सदियों से भारत में एक कहावत प्रचलित है: “घर का भेदी लंका ढाए।” यह कहावत यूं ही नहीं बनी। इतिहास में कई उदाहरण हैं, जब देशद्रोहियों ने आंतरिक विश्वासघात कर भारत का सिर नीचा किया। विभीषण की गद्दारी से लंका का सर्वनाश हुआ, तो जयचंद और मीर जाफर मुगल काल में अपनी गद्दारी के प्रतीक बने।
दुखद सत्य यह है कि अंग्रेजी शासनकाल में जिस संगठन ने स्वतंत्रता संग्राम में गद्दारी की, उसके अनुयायी आज भारत सरकार के शीर्ष पदों पर आसीन हैं। आज देश में गद्दारी करने वाले लोग उच्च से निम्न स्तर तक फल-फूल रहे हैं। कई लोग पाकिस्तान सहित अन्य देशों को भारतीय सैन्य गतिविधियों की गोपनीय जानकारी भेजकर देश को नुकसान पहुंचा रहे हैं। इसके बावजूद, पुलवामा, उरी या हाल की पहलगाम जैसी आतंकी घटनाओं के लिए कश्मीरी मुसलमानों को दोषी ठहराया जाता है। यदि निष्पक्ष जांच हो, तो कई मामलों में चतुर राजनीतिज्ञ और उनके कार्यकर्ता इसके लिए जिम्मेदार पाए जाएंगे।
हाल के रुझानों में बेरोजगार युवाओं और अपराध में लिप्त लोगों को ऐसी घटनाओं में शामिल किया जा रहा है, जो क्षेत्र का राजनीतिक माहौल बिगाड़ने का काम करते हैं। यह बात मुर्शिदाबाद की एक घटना से स्पष्ट हुई, जहां संदिग्धों को प्रथम दृष्टया बांग्लादेशी समझा गया, लेकिन उनकी हिंदी भाषा ने राजनीतिक साजिश का खुलासा किया। कई बार पंडितों को दाढ़ी और मुस्लिम टोपी में, या पुरुषों को बुर्के में अपराध करते पकड़ा गया है। ये घटनाएं साफ तौर पर दिखाती हैं कि मुसलमान भले ही अपराध न कर रहे हों, लेकिन उन्हें बदनाम करने की साजिश रची जा रही है।
जब देश के भीतर इस तरह के कृत्य सामने आ चुके हैं, तो यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या पहलगाम जैसी घटनाएं हिंदू-मुस्लिम तनाव को भड़काने की सुनियोजित साजिश का हिस्सा हैं? कुछ उदाहरण देखें: अनुसंधान वैज्ञानिक दिलीप कुरुलकर, बीकानेर के भवानी सिंह, द्वारका के दीपेश गोहिल, या हाल ही में गाजियाबाद के BEL इंजीनियर दीपराज चंद्रा। ये सभी कथित तौर पर उच्च जाति के हिंदू हैं, जो पाकिस्तान के लिए जासूसी करते पकड़े गए। लेकिन इन मामलों में सख्त कार्रवाई की कोई खबर नहीं आती; सब ठंडे बस्ते में चला जाता है।
इसी तरह, जम्मू-कश्मीर भाजपा के सोशल मीडिया प्रभारी को लश्कर-ए-तैयबा के लिए टेरर फंडिंग करते पकड़ा गया। एक अन्य आरोपी, संजय सरोज, आतंकी गतिविधियों के लिए जेल गया, फिर 2018 में भाजपा में शामिल हो गया। संदीप शर्मा, ध्रुव सक्सेना, निशांत अग्रवाल, और कुमार विकास जैसे लोग भी पाकिस्तानी ISI के लिए जासूसी करते पकड़े गए। सौरभ शुक्ला को प्रयागराज से लश्कर-ए-तैयबा के लिए काम करते गिरफ्तार किया गया।
सवाल यह है कि जब कश्मीर में आतंकियों से जुड़े छह लोगों के घरों पर बम ब्लास्ट या बुलडोजर से कार्रवाई होती है, तो उपरोक्त आतंकियों से जुड़े लोगों को ऐसी सजा क्यों नहीं दी जाती? यह सरकार की हिंदू-मुस्लिम के प्रति दोहरी नीति को दर्शाता है। यदि सभी अपराधियों के साथ एकसमान व्यवहार होता, तो ऐसी स्थिति नहीं बनती।
कुल मिलाकर, सरकार की मंशा में खोट नजर आता है। ऐसा लगता है कि वह इसका लाभ चुनावों में लेना चाहती है। उसे गिरती लाशों, बिलखते परिवारों, और कश्मीरियों की तकलीफों से कोई लेना-देना नहीं। यदि सरकार सचमुच गंभीर होती, तो पाकिस्तान को कोसने के बजाय पहले देश के इन जयचंदों को सजा देती।
(सुसंस्कृति परिहार स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
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