वक़्फ संशोधन बिल पर हंगामा क्यों है ?

Estimated read time 1 min read

भारत में वक्फ के मामलों के लिए संशोधन बिल 2024 पर संयुक्त संसदीय समिति की बैठक में सदस्यों में विवाद हो गया जिसके चलते 10 सांसदों को समिति से निलंबित कर दिया गया।

8 अगस्त 2024 को बिल नंबर 109 वक्फ संशोधन बिल 2024 सामान्य श्रेणी के अंतर्गत लोक सभा में प्रस्तुत किया गया। इस बिल को 9 अगस्त को केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू द्वारा संयुक्त संसदीय समिति को सौंपा गया ताकि विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत विचार विमर्श और सुझाव एकत्रित किये जा सकें। 

प्रेस द्वारा 29 अगस्त 2024 को आमजन को सूचना के लिए सार्वजनिक किया गया ताकि इस बिल के संशोधन से प्रभावित मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय की आपत्तियों का विधिवत संसदीय पद्धति के अनुसार आकलन किया जा सके।

निलम्बित किये गए सांसद कल्याण बैनर्जी,  मोहमद जावेद, ए राजा, असदुद्दीन ओवैसी, नासिर हुसैन, मोहिबुला, मो. अब्दुल्ला, अरविंद सावंत,  नदीमुल हक, और इमरान मसूद हैं, जो सभी विपक्षी दलों से हैं।  

ऐसी जानकारी मिल रही है कि इस विवादित बिल पर अंतिम रिपोर्ट फरवरी में संसद के बजट सत्र के पहले भाग में पटल पर रखे जाने की संभावना है। वर्तमान सरकार इस वर्ष के अंतिम पखवाड़े में होने वाले बिहार विधानसभा के चुनावों को लक्षित कर इस बिल को जल्द पास करवाना चाहती है यह सम्भावना जताई जा रही है।

भाजपा ने अपने गठबंधन के अन्य दलों को भी इस बारे अपने विश्वास में ले लिया है। पिछले वर्ष 8 अगस्त को जब यह बिल संसद में लाया गया था, तब भाजपा के गठबंधन के बड़े सहयोगी जनता दल (यूनाइटेड) के सांसद व केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन  सिंह ने इस बिल का समर्थन करते हुए दलील दी थी कि इस संशोधन का उदेश्य वक्फ की कार्यप्रणाली और अधिक पारदर्शिता लाना है न कि वक्फ के कार्यों में हस्तक्षेप करना।

गठबंधन के दूसरे घटक दल तेलगुदेशम पार्टी ने हालांकि इस बिल के संबंध में अपनी प्रतिक्रिया में कुछ आशंकाएं जाहिर की थीं, जिसके बाद इसे संयुक्त संसदीय समिति को सौंपा गया था।  

संयुक्त संसदीय समिति की बैठक की तारीख को लेकर समिति के अन्य सदस्यों ने इसे कुछ दिन बाद करने का आग्रह किया था लेकिन समिति के चेयरमैन जगदम्बिका पाल ने बैठक 24 और 25 जनवरी की ही निश्चित कर दी।

समिति के सदस्यों को अपने संशोधनों और सुझावों को प्रस्तुत करने लिए केवल दो दिन का समय दिया गया था और 22 जनवरी की अंतिम तारीख तय की गई थी। सदस्यों के बिल के 44 बिंदुओं पर विस्तृत चर्चा करके रिपोर्ट को अंतिम रूप देने  की बाध्यता थी।

सदस्यों ने आपत्ति की जब बैठक के लिए पहुंचने पर जानकारी मिली कि बैठक का एजेंडा बदल दिया गया है। समिति के पैनल ने 12 राज्यों के वक्फ बोर्ड के प्रतिनिधियों से चर्चा करके सुझाव एकत्रित किये थे।

पैनल द्वारा की 34 बैठकें दिल्ली में की गई। पैनल के सदस्यों द्वारा मांग की गई थी कि मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय की अधिक आबादी वाले राज्य जम्मू कश्मीर का दौरा भी किया जाना चाहिए लेकिन समय के अभाव के कारण यह दौरा नहीं किया गया।   

