोही कहने में कोई संकोच नहीं है। वह देशद्रोही हैं।’ पात्रा का यह बयान संसद परिसर में अडानी मुद्दे पर विपक्षी नेताओं के विरोध-प्रदर्शन के बाद आया। विपक्ष के नेताओं ने मानव श्रृंखला बनाकर विरोध-प्रदर्शन करते हुए नारेबाजी की।
उन्होंने जैकेट पहन रखी थी जिस पर लिखा था कि ‘मोदी-अडानी एक हैं।’ याद रखिये राहुल गांधी अडानी पर हमला करते रहे हैं, लेकिन बीजेपी अडानी का पक्ष लेकर राहुल गांधी पर हमलावर है।
इसके पीछे की क्या कहानी हो सकती है यह समझने की बात है। अडानी को लेकर बीजेपी को इतनी परेशानी क्यों है और अडानी के पक्ष में बीजेपी क्यों बोल रही है और उसे बचा रही है यह भी समझने की बात है।
यह भी बता दें कि अडानी के खिलाफ संसद में हुए प्रदर्शन में राहुल और कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी दोनों शामिल हुए थे। संसद परिसर में मीडिया से बात करते हुए राहुल ने कहा कि ‘मोदी जी अडानी की जांच नहीं करा सकते, कोई भी व्यक्ति अपनी जांच नहीं करा सकता।
मोदी और अडानी दो नहीं बल्कि एक हैं। मोदी जी अडानी की जांच नहीं करा सकते क्योंकि यदि वह ऐसा कराते हैं तो उनकी भी जांच होगी। मोदी और अडानी दो नहीं एक हैं।’
राहुल गांधी का यह बयान भी कोई कम नहीं था। इसलिए राहुल गांधी को भला बीजेपी कैसे छोड़ सकती थी। यही वजह है कि प्रेस वार्ता में पात्रा ने कहा कि ‘जॉर्ज सोरोस और दूसरे देशों के डीप स्टेट भारत को अस्थिर करना चाहते हैं। मीडिया संगठन ओसीसीआरपी का काम देश की छवि को धूमिल करना है।
कुछ ताकतें भारत को तोड़ना चाहती हैं। ओसीसीआरपी की रिपोर्ट पर जुलाई, 2021 में ब्राजील ने कोवैक्सीन का ऑर्डर कैंसल कर दिया। इससे भारत की छवि धूमिल करने की कोशिश हुई।
इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने के अगले दिन ही कांग्रेस पार्टी ने भारत सरकार और वैक्सीन को घेरे में ले लिया। ओसीसीआरपी के कहने पर राहुल गांधी काम करते हैं। इस ओसीसीआरपी ने भारत के मशहूर उद्योगपतियों पर लगातार नकारात्मक बातें फैलाई हैं।’
बीजेपी का आरोप है कि कांग्रेस, अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस के भारत को अस्थिर करने के एजेंडे को आगे बढ़ा रही है। यह विवाद तब शुरू हुआ जब एक फ्रांसीसी अखबार ने 2 दिसंबर को एक रिपोर्ट प्रकाशित की।
बीजेपी नेता संबित पात्रा ने गुरुवार को इस मुद्दे पर खुलकर अपनी बात रखी। उन्होंने जॉर्ज सोरोस, ओसीसीआरपी और राहुल गांधी के कनेक्शन का भी जिक्र किया।
गौरतलब है कि फ्रेंच अखबार की इस रिपोर्ट का शीर्षक था, ‘द हिडेन लिंक्स बिटवीन अ जाइंट ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म एंड द यूएस गवर्नमेंट’। इस रिपोर्ट में आरोप लगाया गया कि जॉर्ज सोरोस ने ओसीसीआरपी को फंड किया था।
हालांकि, सरकारी सूत्रों ने कहा कि यह रिपोर्ट भारत की विकास यात्रा पर सीक्रेट अटैक है। बीजेपी सांसद संबित पात्रा ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि अगर ओसीसीआरपी को तकलीफ होती है, तो राहुल गांधी रोते हैं। अगर राहुल गांधी रोते हैं, तो ओसीसीआरपी को तकलीफ होती है। ये दो शरीर लेकिन एक आत्मा हैं।
पात्रा ने कहा कि इस त्रिकोण में एक तरफ अमेरिका के जॉर्ज सोरोस हैं, अमेरिका की कुछ एजेंसियां हैं, त्रिकोण के दूसरी तरफ ओसीसीआरपी नाम का एक बड़ा न्यूज पोर्टल है। इस त्रिकोण के आखिरी कोने में राहुल गांधी हैं, ‘उच्च दर्जे का गद्दार’ मैं ये शब्द कहने से नहीं डरता।
