अडानी विवाद: क्या पीएम मोदी की चुप्पी से बच पाएगा अडानी का साम्राज्य?

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार का पूरा दिन त्रिपुरा में चुनाव प्रचार करते हुए बिताया। राज्य में 16 फरवरी को होने वाले वाले मतदान से पहले वह ताबड़तोड़ रैलियों को संबोधित करते हुए कई मुद्दों को उठा रहे हैं और अपने विचार व्यक्त किए, लेकिन उन्होंने अडानी समूह पर चल रहे विवाद का जिक्र तक नहीं किया। जबकि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद से देश-विदेश में यह मुद्दा छाया हुआ है। हर कोई इस मामले की सच्चाई जानना चाहता है।

पीएम मोदी अडानी समूह का जिक्र करने से भले ही परहेज कर रहे हों, लेकिन हिंडनबर्ग रिपोर्ट के आने के बाद अडानी समूह पर देश के अंदर औऱ बाहर ढेर सारे सवाल उठ रहे हैं। संसद के भीतर भी विपक्षी दल पीएम मोदी से जवाब मांग रहे हैं, लेकिन मोदी इस मुद्दे पर खामोश हैं। प्रधानमंत्री की खामोशी पर भी अब सवाल उठने लगे हैं।

कांग्रेस ने शनिवार को प्रधानमंत्री से पूछा कि उन्होंने बंदरगाहों पर अडानी समूह का एकाधिकार क्यों स्थापित किया, क्या मनी लॉड्रिंग (धन शोधन) के आरोपों का सामना कर रही कंपनी को राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित महत्वपूर्ण क्षेत्र पर इस तरह का नियंत्रण स्थापित करने की अनुमति देना विवेकपूर्ण था?

कांग्रेस ने कुछ विशिष्ट प्रश्न भी पूछे कि क्या आयकर छापे ने एक फर्म को अडानी समूह को एक बंदरगाह बेचने के लिए मजबूर किया और क्या एक राज्य द्वारा संचालित बंदरगाह के पास अपनी जीत की बोली (Winning Bid) को वापस लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था ? लंदन स्थित बिजनेस अखबार फाइनेंशियल टाइम्स ने ईमेल कर अडानी ग्रुप से कई सवाल पूछे, लेकिन अभी तक उसे उनका कोई जवाब नहीं मिला है।

मुंबई में एफटी पत्रकार क्लो कोर्निश, हांगकांग में एंडी लिन और न्यूयॉर्क में हैरियट क्लेरफेल्ट ने अपने रिपोर्ट में कहा “अडानी समूह, जो हिंडनबर्ग (यूएस शॉर्ट-सेलर) के आरोपों का जोरदार खंडन करता है, ने इस बारे में टिप्पणी के अनुरोध का जवाब नहीं दिया कि क्या वे अपनी संपत्तियों को बेचने पर विचार कर रहे हैं।

दरअसल, अडानी समूह की साख और साम्राज्य पर बट्टा लग गया है। उसके शेयरों में भारी गिरवट दर्ज की गई है। अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या अडानी समूह अपने भारी उद्योग जगत को बिखरने से रोकने में सक्षम होगा?

“समूह के करीबी दो बैंकरों ने कहा कि उन्हें लगा कि बिक्री की संभावना बहुत कम है, और इस मामले से परिचित एक व्यक्ति ने तर्क दिया कि अडानी समूह को ‘संकट में पड़ने के लिए, इसकी संपत्ति को संकट में डालना होगा।’

अडानी को उधार न देने वाले एक दिग्गज अंतरराष्ट्रीय बैंकर ने कहा, ‘अगर उनके पास कुछ सामान्य ज्ञान होता तो वह तुरंत अपनी संपत्ति का कुछ हिस्सा बेच देते।’

एफटी रिपोर्ट में इस मुद्दे को जांचा गया है कि क्या अडानी समूह संकट से बचने के लिए अपनी संपत्ति बेचने पर मजबूर होगा या उसे नहीं बेचने के लिए पर्याप्त अवसर मिलेगा, इस रिपोर्ट के शीर्षक में दोनों पक्षों के तर्क दिए गए हैं, “बंदरगाह, बिजली संयंत्र, सीमेंट जैसे उद्योग अडानी के कर्ज ढेर के पीछे सहायक की भूमिका निभा सकने वाली सबसे अच्छी संपत्ति है। संकटग्रस्त समूह के विशाल बुनियादी ढांचे के कारोबार ने भारत की आर्थिक वृद्धि पर दांव लगा दिया है।

खबर के मुताबिक मुंबई स्थित प्रॉक्सी एडवाइजरी इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर एडवाइजरी सर्विसेज के संस्थापक और प्रबंधक निदेशक अमित टंडन के हवाले से कहा गया है, “ये संपत्ति वास्तविक हैं। बंदरगाह हैं, हवाई अड्डे हैं, बिजली संयंत्र हैं, रेलवे लाइनें हैं, खदानें हैं।

एफटी ने उनकी कुछ संपत्तियों का विश्लेषण किया, जिसमें एक मानचित्र पर बताया गया कि “अडानी समूह पूरे भारत में 60 से अधिक बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को नियंत्रित करता है।”

फाइनेंशियल टाइम्स ने यह भी बताया: “भारत का केंद्रीय बैंक जोर देकर कहता है कि यह देश के बैंकों पर अडानी संकट के प्रभाव के बारे में आशावादी है क्योंकि उन्होंने ज्यादातर शेयरों के बजाय समूह की संपत्ति पर उधार दिया है।” अडानी से दूर रहने वाले मनी मैनेजरों का कहना है कि अडानी के इंफ्रास्ट्रक्चर एसेट्स के बहुत इच्छुक खरीदार होंगे, जिन्होंने उनके साम्राज्य को कम किया है।”





