प्रवासी मज़दूर।

महज़ भाषण और कागजी फ़रमान के लिए नहीं होता है केंद्र ! महोदय, प्रवासी मज़दूरों की वापसी के लिए मुहैया कराइए ट्रेन

(प्रवासी मज़दूरों के अपने घरों की वापसी का केंद्र ने तो रास्ता खोल दिया। लेकिन घरों तक पहुँचने के लिए उनके रास्ते में आने वाले कांटों के बारे में उसने कुछ नहीं कहा है। सारी ज़िम्मेदारी राज्य सरकारों के ऊपर छोड़ दी है। ऐसे में कोई पूछ सकता है कि क्या केंद्र केवल भाषण देने और काग़ज़ी फ़रमान जारी करने के लिए है। संसाधन और पूँजी के मामले में वैसे भी राज्यों की स्थिति बेहद नाजुक है। ऊपर से कोरोना की मार ने उन्हें बिल्कुल घुटनों के बल ला दिया है।

रही सही कसर केंद्र सरकार ने उनके बकाये को रोक कर पूरा कर दिया। ऐसे में राज्य क्या कर पाएँगे? अब केंद्र से अगर कोई पूछे कि केरल और लक्षद्वीव से भला कोई उत्तर भारत का राज्य अपने मज़दूरों को लाना चाहे तो वह क्या करेगा? इतना लंबा रास्ता क्या बस से तय किया जा सकता है? केंद्र के पास ट्रेनें हैं। यार्डों में खड़ी इन ट्रेनों के डिब्बों में मोर्चा लग रहा है। क्या केंद्र सरकार की ज़िम्मेदारी नहीं बनती है कि वह राज्यों के साथ समन्वय स्थापित कर प्रवासी मज़दूरों को उनके गंतव्यों तक पहुंचाए। इसी मसले पर वर्कर्स फ़्रंट ने प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखा है। पेश है पूरा खत-संपादक)  

 सेवा में,

      माननीय प्रधानमंत्री

      भारत सरकार, नई दिल्ली।

विषय:- प्रवासी मजदूरों को ट्रेन द्वारा वापस बुलाने और राहत पैकेज देने के संदर्भ में।

महोदय,

       मान्यता प्राप्त श्रमिक महासंघ वर्कर्स फ्रंट समेत तमाम संगठनों द्वारा कोविड-19 के संक्रमण के कारण हुए लॉकडाउन में प्रवासी श्रमिकों को वापस उनके घर वापस पहुंचाने की मांग को संज्ञान में लेकर केन्द्र सरकार ने कल घर वापस भेजने का निर्देश दिया है। इस सम्बंध में कल ही केन्द्र सरकार के गृह मंत्रालय ने आदेश जारी किए हैं। गृह सचिव, भारत सरकार द्वारा इस आदेश दिनांकित 29.04.2020 में प्रवासी मजदूरों को लाने की जवाबदेही राज्य सरकारों पर छोड़ी गयी है।

इस आदेश में प्रवासी मजदूरों को लाने के लिए राज्यों को नोडल अधिकारी नियुक्त करने, रास्ते में पड़ने वाले राज्यों को मजदूरों के खाने-पीने की व्यवस्था करने, मजदूरों को सड़क मार्ग से ही लाने और इसके लिए जिन राज्यों से लाने वाले साधन गुजरें वहां उन्हें अनुमति देने और लाए जाने वाले साधनों में व्यक्तिगत दूरी बनाने, साधनों को सैनिटाइज करने और मजदूरों की स्कैनिंग आदि के निर्देश दिए गए हैं। 

      इस सम्बंध में संज्ञान में लाना चाहेंगें कि इस समय प्रवासी मजदूरों में घर वापसी की बेहद बेसब्री है और कल केन्द्र सरकार द्वारा की गयी घोषणा से वह और भी बढ़ गयी है। आप अवगत हैं कि नोएडा, हरियाणा, सूरत, मुम्बई और हैदराबाद जैसी तमाम जगहों पर घर वापस जाने के लिए बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर इकठ्ठा हो गए थे। जिससे कोरोना महामारी से लड़ने के लिए व्यक्तिगत दूरी बनाने के सरकार के प्रयास को बड़ा धक्का भी लगा था। इन मजदूरों को वापस लाने की किसी नीति के अभाव में और बिना किसी योजना के आनन फानन में लागू किए गए लाकडाउन के कारण लाखों की संख्या में प्रवासी मजदूर पैदल, साइकिल, ठेला, रिक्शा आदि साधनों से हजारों किलोमीटर दूर अपने घरों को वापस लौट रहे हैं।

