हाल ही में पिछली 11जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाया गया ताकि जनसंख्या नियंत्रण सहित वैश्विक जनसंख्या मुद्दों पर प्रकाश डाला जा सके। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, बढ़ती जनसंख्या रोजगार, आर्थिक विकास, गरीबी, आय वितरण और सामाजिक सुरक्षा को प्रभावित करती है। जुलाई 23 में विश्व जनसंख्या दिवस के मौके पर संयुक्त राष्ट्र ने एक रिपोर्ट जारी की थी। इसमें उन्होंने दावा किया कि जनसंख्या के मामले में 2023 तक भारत चीन को पछाड़ देगा और दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन जाएगा।
रिपोर्ट के मुताबिक फिलहाल चीन की आबादी 1.426 अरब और भारत की आबादी 1.412 अरब है। संस्था ने दावा किया कि 2023 में भारत की जनसंख्या बढ़कर 1.429 अरब हो जाएगी, जो कि चीन से ज्यादा होगी। चूंकि 2021 में होने वाली जनगणना अभी तक नहीं हुई है। इसलिए राष्ट्र संघ की इस बात को मानकर ही चलना पड़ेगा।
पिछले वर्षों तक इस दिवस पर आमतौर पर जनसंख्या नियंत्रण पर चर्चाएं होती रही हैं। जिसमें भारत की निरंतर बढ़ती आबादी को नियंत्रित करने की बात की जाती रही है। किंतु इस बार इसकी रोक की बात पर एक नई बात सामने आई है। जो दूसरी चिंता की वजह से हिंदू आबादी बढ़ाने की बात कर रही है। विदित हो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लखनऊ में एक कार्यक्रम में कहा- ऐसा न हो कि किसी वर्ग की आबादी बढ़ने की स्पीड मूल निवासियों से ज्यादा हो। योगी ने कहा- ये एक चिंता का विषय हर उस देश के लिए है, जहां पर जनसंख्या असंतुलन की स्थिति पैदा होती है। योगी ने जो सबसे बड़ी बात कही वो ये कि एक वर्ग की आबादी ज्यादा होने का असर रिलिजियस डेमोग्राफी पर पड़ता है और एक समय के बाद वहां अव्यवस्था और अराजकता जन्म लेने लगती है। इससे साफ़ तौर पर आशय ये निकलता है कि वे एक वर्ग की बढ़ती आबादी के एवज में मूल निवासियों यानि हिंदू आबादी बढ़ाने पर ज़ोर दे रहे हैं।
इस बात सबसे पहले सन् 2022 में दशहरे के मौक़े पर नागपुर में अपने संबोधन में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि जनसंख्या के ‘असंतुलन’ के कारण भारत ने गंभीर परिणाम भुगता है। उन्होंने 1947 में भारत के विभाजन और पाकिस्तान के बनने के लिए धर्मों के बीच जनसंख्या में कथित असंतुलन को ज़िम्मेदार ठहराया। इस मौक़े पर उन्होंने ईस्ट तिमोर, दक्षिण सूडान और कोसोवो का उदाहरण देते हुए कहा कि जनसंख्या में असंतुलन के कारण ही यह नए देश बने हैं।
ज्ञातव्य हो, आरएसएस और वीएचपी जैसे हिन्दू दक्षिणपंथी संगठन जनसंख्या नियंत्रण कानून का भी समर्थन करते हैं, और हिंंदुओं से आबादी बढ़ाने की अपील भी करते हैं। गजब का विरोधाभास है, इनकी सोच में। खून के अंतिम कतरे तक हिंदू हित की रक्षा करने का दावा करने वाले गिरिराज सिंह ने पिछले वर्ष विश्व जनसंख्या दिवस के दिन कहा था कि ”बढ़ती जनसंख्या का दानव भारत को विश्व गुरु बनने से रोक रहा है। दस-दस बच्चे पैदा करने वाली विकृत मानसिकता पर अंकुश लगाने की जरूरत है।” 10-10 बच्चे पैदा करना किसकी मानसिकता है, यह उन्होंने नहीं बताया। विडंबना यह है कि वीडियो में जिस बढ़ती जनसंख्या को गिरिराज सिंह दानव बता रहे हैं, कभी खुद उसी ‘दानव’ को बढ़ाने की अपील कर चुके हैं।
