नई दिल्ली। दिल्ली के जंतर-मंतर पर देश के नामी-गिरामी पहलवान रविवार(23 अप्रैल) से धरने पर बैठे हैं, जिनमें बहुलांश महिला पहलवान हैं। कभी जिन पहलवानों को हम अपने टीवी स्क्रीन पर देखकर तालियां बजाते थे, आज वही पहलवान सड़क पर उतर कर धरना देने को मजबूर हो गए हैं। अपने लिए न्याय की मांग कर रहे हैं। यौन उत्पीड़क बृजभूषण और अन्य खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के लिए गुहार लगा रहे हैं। सुप्रीमकोर्ट और प्रधानमंत्री से न्याय की मांग कर रहे हैं। यौन उत्पीड़न का साक्ष्य प्रधानमंत्री को सौंपने को तैयार हैं। लेकिन प्रधानमंत्री के कान पर जूं नहीं रेंग रही है। पता नहीं प्रधानमंत्री और कौन से और किसके दबाव में हैं। या वे अपने राजनीतिक फायदे के लिए बृजभूषण शरण सिंह के साथ हैं।
जैसा कि सबको पता है कि इन पहलवानों ने रेसलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया (डब्ल्यूएफआई) के अध्यक्ष और बीजेपी सांसद ब्रजभूषण शरण सिंह के खिलाफ यौन शोषण का आरोप लगाया है। मीडिया पिछले चार दिनों से लगातार कवरेज कर रही है। पूरे देश को तो क्या कहिये बच्चे-बच्चे तक को पता है कि ये पहलवान धरने पर क्यों और किसलिए बैठे हैं। लेकिन शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के कानों तक इन पीड़ित पहलवानों की आवाज अब तक नहीं पहुंच पाई है। खिलाड़ी मदद मांग रहे हैं और कानून की शरण में आए हैं। लेकिन सहानुभूति के तौर पर भी पीएम ने अभी तक कुछ नहीं कहा। क्या बहरे हो गए हैं प्रधानमंत्री जी, कि दिग्गज खिलाड़ियों की आवाज तक नहीं सुन पा रहे हैं।
बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ का नारा देकर सत्ता में आने वाली बीजेपी आज देश की बेटियों की आवाज सुनने से क्यों बच रही है। क्या इसी तरह से बीजेपी देश की बेटियों की रक्षा करेगी। सवाल ये है कि आखिर प्रधानमंत्री जी की इस चुप्पी का कारण क्या है। अपने ही सांसद बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ प्रधानमंत्री इतने मजबूर क्यों नजर आ रहे हैं। ब्रज भूषण शरण सिंह के खिलाफ कार्रवाई की बात तो छोड़िये दिल्ली पुलिस ने उनके खिलाफ एक एफआईआर तक दर्ज नहीं कर रही है। आखिर किसका दबाव है? कौन बचा रहा है बृजभूषण शरण सिंह को। बीजेपी के इस कद्दावर नेता को कौन नहीं जानता है। जो लोग नहीं जानते होंगे वो अब जान गए होंगे।
ये इस देश का दुर्भाग्य है कि देश के लिए खेलने वाले खिलाड़ियों को आज अपने सम्मान की रक्षा के लिए सड़क पर उतरना पड़ा। जिन्हें पूरा देश जानता है और इज्जत से सलाम करता है जब वे ही सुरक्षित नहीं हैं तो आम जनता और आम लड़कियों की सुरक्षा की गारंटी कौन ले। पहलवान देश के लिए मेडल जीतकर हमेशा से इतिहास रचते आए हैं और आज पहलवानों के आंसुओं ने इतिहास रच दिया है।
आज से पहले ऐसा कभी नहीं हुआ कि इंटरनेश्नल लेबल के खिलाड़ियों को अपनी सम्मान की रक्षा के लिए लड़ाई लड़नी पड़े। ये भी पहली बार बीजेपी के शासन में ही हुआ है। क्या इसके लिए केंद्र की मोदी सरकार की पीठ थपथपाई जाए?
( कुमुद प्रसाद जनचौक की सब एडिटर हैं।)
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