मुझे लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष को गद्दार कहने में कोई झिझक नहीं है। राहुल गांधी, इस त्रिकोण के तीसरे एंगल का प्रतिनिधित्व करते हैं। बीजेपी ने कई मौकों पर सोरोस को कांग्रेस से जोड़ा है क्योंकि अमेरिकी अरबपति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुखर आलोचक रहे हैं।
बीजेपी का राहुल गांधी पर अटैक सचमुच में बड़ा है। राहुल गांधी को गद्दार और देशद्रोही कह देना कोई आसान बात तो है नहीं। लेकिन अब कांग्रेस ने भी तैयारी के साथ बीजेपी पर अटैक किया है। कांग्रेस ने कहा है कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार इतनी कमजोर है कि अंतरराष्ट्रीय साजिश होती रहती है।
कांग्रेस प्रवक्ता रागिनी नायक ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘जब देश का अन्नदाता कहता है कि हम काले कानून बर्दाश्त नहीं करेंगे, हम आंदोलन करेंगे, तो बीजेपी के लिए यह अंतरराष्ट्रीय साजिश और फंडिंग का हिस्सा हो जाता है।
जब सोनम वांगचुक अपने साथियों के साथ लद्दाख से आते हैं, अपनी मांग रखते हैं, तो वह अंतरराष्ट्रीय साजिश का हिस्सा हो जाते हैं। मणिपुर डेढ़ साल से जल रहा है, लेकिन नरेन्द्र मोदी वहां नहीं जाते क्योंकि वह भी अंतरराष्ट्रीय साजिश का हिस्सा है।’’
उन्होंने कटाक्ष करते हुए कहा कि अगर कोई प्रधानमंत्री मोदी से महंगाई और बेरोजगारी पर सवाल पूछ ले तो वह देशद्रोही है और युवा रोजगार मांग लें तो उनको लाठी मारी जाएगी, क्योंकि वे भी साजिश का हिस्सा हैं।
रागिनी ने कहा, ‘‘मोदी जी, अगर देश में इतनी अंतरराष्ट्रीय साजिश हो रही है तो आप अमित शाह जी की छुट्टी क्यों नहीं कर देते? क्या नरेन्द्र मोदी सरकार इतनी कमजोर है, जिसके खिलाफ कोई भी अंतरराष्ट्रीय साजिश होती रहती है ?’’
उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘इस देश में किसी ने अंतरराष्ट्रीय साजिश रची है तो वह गौतम अडानी हैं, जिन पर रिश्वतखोरी, हेराफेरी का आरोप लगा है और जिन्होंने भारत की छवि को धूमिल करने का काम किया है।’’
अब थोड़ी जानकारी डीप स्टेट के बारे में भी ले ली जाए। कैंब्रिज डिक्शनरी के मुताबिक डीप स्टेट या गहरे राज्य ऐसे समूह को कहा जाता है जो गोपनीय तरीके से अपने विशेष हितों को पूरा करने और उसकी रक्षा के लिए और लोकतांत्रिक तरीके से चुने जाने के बगैर देश पर राज करने के लिए काम करते हैं।
राजनीतिक तौर पर समझें तो डीप स्टेट एक प्रकार की समानांतर सरकार है। इसको किसी देश में संभावित रूप से गुप्त और अनधिकृत ताकतों के नेटवर्क से बनी सत्ता के तौर पर देखा जाता है।
डीप स्टेट किसी भी राज्य के राजनीतिक नेतृत्व से अलग स्वतंत्र रूप से अपने निजी एजेंडे और लक्ष्यों की खोज में काम करता है। इसका मकसद साजिश के सिद्धांतों से जुड़ा होता है। अमेरिका में दोबारा लौट रहे ट्रंप युग के बीच डीप स्टेट शब्द काफी चर्चा बटोर रहा है।
डीप स्टेट की थ्योरी में भरोसा रखने वालों के मुताबिक, ये चुने हुए प्रतिनिधियों के समानांतर चलने वाला एक सिस्टम है। इसमें मिलिट्री, इंटेलिजेंस और ब्यूरोक्रेसी के लोग भी शामिल होते हैं और सरकार से अलग अपनी नीतियां लागू करते या उसे प्रभावित करते हैं।
(अखिलेश अखिल वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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