देवबंद क्षेत्र में हिन्दू जनसंसद चल रहा था। गिरिराज सिंह भी इस जनसंसद में शामिल हुए थे। तब उन्होंने कहा था, ”देश के आठ राज्यों में हिंदुओं की जनसंख्या निरंतर घटती जा रही है। हिन्दुओं को अपनी जनसंख्या को बढ़ाने की जरूरत है।” आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने हिन्दुओं से ज्यादा बच्चे पैदा करने की अपील की थी। आगरा में भागवत ने कहा था, ”कौन सा कानून कहता है कि हिंदुओं की आबादी नहीं बढ़ानी चाहिए? जब दूसरों की आबादी बढ़ रही है तो हिंदुओं को कौन रोक रहा है?” 2016 में ही आरएसएस के समर्थन से नागपुर में आयोजित तीन दिवसीय धर्म-संस्कृति महाकुंभ में ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य वासुदेवानंद सरस्वती ने हिंदुओं से 10-10 बच्चे पैदा करने की अपील की थी। साल 2005 में तत्कालीन संघ प्रमुख सुदर्शन ने भी असम में हिन्दुओं से तीन बच्चे पैदा करने का निवेदन किया था।
इधर पिछले कुछ दिनों से संघ के कई अनुषंगी संगठन अपने अपने ढंग से इस मुद्दे पर लगे हुए हैं तथा हिंदुओं से जनसंख्या बढ़ाने का खुले आम अपने प्रवचनों में आह्वान कर रहे हैं। हाल ही में पंचायती अखाड़ा श्री निरंजन के महामंडलेश्वर कथा वाचक प्रेमानंद महाराज ने उज्जैन में भागवत कथा के आयोजन में कहा “मैं यहां भागवत कथा करने नहीं आया हूं। वह बातें कहूंगा जो सनातन धर्म को आगे बढ़ाएंगी। मैं चेतावनी देते हुए कह देता हूं, आप समझ जाओ, यूपी के 17 जिले हाथ से चले गए हैं। ऐसी ही हालत बंगाल, झारखंड, बिहार के हैं। मेरे कहने का सीधा मतलब यह है कि 25 साल पहले वे 2 करोड़ से 9 करोड़ और अब 38 करोड़ हो गए हैं। हिंदुस्तान ऐसे में इंडोनेशिया बन जाएगा, इसीलिए सनातन की रक्षा के लिए महिलाओं को चार-चार बच्चे पैदा करने की जरूरत है। उन्होंने आगे कहा आपका दो बच्चों का टारगेट है। आप बाकी हमें दे दें। हम उनका पालन-पोषण करेंगे। महिलाओं को चाहिए वे फिगर मेंटेन करने की बजाय सनातन धर्म और देश के लिए कुछ करें।”
यह जो कुछ हो रहा उसके पीछे उत्तर प्रदेश और बंगाल में उनकी पराजय है मुस्लिम बहुल बंगाल, बिहार, झारखंड भी उनके निशाने पर है इसलिए सुनियोजित तरीके से यह संघ का एजेंडा पुनर्जीवित किया जा रहा है। शीघ्र ही तमाम प्रवचनकर्ता इस प्रचार में लगा दिए जाएंगे।
हालांकि ये सत्य है इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट में सर्वे के मुताबिक, 1950 में मुस्लिम आबादी 9.84% थी, जो 2015 में बढ़कर 14.09% हो गई है। वहीं इस दौरान हिंदुओं की आबादी 84.68% से घटकर 78.06% हो गई है। किंतु ये आंकड़े पहले के हैं। जब तक जनगणना नहीं होती, आज किस स्थिति में पहुंचे हैं, कहा नहीं जा सकता। इस बीच देश ने कोरोना जैसे झंझावात सहे हैं। बड़ी तादाद में लोगों ने विदेशों की नागरिकता ली है। आज़ चिंता इस बात की होनी चाहिए कि देश की जनसंख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है, उसका समाधान कैसे हो। हिंदू आबादी बढ़ाने का विचार ही ग़लत है। उधर पाकिस्तान में हिंदुओं की आबादी 2017 में 35 लाख से बढ़कर 2023 में 38 लाख हो गई, जिससे यह इस्लामी राष्ट्र में सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समुदाय बन गया है। वहां मुस्लिम आबादी बढ़ाने पर जोर नहीं दिया जा रहा। टोटल आबादी घटाने के उपक्रम किए जा रहे हैं।
कुल मिलाकर हमारे देश में नफ़रत के बीज फिर से बोने की पुरज़ोर कोशिश हो रही है। किंतु राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में दिया संदेश मोहब्बत की दुकान इस पर भारी है। सद्भाव प्रेमी हिंदुस्तानी तहज़ीब में इस मंडराती समस्या का समाधान मौजूद है।।
(सुसंस्कृति परिहार स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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