भारत में वक्फ की स्थापना 1913 में ब्रिटिश काल के दौरान की गई थी, जिसे 1923 में कानून के दायरे में लाया गया। वक्फ के द्वारा मुस्लिम समुदाय के उन सभी चल-अचल सम्पत्तियों का संरक्षण प्रबंधन किया जाता जो सामाजिक कल्याण और उत्थान के लिया मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा दान में दे दी जाती है।

वर्तमान में भारत में वक्फ के पास लगभग 8.7 लाख सम्पत्तियां हैं जो कि 9.4 लाख एकड़ भूमि के रूप में विभिन्न राज्यों में है। इन सारी सम्पत्तियों की कीमत लगभग एक लाख बीस हजार करोड़ आंकी गई है।

2011 में  न्यायाधीश शाश्वत कुमार की अध्यक्षता में शाश्वत कमेटी ने भारत में मुसलमानों की स्थिति का जायजा लेने के लिए अध्ययन किया था, जिसकी रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आये कि इस सारी सम्पत्तियों से लगभग 12 हजार करोड़ की आय प्राप्ति की गुंजाईश है लेकिन अभी केवल 163 करोड़ आय की प्राप्ति होती है।  

सारे विपक्षी सांसद जिन्हें निलंबित किया गया है, उन्होंने एक पत्र लोक सभा अध्यक्ष को लिखा है जिसमें संयुक्त संसदीय समिति के चेयरमैन जगदम्बिका पाल पर साफ़ आरोप लगाया है कि वो एक पक्षीय कार्यवाही अनुचित तरीके से कर रहे हैं और समिति के सदस्यों के आग्रह को निरस्त करके मनमाने ढंग से रिपोर्ट बनाना चाहते हैं।

सांसदों ने अपने पत्र में स्पष्ट कहा है कि समिति के चेयरमैन जगदम्बिका पाल ने किसी अनजान व्यक्ति से फ़ोन पर बात करके इनको निलंबित कर दिया। नियमानुसार चेयरमैन जगदम्बिका पाल को निलंबन का कोई अधिकार नहीं।

इस विवाद पर समिति के अन्य सदस्य भाजपा के सांसद निशिकांत दुबे ने निलंबित सांसदों पर बैठक में हंगामा करने और संसदीय लोकतंत्र के विरुद्ध काम करने के उलटे आरोप लगा दिए।

यह पहली बार नहीं कि इस संयुक्त संसदीय समिति की बैठक में विवाद न हुआ हो। पहले भी पिछले वर्ष अक्टूबर में कल्याण बैनर्जी और भाजपा के अभिजीत गंगोपाध्याय के बीच टकराव हुआ था, जिसमें बैठक के दौरान तृणमूल कांग्रेस के कल्याण बैनर्जी ने एक कांच की बोतल को तोड़ कर समिति के चेयरमैन भाजपा के सांसद जगदम्बिका पाल की और लहराया था। 

सवाल यह है वर्तमान सत्तारूढ़ दल भाजपा का आखिर ऐसा कौन सा उदेश्य है जिसके लिए चेयरमैन जगदम्बिकापाल इस तरह की तानाशाही पर उतारू हैं। भाजपा सरकार क्या दिल्ली के विधानसभा चुनाव से पहले अपने मतदाताओं को कोई संदेश देना चाहती है या अल्पसंख्यक वर्गों को उसके संवैधानिक अधिकारों के लिए सीमित करना चाहती है। 

सवाल यह भी है कि अलग-अलग राज्यों में वक्फ बोर्ड्स की संपत्तियों पर किसकी नजर है। संसदीय कार्यशैली भाजपा के अमृतकाल में किस स्तर पर आ पहुंची है, ये भी गंभीर सवाल बना हुआ है। ‘टू मच डमोक्रैसी’ को किसके इशारे पर अंकुश लगाने की कवायद की जा रही है। क्या दमन और निरंकुशता के पैमाने से ही विश्वगुरु की उपलब्धि हासिल की जाएगी।

(जगदीप सिंह सिंधु वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author