‘हम अदानी के हैं कौन’ श्रृंखला के तहत कांग्रेस संचार प्रमुख जयराम रमेश ने कहा: “अडानी समूह आज 13 बंदरगाहों और टर्मिनलों को नियंत्रित करता है जो भारत के बंदरगाहों की क्षमता का 30 प्रतिशत और कुल कंटेनर मात्रा का 40 प्रतिशत प्रतिनिधित्व करता है। यह बड़े आश्चर्य की बात है कि 2014 के बाद से इस विकास में तेजी आई है। गुजरात में मुंद्रा पोर्ट के अलावा, हाल के अधिग्रहणों में शामिल हैं: 2015: धामरा पोर्ट, ओडिशा, 2018: कट्टुपल्ली पोर्ट, तमिलनाडु 2020: कृष्णापटनम पोर्ट, आंध्र प्रदेश 2021: गंगावरम पोर्ट, आंध्र प्रदेश 2021: दिघी पोर्ट, महाराष्ट्र।”

रमेश ने कहा: “गुजरात, आंध्र प्रदेश और ओडिशा भारत के ‘गैर-प्रमुख बंदरगाहों’ से विदेशी कार्गो यातायात का 93 प्रतिशत हिस्सा हैं। कृष्णापट्टनम और गंगावरम दक्षिण में सबसे बड़े निजी बंदरगाह हैं।”

अडानी समूह ने 2025 तक अपनी बाजार हिस्सेदारी को 40 प्रतिशत तक बढ़ाने के अपने लक्ष्य की घोषणा की है और यह और भी अधिक बंदरगाहों का अधिग्रहण करने का प्रयास कर रहा है।

रमेश ने कहा: “क्या आप अपने पसंदीदा व्यवसाय समूह द्वारा प्रत्येक महत्वपूर्ण निजी बंदरगाह के अधिग्रहण की निगरानी करना चाहते हैं या अन्य निजी फर्मों के लिए कोई जगह है जो निवेश करना चाहती हैं? क्या यह राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से विवेकपूर्ण है … एक फर्म के लिए जो अपतटीय शेल कंपनियों द्वारा मनी लॉन्ड्रिंग और राउंड-ट्रिपिंग के गंभीर आरोपों का सामना करती है, उसे बंदरगाहों जैसे रणनीतिक क्षेत्र पर हावी होने की अनुमति दी जाए?

रमेश ने आगे कहा: “हवाई अड्डों की तरह, आपकी सरकार ने बंदरगाह क्षेत्र में अडानी के एकाधिकार को उसके निपटान में सभी साधनों का उपयोग करके सुविधा प्रदान की। सरकारी रियायतों वाले बंदरगाहों को बिना किसी बोली के अडानी समूह को बेच दिया गया है और जहां बोली लगाने की अनुमति दी गई है, वहां प्रतिस्पर्धी चमत्कारिक रूप से बोली लगाने से गायब हो गए हैं।

“ऐसा प्रतीत होता है कि आयकर छापों ने कृष्णापट्टनम बंदरगाह के पिछले मालिक को अडानी समूह को बेचने के लिए ‘मनाने’ में मदद की है। क्या यह सच है कि 2021 में, सार्वजनिक क्षेत्र का जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट अडानी के साथ प्रतिस्पर्धा में महाराष्ट्र में दिघी पोर्ट के लिए बोली लगा रहा था, लेकिन नौवहन और वित्त मंत्रालयों द्वारा अपनी बोली का समर्थन करने के बारे में अपना मन बदलने के बाद उसे अपनी विजयी बोली वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा?

श्रृंखला में तीसरा प्रश्न था: “आमतौर पर बंदरगाह रियायतें जोखिम को अलग करने और संपत्तियों की रक्षा के लिए प्रत्येक बंदरगाह के लिए विशेष उद्देश्य वाहनों के साथ बातचीत की जाती हैं। फिर भी इनमें से कई बंदरगाह अब एक ही सूचीबद्ध इकाई अडानी पोर्ट्स और एसईजेड का हिस्सा हैं। क्या संपत्तियों का यह हस्तांतरण बंदरगाहों के लिए मॉडल रियायत समझौते का उल्लंघन कर किया गया है? क्या अडानी के व्यावसायिक हितों को समायोजित करने के लिए रियायत समझौतों को बदल दिया गया है?”

AAP ने किया भाजपा मुख्यालय के बाहर प्रदर्शन

आम आदमी पार्टी (AAP) ने हिंडनबर्ग रिपोर्ट में अडानी समूह के खिलाफ धोखाधड़ी के आरोपों की जांच की मांग को लेकर रविवार को भाजपा मुख्यालय के बाहर विरोध प्रदर्शन किया।

पार्टी के दिल्ली संयोजक गोपाल राय ने कहा कि विभिन्न दलों के सदस्यों वाली एक संयुक्त संसदीय समिति को मामले की जांच करनी चाहिए। उन्होंने कहा, “भाजपा जांच से भाग रही है। केवल एक नेता मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हैं, जो किसी भी जांच से नहीं डरते।”

अमेरिका स्थित हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा धोखाधड़ी वाले लेनदेन और शेयर की कीमतों में हेरफेर सहित कई आरोपों के बाद अडानी समूह के शेयरों में गिरवाट आई है।

कांग्रेस सहित विपक्षी दलों ने आरोप लगाया है कि अडानी समूह के शेयरों में गिरावट एक घोटाला है जिसमें आम लोगों का पैसा शामिल है क्योंकि एलआईसी और एसबीआई ने उनमें निवेश किया है। आप इस मामले की संयुक्त संसदीय समिति से जांच कराने की भी मांग कर रही है।

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