गुवाहाटी। एनएससीएन-आईएम का एक प्रतिनिधिमंडल, जिसमें संगठन के शीर्ष नेता शामिल हैं, 21 अगस्त को नागा राजनीतिक मुद्दे पर भारत सरकार के प्रतिनिधियों के साथ महत्वपूर्ण दौर की बातचीत करेगा। एनएससीएन-आईएम के महासचिव थुइंगलेंग मुइवा भी संगठन के प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा होंगे। बैठक नई दिल्ली में होगी।
इससे पहले एनएससीएन-आईएम के महासचिव मुइवा ने 14 अगस्त को कहा कि भारत सरकार ने आधिकारिक तौर पर सभी नगा क्षेत्रों के एकीकरण के मुद्दे को नगाओं के वैध अधिकार के रूप में स्वीकार कर लिया है और इसे तदनुसार अंतिम रूप दिया जाएगा।
मुइवा ने कहा कि 18 साल की लंबी राजनीतिक वार्ता के बाद भारत सरकार और ‘नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालिम’ (एनएससीएन) ने आखिरकार 3 अगस्त, 2015 को नागाओं के अद्वितीय इतिहास और संप्रभुता की मान्यता की नींव पर ऐतिहासिक फ्रेमवर्क समझौते पर हस्ताक्षर किए।
यह दावा करते हुए कि एनएससीएन-आईएम नगा लोगों का एकमात्र प्रामाणिक राजनीतिक संगठन है, उन्होंने कहा कि समझौता एक पारस्परिक रूप से सहमत आधिकारिक दस्तावेज है।
“यह फ्रेमवर्क समझौता हमारी विरासत है।” मुइवा ने जोर देकर कहा, ”हमने अपने खून-पसीने से जो हासिल किया है, उसकी रक्षा हमें करनी चाहिए।”
अलग नागा ध्वज और संविधान पर मुइवा, जो भारत सरकार के साथ बातचीत में एनएससीएन-आईएम का नेतृत्व कर रहे हैं, ने कहा कि ये लोगों की संप्रभुता से “स्वाभाविक रूप से अविभाज्य” है।
उन्होंने कहा “यह सर्वमान्य सत्य है कि झंडा और संविधान संप्रभुता के अभिन्न अंग हैं। इसमें कोई अस्पष्टता नहीं है। भारतीय नेता भी इसे समझते हैं। उन्हें सच बोलने के लिए स्टैंड लेना चाहिए।”
मुइवा ने आगे कहा कि “नागाओं को अपने अतीत के गतिशील नेताओं पर गर्व है, जिन्होंने 14 अगस्त, 1947 को ब्रिटिश भारत से अंग्रेजों के प्रस्थान की पूर्व संध्या पर नागा राष्ट्रीय स्वतंत्रता की घोषणा करके सही निर्णय लिया”।
उन्होंने कहा, “यह एक ऐतिहासिक कदम था जिसने नागा राष्ट्रीय पहचान को नया अर्थ दिया और नागाओं के भविष्य को बचाया। इस मामले का सार यह है कि नागा संप्रभु लोग हैं, जो अनादि काल से अपनी ही भूमि पर रहते आए हैं।”
मुइवा ने दोहराया कि नागा राष्ट्रीय प्रतिरोध आंदोलन नागाओं और उनकी भूमि के अंतर्निहित संप्रभु अधिकार की रक्षा के बारे में है।
नागा शांति वार्ता के जरिये औपनिवेशिक शासन के समय से चले आ रहे विवादों को निपटाने की कोशिश हो रही है। नागा एकल जनजाति नहीं है, बल्कि एक जातीय समुदाय है। जिसमें कई जनजातियां शामिल हैं, जो नागालैंड और उसके पड़ोस में रहते हैं। नागा समूहों की एक प्रमुख मांग ग्रेटर नगालिम की रही है जो न केवल नागालैंड राज्य बल्कि पड़ोसी राज्यों के हिस्सों और यहां तक कि म्यांमार के राज्यों को भी कवर कर सके।
1826 में अंग्रेजों ने असम पर अधिकार कर लिया था, जिसमें बाद में उन्होंने नागा हिल्स जिला बनाया और अपनी सीमाओं का विस्तार किया। ब्रिटिश शासन के दौरान शुरू हुआ नागा राष्ट्रवाद का जोर आजादी के बाद भी जारी रहा और नगालैंड राज्य बनने के बाद भी। इस तरह अनसुलझे मुद्दों ने दशकों के विद्रोह को जन्म दिया, जिसने नागरिकों सहित हजारों लोगों की जान ले ली।
नागा प्रतिरोध का सबसे पुराना संकेत नागा क्लब के गठन के साथ 1918 का है। 1929 में क्लब ने साइमन कमीशन को “प्राचीन काल की तरह स्व-शासन निर्धारित करने के लिए खुद को अकेला छोड़ने के लिए कहा था।
1946 में ए जेड फिज़ो ने नागा नेशनल काउंसिल (एनएनसी) का गठन किया, जिसने 14 अगस्त 1947 को नागा स्वतंत्रता की घोषणा की और फिर 1951 में एक जनमत संग्रह कराने का दावा किया, जिसमें भारी बहुमत ने एक स्वतंत्र राज्य का समर्थन किया।
1950 के दशक के प्रारंभ में एनएनसी ने हथियार उठा लिए और भूमिगत हो गया। एनएनसी 1975 में विभाजित हो गई। अलग हुआ समूह एनएससीएन कहलाया, जो बाद के वर्षों में फिर विभाजित हो गया। 1988 में विभाजित हो गया। 1988 में एनएससीएन (आई-एम) और एनएससीएन (खापलांग) अस्तित्व में आए।
2015 से चल रहे वार्ता समझौते से पहले नागा समूहों और केंद्र के बीच दो अन्य समझौते हुए। 1975 में शिलांग में एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए गए जिसमें एनएनसी नेतृत्व ने हथियार छोड़ने पर सहमति व्यक्त की। इसाक चिशी स्वू, थुइंगलेंग मुइवा और एस एस खापलांग सहित कई एनएनसी नेताओं ने समझौते को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और एनएससीएन बनाने के लिए अलग हो गए। 1988 में एक और विभाजन हुआ, जिसमें खापलांग ने एनएससीएन (के) का गठन किया, जबकि इसाक और मुइवा ने एनएससीएन (आई-एम) का नेतृत्व किया।
1997 में एनएससीएन (आईएम) ने 1997 में सरकार के साथ एक युद्धविराम समझौते पर हस्ताक्षर किए। प्रमुख समझौता यह था कि एनएससीएन (आईएम) के खिलाफ कोई उग्रवाद विरोधी आक्रमण नहीं होगा, जो बदले में भारतीय सेना पर हमला नहीं करेगा।
अगस्त 2015 में केंद्र ने एनएससीएन (आईएम) के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे भारत में “सबसे पुराने उग्रवाद” को निपटाने के लिए एक “ऐतिहासिक समझौता” के रूप में वर्णित किया। इसने चल रही शांति वार्ता के लिए मंच तैयार किया। 2017 में नागा नेशनल पॉलिटिकल ग्रुप्स के बैनर के तहत छह अन्य नागा सशस्त्र संगठन बातचीत में शामिल हुए।
(दिनकर कुमार द सेंटिनेल के पूर्व संपादक हैं और आजकल गुवाहाटी में रहते हैं।)
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