रविवार अल सुबह से इजरायल-ईरान जंग में अमेरिका की एंट्री हो गई है। अमेरिका ने ईरान की तीन न्यूक्लियर साइट्स, फोर्डो, नतांज और इस्फ़हान को निशाना बनाते हुए जोरदार हमला किया। सोचा था अब युद्ध ख़त्म हो जाएगा। ईरान पर हमले के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि यह एक सफल ऑपरेशन था। इसके उलट ईरान ने कहा है कि उसके भारी सुरक्षा वाले फोर्डो परमाणु ठिकाने को सिर्फ मामूली नुकसान पहुंचा है।
अब खबर यह है कि ईरान ने अमेरिका की इस दगाबाजी के विरोध में इज़राइल में मिसाइलों से कहर बरपाया हुआ है। उसके दृश्य हृदयविदारक हैं। जिससे यह साबित हो रहा है कि अमेरिका की सरपरस्ती में लंबे अर्से तक फिलीस्तीन लड़ाकों और उनकी अवाम को जो जन-धन की हानि पहुंचाई थी उसकी भरपाई ईरान ने कर दी है। ईरान ने अमेरिकी हथियारों की औकात भी बता दी है। जिसके व्यापार की उसे ज़रूरत थी।
इधर अमेरिका के अचानक युद्ध में शामिल होने से राष्ट्रसंघ में ट्रम्प की हालत पतली हुई है। तो दूसरी ओर रूस, चीन और कोरिया भी सख्त नाराज हैं। अब तो लेबनान, कुवैत और यमन भी ईरान को सहयोग दे रहे हैं। कोरिया ने तो अपने परमाणु बम ईरान को देने की पेशकश की है। अफ्रीका ने अपना खजाना खोल दिया।
इजरायल से युद्ध के बीच ईरान होर्मुज जलडमरूमध्य को लेकर बड़ा ऐलान कर सकता है। ईरान की संसद में इस जलमार्ग को बंद करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने चेतावनी दी है कि अमेरिकी फ़ैसले से संघर्ष बढ़ने पर ‘अराजकता का सिलसिला’ शुरू हो सकता है क्योंकि मध्य पूर्व पहले से ही ‘तनाव की स्थिति’ में है।
एक रूसी नेता ने अमेरिकी हमले का मजाक बनाया है, इसे पूरी तरह नाकाम बता दिया है। यहां तक कहा गया है कि इस समय कई देश ईरान को न्यूक्लियर हथियार देने के लिए तैयार बैठे हैं। रूस और चीन भी क्षेत्र में सक्रिय भूमिका निभाने की कोशिश कर रहे हैं। वे मध्यस्थता की पेशकश तो कर रहे हैं, लेकिन वास्तव में उनका ध्यान इस क्षेत्र में अमेरिकी प्रभाव को चुनौती देने पर केंद्रित है।
कुल मिलाकर आज की स्थिति में ईरान मज़बूत स्थिति में है। भारत और पाकिस्तान की स्थिति लगभग एक जैसी है। असीम मुनीर अमेरिका के प्यारे दोस्त हैं और भारत के प्रधानमंत्री जिन्हें ट्रम्प शानदार यार मानकर भी, उन पर गहरा दबाव बनाए हुए हैं। हो सकता है डोनाल्ड ट्रम्प जैसे यार को इज़राइल में पिटता हुआ देखकर उस पर दया आ गई हो और उन्होंने सुदृढ़ कूटनीति के तहत ही ईरान के राष्ट्रपति से बात की हो।
इस समय देश के वामदल और कांग्रेस की चेयरपर्सन सोनिया भी मोदी जी पर ईरान से बात करने का आग्रह कर रहे थे हमारी विदेश नीति भी यही कहती है। किंतु यह फिर एक छलावा भरी कहानी लगती है क्योंकि डोनाल्ड ट्रम्प जिस तरह दो सप्ताह का समय देकर दो दिन बाद हमला कर देते हैं। तो इनके यारों का भरोसा कैसे किया जा सकता है।
हालांकि युद्ध निर्णायक दौर में है। यह साफ़ हो चुका है कि अमेरिका के दुलारे इज़राइल को बुरी तरह मात खानी पड़ी है। इज़राइल राष्ट्र कहीं दुनिया के नक्शे से गायब ना हो जाए और हमारी छवि कायम रहे। फिलहाल अमेरिका इसी प्रयास में लगा है। इसके लिए उसने मोदी जी को चुना है। देखिए बुरी तरह से फंसे अमेरिका को कैसे मुक्ति मिलती है।
(सुसंस्कृति परिहार लेखिका और एक्टिविस्ट हैं।)