हमें उम्मीद है कि भोजन व पानी न मिलने और बीमारी से उनके बेमौत मरने की खबरें भी आपके संज्ञान में होंगी। उत्तर प्रदेश में तो दिल्ली से लाए मजदूरों से सरकार ने किराया तक लिया था और जिन निजी बसों से वह दिल्ली से लखनऊ तक लाए गए थे, उन निजी बस मालिकों ने उनसे बस के अंदर बैठने का 1000 रूपया और छतों पर बैठने का 800 रूपया वसूला था। अभी भी श्रमिक महासंघ के अध्यक्ष व सोनभद्र जनपद का श्रम बंधु होने के कारण महाराष्ट्र, तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, गुजरात, बिहार, झारखण्ड़ जैसे तमाम राज्यों से विशेषकर सोनभद्र, चंदौली व मिर्जापुर के श्रमिकों के लगातार अधोहस्ताक्षरी को फोन आ रहे हैं। ये मजदूर बता रहे हैं कि मुम्बई और चेन्नई से लाने के लिए निजी बस मालिक उनसे 10000 रूपया तक मांग रहे हैं।

महोदय,

      आशा है कि आप प्रवासी मजदूरों के संकट से परिचित होंगे। यह मजदूर बाहर काम करके वहां से अपने परिवारों को पैसा भेजते हैं। इनके पास जहां यह काम करते हैं वहां आमतौर पर कोई अतिरिक्त धन नहीं होता। यही वजह है कि कई तो भुखमरी की हालत में जीवन गुजार रहे हैं। हमें यह भी सूचना मिल रही है कि साइकिल या अपने साधनों से लौट रहे मजदूरों को पुलिस रोक रही है और उनके साथ बर्बरतापूर्ण व्यवहार अभी भी जारी है। यह बेहद दुखद और अमानवीय है और लोकतांत्रिक प्रणाली के लिए शुभ नहीं है।

जीएसटी के जरिए टैक्स के केन्द्रीकरण से राज्यों की आर्थिक हालत पहले से ही बेहद खराब है। ऐसी स्थिति में प्रवासी मजदूरों की जवाबदेही महज राज्य सरकारों पर छोड़ना उचित नहीं है। इसलिए यदि केन्द्र सरकार इस समय प्रवासी मजदूरों को सकुशल वापस लाने की जवाबदेही नहीं लेती और इस अनुरूप केन्द्रीय स्तर पर सुसंगत नीति निर्मित कर कार्यवाही नहीं करती तो स्थिति विस्फोटक हो सकती है। 

        प्रवासी मजदूरों के सामने मौजूद उपरोक्त संकटकालीन परिस्थितियों में हम आपसे निम्नलिखित मांग करते हैं। आपसे उम्मीद करते हैं कि आप इसे संज्ञान में लेकर सुसंगत नीति निर्मित करने का निर्देश देने का कष्ट करेंगें –

केन्द्र सरकार प्रवासी मजदूरों की बड़ी संख्या को देखते हुए इनको लाने के लिए विशेष ट्रेनों को चलाने की व्यवस्था करे। सामान लाने के लिए स्पेशल ट्रेनें सरकार चला ही रही है, इसलिए ऐसी ट्रेनों के संचालन में कोई दिक्कत नहीं है। ट्रेनों को सैनेटाइज किया जाए और आवश्यक स्वास्थ्य मंत्रालय के निर्देशों के अनुपालन को सुनिश्चित किया जाए। 

सरकार को प्रवासी मजदूरों को लाने की मुफ्त व्यवस्था करनी चाहिए और चलने वाले स्थान से अपने घर तक जाने के लिए पर्याप्त मुफ्त भोजन व पानी उपलब्ध कराया जाना चाहिए।

यदि सड़क मार्ग से ही लाना अनिवार्य हो तो सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि मजदूर निजी बस आपरेटरों की लूट का शिकार न बनें। बल्कि सरकार को सभी निजी बसों का अधिग्रहण कर उनका किराया स्वयं देना चाहिए न कि मजदूरों से लेना चाहिए।

प्रवासी मजदूर के परिवार उन पर निर्भर हैं इसलिए उनको उनके घर पहुंचने से पूर्व कम से कम 5000 रूपया और आटा, चावल, तेल, दाल, नमक आदि का राशन किट देनी चाहिए। 

अपने साधनों से आ रहे प्रवासी मजदूरों पर पुलिस द्वारा की जा रही बर्बरता पर रोक लगाने का आदेश सभी राज्य सरकारों को गृह मंत्रालय द्वारा दिया जाना चाहिए और यदि किसी भी जिले में ऐसी बर्बरता होती है तो वहां के जिलाधिकारी व पुलिस अधीक्षक को जवाबदेह बनाकर उनके खिलाफ कड़ी कार्यवाही की जानी चाहिए।     

सादर!

दिनकर कपूर

श्रम बंधु, सोनभद्र

अध्यक्ष, वर्कर्स फ्रंट, उत्तर प्रदेश।

प्रतिलिपि सूचनार्थ व आवश्यक कार्यवाही हेतु:-

माननीय गृह मंत्री, भारत सरकार, नई दिल्ली।

माननीय मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश, लखनऊ।

गृह सचिव, भारत सरकार, नई दिल्ली।

सचिव, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, भारत सरकार, नई दिल्ली। 

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