अभी तक चौराहों पर क्यों नहीं लगे हाथरस गैंग रेप के आरोपियों के पोस्टर?

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उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का मानना है कि अपराधियों का सामाजिक बहिष्कार करने से आपराधिक मामलों पर अंकुश लगाया जा सकता है। वह अपराधियों के पोस्टर विभिन्न चौराहों पर लगाने के पक्ष में हैं। विशेष रूप से बलात्कारियों को सबक सिखाने के लिए इस योजना को अपनाना चाहते हैं। पिछले दिनों सीएए और एनआरसी के विरोध में हुए आंदोलन में तोड़फोड़ का आरोप लगाकर कई युवाओं के पोस्टर विभिन्न चौराहों पर लगाए भी गए थे। ऐसे में प्रश्न उठता है कि हाथरस में एक बेटी के साथ किए गए गैंग रेप, जीभ काटने, रीढ़ तोड़ने और उसकी हत्या करने के आरोपियों के पोस्टर अभी तक क्यों नहीं लगाए गए हैं। कहीं ऐसा तो नहीं है कि योगी सरकार यह नीति बस अपने खिलाफ उठने वाली आवाज को ही दबाने के लिए अपनाए हुए है।

अब पीड़िता इस दुनिया में नहीं रहीं। मीडिया इस मुद्दे पर खामोश है। इस जघन्य अपराध को 16 दिन हो गए, पर किसी चैनल ने इसे मुख्य खबर नहीं बनाया। प्राइम टाइम डिबेट ऐसे में भी सुशांत को न्याय दिलाने में व्यस्त रही। गैंगरेप के आरोपियों के पोस्टर चौराहों पर लगाने का दावा करने वाली योगी सरकार मामले को दबाने में लगी रही। विपक्ष में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने मामले को उठाने का प्रयास किया और पीड़िता को न्याय देने की मांग करते हुए कांग्रेस ने सड़कों पर प्रदर्शन भी किया।

उत्तर प्रदेश की मुख्य विपक्षी पार्टी सपा आंदोलनों के नाम पर बस ज्ञापन सौंपने तक सिमट कर रह गई है। उत्तर प्रदेश में योगी सरकार की नाकामियों के खिलाफ प्रभावी आंदोलन न होने से भी प्रदेश में अपराध बढ़ रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि जैसे योगी सरकार ने कुछ ही लोगों को टारगेट किया हुआ है। केंद्र की सत्ता में बैठे लोग भी देश की बेटियों को हवस का शिकार बना रहे दरिंदों को सजा दिलाने के लिए कितने गंभीर हैं, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि दिल्ली से महज 200 किलोमीटर दूर हाथरस के मामले में उनकी जुबान गुंग मार गई है।

लड़की सुबह मां के साथ बाजरे के खेत में चारा काटने गई थी। ये दबंग पीछे से आए और खेत में घसीट लिया। काफी देर बाद घर वालों ने उसे अधमरी हालत में पाया तो लेकर अस्पताल भागे। अलीगढ़ के जेएन अस्पताल में सोमवार को जब उसकी हालत बिगड़ी तो उसे दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल लाया गया, लेकिन अगले ही दिन मंगलवार की सुबह साढ़े पांच बजे वो दुनिया से अलविदा हो गई। बताया जा रहा है कि पुलिस ने छेड़खानी का केस दर्ज कर मामले को दबाने का पूरा प्रयास किया। जब मामला सोशल मीडिया पर छा गया तो पुलिस कह रही है, सख्त धाराएं लगाई हैं। अभियुक्त बचेंगे नहीं। लड़की को न्याय मिलेगा। 

प्रश्न उठता है कि एफआईआर दर्ज करने में आठ दिन क्यों लगे? मतलब साफ है कि 15 दिन तक इस मामले को दबाने की हर संभव कोशिश की गई। ये भी अपने आप में दिलचस्प है कि इस घटना के वक्त हाथरस के एसपी वही विक्रांत वीर सिंह हैं, जो दिसंबर, 2019 में चर्चित उन्नाव रेप केस के समय वहां तैनात थे।

एनसीआरबी के अनुसार देश में मोदी सरकार बनने के बाद बलात्कार के आंकड़े लगातार बढ़ हैं। 2016-17 में देश की राजधानी में 26.4 फीसदी का इजाफा हुआ है। यह अपने आप में चिंतनीय है कि देश की जिला और तालुका अदालतों में तीन करोड़ 17 लाख 35 हजार मामले लंबित पड़े हैं, जिनमें से दो करोड़, 27 लाख से ज्यादा मामले अकेले औरतों के साथ हुई हिंसा के हैं। यूपी की फास्ट ट्रैक अदालतों में दुष्कर्म और पॉस्को के सबसे ज्यादा 36,008 मामले लंबित हैं।

एनसीआरबी के डेटा के अनुसार देश में हर दिन चार दलित महिलाओं के साथ बलात्कार होता है। दरअसल महानगरों में महिलाओं के साथ किए जा रहे अपराध तो किसी न किसी रूम में सामने आ जाते हैं, पर गांव-देहात में इस तरह के जघन्य अपराधों को दबा दिया जाता है।

कुछ साल पहले हरियाणा के फतेहाबाद जिले के एक गांव में छठी कक्षा में पढ़ने वाली एक लड़की के साथ गांव के एक ऊंची जाति के आदमी ने रेप किया था। छह दिन बाद जब वह लड़की अपनी छोटी बहन के साथ स्कूल गई तो साथ की लड़कियां उठकर दूसरी बेंच पर बैठ गईं। टीचर आया तो उसने भरी क्लास में लड़की से कहा, ‘तो तुम्हीं हो वो लडक़ी।’ उस लडक़ी को प्रिंसिपल के सामने पेश किया गया। माहौल खराब होने की बात कर उस लड़की को स्कूल में पढ़ाने से इनकार कर दिया गया। जब लड़की का पिता पुलिस के पास गया तो पुलिस ने एफआईआर दर्ज करने से इनकार कर दिया। लड़की को न्याय दिलाने के बजाय स्कूल के प्रिंसिपल और टीचर उसके चरित्र पर उंगली उठा रहे थे। लडक़ी का पिता इतना परेशान हो गया कि अपनी ही बेटी को मारने दौड़ पड़ा। बाद में पता चला कि मामला रफा-दफा कर दिया गया।

(चरण सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल नोएडा से प्रकाशित होने वाले एक दैनिक में कार्यरत हैं।)

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